तारिक़ आज़मी
ईमानदारी पहले तारीफ होती थी। मगर समय बदला और ईमानदारी भी गजबे का बदनाम हो गई है। अब ऐसा लगता है कि जैसे कोई ईमानदार कह रहा है तो गाली दे रहा हो। ईहे ईमानदारी को लेकर आज सुबहिये से ट्वीटर पर माहोल गर्म है। हमारे एक मित्र है उन्होंने ने ट्वीट करके कह दिया है कि “मैं कंटाप खीच के मार दूंगा कसम से…..अगर किसी ने मुझे #ईमानदार_पत्रकार कहा। कोई ऐसा कहता है तो मुझे लगता है कि कोई कीचड उछाल रहा है, कटाक्ष कर रहा है।#AmaJaneDo”
सुबह सुबह उनका नोटिफिकेशन पढ़कर हमको भी लगा कि बातिया तो दोस्तवा सहिये कह रहा है। घुन लगी पत्रकारिता करते हुवे टीवी पर दल विशेष के प्रवक्ताओ के रूप में बैठे चंद एंकरों को अब विपक्ष जबरदस्त जवाब देने लगा है। उस पर सबसे बड़ा बवाल ससुर ट्वीटर कर डाले है। उहा तो एक एक मुद्दा पर हैश टैग चले लग जा रहा है। कुल पढ़े लिखे है न उहा। बस एक गो पंचाईत लगी रही उहे पंचाईत पर गजबे का पंचाईत होई गवा। जेके देखो टांग खीचे पड़ा है। कुछ मुह बिचुका के तो कुछो हसत हसत टांग खीच रहेंन है। का कमाल होई गवा है। समझे न आत है।
हालत और भी ख़राब तो इन मीम बनाने वालो ने कर दिया है। अब एक ताई आकर बीच में बोल दे रही है कि “प्यारी समझ गई”। बताओ “समझ” गई तो “समझ” गई सबके बताने का क्या जरुरत है। बात पंचाईत वाली इंटरव्यूव की रही उहे ख़त्म हो जाती। मगर का करे ई विपक्ष का कि एकदम्मे जब चुनाव सर पर आ गया तो ई सब आड़े हाथ लेना शुरू कर दिए है। वईसे सच बात तो ईहे है कि “अमा जाने दो”। क्या फर्क पड़ता है कि कोई थोडा सा बोल डाले। बोलने दो हम तो अपने काम से मतलब रखते है। अगर “मतलब” नही रख सके तो “मतबल” ही रख डालते है। हमारा काम है दल विशेष की पैरोकारी करना तो कर डाला। मगर ट्वीटर का नास हो साहब कि नामे के साथ हैश टैग चला दिया है।
वैसे ईमानदारी की बात आई तो एक बात कहे तो कही से गलत नही होगा कि सबसे ज्यादा पतन 14 के बाद ही हुआ है। पहले पीत पत्रकारिता को दबे छुपे किया जाता था। मगर अब यही काम ज़बरदस्त तरीके से खुल के होने लगा है। एक दल विशेष की जीत हो तो खुद के बालकनी में आकर अपने साथियों के साथ उस दल विशेष का झंडा फहरा दिया जाता है। आम बात है। पहले ऐसा नही था। पहले अगर हम किसी दल के समर्थक रहते थे तो छुपे रहते थे। पहले हम किसी का समर्थन करते थे तो निष्पक्षता उसके साथ भी होती थी। मगर अब तो खुल्लम खुल्ला कर देते है। कौन रोकेगा हमको?
बताये जब लाख नही बल्कि लाखो लोग देख रहे हो और एक दल विशेष के एक बड़े नेता हमारा आशीर्वाद और हमारा स्नेह अपने ऊपर बनाये रखने का अनुरोध करे तो का सीधे सीधे माथे पर “C” लिखवा ले? समझ नही आएगा का? अब ऐसे में हम इसको ईमानदारी कहे तो सच में गाली ही समझ आएगी। वैसे नवल भईवा अपना ठीके कहे है कि केहू कहे न कि ईमानदार_पत्रकार……. मौज लो गुरु, चुनाव है। रोज़ रोज़ थोड़ी न आता है। सर्कस के टिकट लेकर मौज लेने जाते है आप न। अब टीवी देख लिया करे। मौज ही मौज है, मगर मतदान के दिन जाकर वोट ज़रूर दे। आपका अधिकार है और लोकतंत्र की चाभी है आपका मत। जिसको समझ आये उसको दे। मगर दान करे ज़रूर अपने मत को।
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