शाहीन बनारसी
वाराणसी। चुनाव सर पर है। 5 राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर आचार संहिता लग चुकी है। गली नुक्कड़ पर चुनावों को लेकर चर्चाओं का दौर जारी है। उत्तर प्रदेश में लगी चुनाव आचार संहिता का जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा के द्वारा पूर्ण रूप से पालन करवाने के लिए भरसक प्रयास किया जा रहा है। खुद चुनाव आयोग ने 15 जनवरी तक किसी भी प्रकार के रोड शो, पैदल, सायकल, मोटरसायकल यात्रा, नुक्कड़ सभा आदि पर प्रतिबन्ध लगा रखा है। इन्ही कारणों से मीडिया संस्थान के तरफ से किसी भी प्रकार की पब्लिक ओपेनियन नही लिया जा रहा है क्योकि कैमरों को देख कर भीड़ खुद-ब-खुद जुट जाती है।
अब उनके सवाल में मुख्य मुद्दा किसको वोट देंगे? मोदी जी ने विकास किया या नही किया ? सब मिलाकर एक प्रकार से चुनावी ओपिनियन ही था। अब आचार संहिता लागू हो जाने के बाद ऐसे ओपिनियन प्रतिबंधित होते है ये शायद इस यूट्यूब चैनल के लोगो को नही मालूम होगा। नेताओं ने भी हुजूम के साथ उनके सवालो का जवाब देना जारी रखा। एक मौका तो ऐसा भी दिखाई दे रहा था कि सपा और भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच तनातनी का दौर चल रहा था। अब सवाल ये उठता है कि क्या दिल्ली से आने के कारण उनके लिए नियम लागू नही होते है।
बड़ा सवाल ये है कि ऐसी नुक्कड़ पर चौपाल जैसे कार्यक्रम की अनुमति उनको किसने दिया। क्योकि अभी तक तो जिलाधिकारी ने किसी भी मीडिया संस्थान को ऐसे कार्यक्रमों की अनुमति नही दिया है। चलिए हम मान लेते है कि अनुमति की ज़रूरत शायद इनको नही होगी, मगर क्या कोविड प्रोटोकाल का पालन करने के लिए भी इनको कोई विशेष छुट रही होगी। वैसे बताते चले कि जानकारी के अनुसार स्थानीय एक सत्तारूढ़ दल के नेता से संपर्क कर ये टीम इस कार्यक्रम को कर रही थी जिसमे किसी अन्य दल का कोई भी कद्दावर नेता नही था। बस इलाके के कुछ कार्यकर्ताओं की भीड़ थी। अब जब दो पार्टी के कार्यकर्ताओं की भीड़ है तो आपसी विवाद होने की संभावना से इंकार तो नही किया जा सकता है। फिर उस स्थिति को कौन संभालेगा? शायद ऐसे कार्यक्रमों को करने के पहले पत्रकारों को इसका भी ध्यान रखना होता है।
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