कमाल का है बनारस में बिजली विभाग : 4 दिनों से सड़क पर बिजली का खम्भा अपने साथ ट्रांसफार्मर को गले लगा कर पड़ा रो रहा है, जिम्मेदारो को होश ही नही, शायद कर रहे किसी बड़ी घटना दुर्घटना का इंतज़ार
शाहीन बनारसी
वाराणसी। बिजली विभाग और लापरवाही एक दुसरे की पूरक होती जा रही है। अक्सर विभाग की लापरवाही से संविदा कर्मी अथवा निरीह प्राणी अपने प्राणों की आहुति दे चुके है। मगर लगता है कि शायद बिजली विभाग ने कसम खा रखा है कि भले कुछ भी हो जाए हम सुधर नही सकते और अपनी लापरवाही से बाज़ नही आयेगे। भले कोई कुछ कहे, हम लापरवाही में नया आयाम कायम करेंगे।
ऐसा ही कुछ देखने को मिल रहा है प्रधानमन्त्री नरेद्र मोदी के गोद लिए हुवे गाँव डोमरी में। जहाँ हाई टेंशन खम्भा पिछले 4 दिनों से गिरा पड़ा हुआ है और कभी भी कोई बड़ी घटना दुर्घटना का कारण बन सकता है। मगर विभाग है कि उसके कानो पर जूं तक नही रेंग रही है। शायद सर्द मौसम में कार्यालय को मुफ्त में मिलती बिजली से जलने वाले बड़े-बड़े रूम हीटर से वह बाहर ही नही निकलना चाहता है। तो समस्याओं का समाधान कैसे करे? यहाँ तो कोई ऊपर से भी नही आना है, फिर क्यों खुद की रूचि दिखाए।
ऐसा ही कुछ देखने को मिल रहा है शायद डोमरी ग्राम में। स्थानीय नागरिको की माने तो डोमरी गाँव में किसी बड़ी गाडी के अनियंत्रित होने से टक्कर लग जाने के कारण हाई टेंशन का बिजली पोल मय अपने ट्रांसफार्मर सहित गिर पड़ा है। घटना 23-24 जनवरी की रात हुई बताई जाती है। स्थानीय निवासियों को आशंका है कि गाडी चालक शायद नशे में धुत रहा होगा अथवा कोहरे के कारण उसको खम्भा नही दिखाई दिया होगा। बेचारा खम्भा भी इतना मजबूत था कि टक्कर में सीधे ज़मीदोज़ हो पड़ा।
अब बिजली विभाग इतना चुस्त दुरुस्त है कि उसको परवाह ही नही कि इस खम्भे को सही करवा सके अथवा समस्या का कोई निस्तारण कर सके। आप तस्वीर में देख सकते है कि खम्भा खुद सड़क पर पड़ा ट्रांसफार्मर को गले लगा कर रो रहा है कि भैया कोई मुझको उठा दो। हम दोनों ही गिरे पड़े है। बहुते जोर की चोट लगी है। मगर आँखे मूंद कर बड़े-बड़े हीटरो से गर्मी लेते हुवे बिजली विभाग के ज़िम्मेदार अभी शायद आराम तलब कर रहे है। उनको शायद इंतज़ार है कि इसके कारण कोई घटना दुर्घटना हो जाए उसके बाद फिर कुछ किया जायेगा।
अब देखना है कि बिजली विभाग के ज़िम्मेदार बड़े-बड़े हीटर से कब और कैसे बाहर निकलते है। वैसे इन जिम्मेदारो पर किसी का शायद दबाव भी नही पड़ता होगा, वरना अब तक बड़े अधिकारी ही इसका संज्ञान ले लेते और मामले का कुछ न कुछ निस्तारण ज़रूर हो जाता। मगर अधिकारी लोग भी अभी सोच रहे होंगे कि कोई आदेश दे अथवा न दे। आप समझ सकते है कि जब प्रधानमन्त्री के गोद लिए हुवे गाँव में ऐसी स्थिति है तो शहर के अन्य हिस्सों में क्या हाल होगा।