तारिक खान
प्रयागराज। लॉज के कमरों में रुके हुए छात्र बाहर जरा सी भी आहट पर सहम उठते हैं। वह कमरे से बाहर निकलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। उनके दिमाग में पुलिस की बर्बरता आज भी सिहरन पैदा कर रही है। खौफज़दा काफी छात्र रात को इस सर्द मौसम में सडको पर वक्त गुज़ार रहे है। उनके दिल-ओ-दिमाग में पुलिस की लाठियां जो शरीर पर पड़ी थी बैठ चुकी है। उनका कहना है कि पुलिस बर्बरता का शिकार निर्दोष छात्र हुवे है। प्रतियोगी छात्र तो अपने प्रदर्शन के बाद भाग गये थे।
मिश्रा लॉज में रहने वाले एक छात्र का कहना है कि टीजीटी-पीजीटी वह तैयारी करते हैं। मंगलवार शाम वह कमरे में थे। अचानक बाहर शोरगुल मचा। वह डर गए। लगभग आठ-दस पुलिस वाले आए और कमरे का दरवाजा लाठी और बूटों से पीटकर तोड़ने लगे। खिड़कियों के कांच तोड़ दिए गए। कुछ कमरों का दरवाजा तोड़ दिया गया और छात्रों को बर्बर तरीके से पीटा गया। चीख पुकार सुनकर तख्त को दरवाजे से सटाकर चुपचाप नीचे छिपे रहे।
आधे घंटे सन्नाटा पसरा रहने के बाद साथियों से फोन पर पता किया और चुपचाप सहपाठी के साथ माघ मेला क्षेत्र में निकल गए। रात भर मेले में घूमते रहे। सुबह भी वह कमरे पर आने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। शाम को जब साथियों से पता चला कि एसएसपी आए थे और उन्होंने छात्रों से शांति बनाए रखने की अपील की है और आश्वासन दिया है कि किसी छात्र को परेशान नहीं किया जाएगा। तब वह कमरे पर आए।
लाज में रहने वाले छात्रो ने बताया कि जो छात्र प्रदर्शन में शामिल थे। वह तो पहले भाग चुके थे। कमरे में तो वहीं छात्र थे, जिनका आंदोलन से कोई लेना देना नहीं था। लेकिन पुलिस ने बेगुनाह छात्रों को पीटा। लॉज में कई छात्र इंटर की पढ़ाई करने वाले हैं। पुलिस ने उनको भी नहीं बख्शा है।
अब सवाल ये है कि आखिर छात्र अपनी बात किस तरह जिम्मेदार अफसरों तक पहुंचाएं। हम यहां पढ़ने के लिए आए हैं। उपद्रव करने नहीं आए हैं। लेकिन पुलिस ने छात्रों के साथ उपद्रवियों सा सलूक किया। हालत ऐसे हो चुके है कि छात्र आसपास के जिलों के रहने वाले हैं। वह घर चले गए हैं। जो दूरदराज के हैं, वही छात्र रुके हुए हैं। आखिर जब पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को स्टेशन से खदेड़ लिए था तो फिर लाज में घुस घुस कर इस तरीके से पिटाई करना कहा तक उचित था। कौन से नियमो के तहत पुलिस ने अपने ज़ुल्म की ये दास्तान लिखी है। चंद पुलिस कर्मियों के निलंबन से बेशक एसएसपी प्रयागराज अपनी ज़िम्मेदारी से पल्ला झाड ले। मगर हकीकत में ज़िम्मेदारी अभी भी काफी है। इन खौफज़दा छात्रो के दिलो में वापस क्या पुलिस के लिए वह सम्मान आ पायेगा ये एक बड़ा सवाल है।
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