2021 गुजरने पर तारिक़ आज़मी की मोरबतियाँ : हर ज़ुल्म तेरा याद है भुला तो नही हूँ
तारिक़ आज़मी
नए साल 2022 का दिल खोल कर बाहे फैला कर हम स्वागत कर रहे है। बाबा वेगा कोई भी भविष्यवाणी करके गई है, इसका हमारी सेहत पर कोई असर नही पड़ता है। ऐसे ही इस्तकबाल हमने किया था जब 2021 आ रहा था। 20 के दर्द को भुला कर खुद को कैद में रखने के बाद मिली आज़ादी जिससे हमारे कारोबार से लेकर जिस्म तक अकड़ चुके थे के बावजूद हमने दर्द भुलाया और नए साल 2021 का इस्तकबाल दिल खोल कर किया।
मगर हुआ क्या ? 2021 ने जो दर्द दिए वह शायद हम अपनी ज़िन्दगी में नही भूल सकते है। इतिहास जब भी लिखा जायेगा तो इसके दर्द को याद किया जाएगा। न जाने कितने अपने अपनों को खो दिया हमने इसके दर्द में। आज हम 22 का इस्तकबाल कर रहे है। मगर सच बताये तो 2021 के लिए सिर्फ एक लफ्ज़ हमारे पास बचा है कि “हर ज़ुल्म तेरा याद है,भुला तो नही हु।” कैसे माफ़ करके खुद की ज़िन्दगी आगे हमने बढ़ाया है। वो कब्रिस्तान के एक कब्र पर लिखी इबरत को याद करता हु कि “इलाही आलम-ए-बाला ये कैसे बस्ती है, जमी आबाद हो जाती है, वीरानी नही जाती।”
आबाद होती कब्रस्तान की ज़मीन को देख रहे थे हम। रोज़ ही एक दो लोगो के आखरी सफ़र में चंद कदम चलना पड़ रहा था। मौत के फरिश्तो ने घरो का रास्ता देख रखा था। मोहल्ले में सुबह सोकर उठने पर एक दो मौतों का एलान सुनने को मिल जाता था। मगर हम इसकी शिकायत तुमसे नही करते थे। हालात ऐसे कर रखा था कि जेब में पैसे लेकर भी हमको साँसे नही मिल पा रही थी। हम दर बदर की ठोकरे खा रहे थे। सांसो को तड़पता देख रहे थे। अपनों को तड़पता देखते थे। बेबस थे हम। ये ज़ुल्म 2021 हम भूले तो नही है।
शमशान घाट पर चिताये ठंडी नही हो रही थी। कई ऐसे भी वक्त आये कि हमने एक चिता पर कई लाशो को जलते देखा था। मुंशी प्रेमचंद की लिखी वो लाइन हमको एकदम सच और अपने दर्द को बयान करने वाली नज़र आती थी कि उन्होंने कहा था “जिसको पूरी ज़िन्दगी तन ढंकने के लिए एक चिथड़ा भी नसीब न हुआ, उसको भी मरने के बाद नया कफ़न चाहिये होता है।” बेशक हमारे कफ़न भी महंगे हो चुके था। हर तरफ मौत अपना तांडव मचा रही थी। हमारे लाशो को हमारे अपने छोड़ कर चले जाते थे। हम बेसहारा, लावारिस उस हालात में हो जा रहे थे कि हमारे वारसा सभी थे।
लाशें जलाने के लिए नही जगह हुई तो रेत के ढेर हमारे ऊपर डाल दिए गए। एक निशान बना दिया गया। गंगा ने अपनी गोद में हमको समा लिए था। हम बह रहे थे। हम फेक दिए जा रहे थे। हम दरबदर थे। साँसों की तलाश में आक्सीज़न का दूना दाम देने के बाद भी हमने सांसे उधर तक लिया। दवाओं के दाम को उसकी असली औकात से कही ज्यादा दामो पर खरीदा। डाक्टर अपनी जान पर खेल कर हमको जिंदा रखने की कवायद कर रहे थे। मगर यमराज हमे लेकर जाने की कसम खाकर बैठे थे। हम सिसक रहे थे। मगर ए 2021 तू हंस रहा था।
हमारे दर्द पर ए 2021 तुम्हारी मुस्कराहट हमको और भी ग़मगीन कर रही थी। हम तड़प रहे थे, तू चलता चला जा रहा था। जाते जाते अपने पनौती 2022 के दामन में भी लगा गया और पहली ही रात दर्दनाक हादसे में 12 श्रद्धालुओ ने अपनी जान गवा दिया है। आखिर तेरा दिया हुआ दर्द कैसे भूल सकते है। हर दर्द तेरा याद है भुला तो नही हु। हम नही भूल सकते तेरे दिए हुवे दर्दो को। हम अपने अपनों को जिनको तेरे आँचल में खो चुके है उनको याद करते है। हम आज भी ग़मगीन है। हम आज भी तेरे दिए हुवे दर्द से कराह रहे है। साहिल पर खड़े होकर तू हमे निहारता रहा और हम डूबते रहे। ए वायदा फरमोश हम कैसे तुझे भूल सकते है।