वारणसी: कांग्रेस की अंतर्कलह में फंसा है वाराणसी के उत्तरी, दक्षिणी और कैंट विधानसभा का टिकट, भीतर खाने में चल रही कलह अब आने लगी है उभर कर सामने

ए जावेद

वाराणसी। वाराणसी में उत्तरी, दक्षिणी और कैंट विधानसभा का टिकट कांग्रेस के अंतर्कलह से फंसा हुआ है। स्थिति ऐसी दिखाई दे रही है कि शहर में कांग्रेस दो हिस्सों में तकसीम दिख रही है। पार्टी के सूत्रों की माने तो पूर्व सांसद डॉ राजेश मिश्रा खुद दक्षिणी से चुनाव लड़ना चाहते है। इसके लिए पुरे प्रदेश में सबसे कम अंतर से जीतने वाले प्रत्याशी होने का वह दम्भ भी भरते है। भले स्थिति उस समय और अब की एकदम अलग हो, मगर राजेश मिश्रा इस बात को पत्रकार वार्ता में भी दोहराने से कोई गुरेज़ नही करते है।

अगर पार्टी के अन्दर मौजूद सूत्रों की माने तो पूर्व सांसद के कारण पार्टी में मतभेद की भी स्थिति है। ये मतभेद औरंगाबाद हाउस जो कभी सियासत में बड़ा मुकाम रखता था के कांग्रेस छोड़ने तक पहुच चूका है। भले ही ललितेश ने कांग्रेस छोड़ने के कारणों में कोई नाम नही लिया हो मगर औरंगाबाद हाउस अपनी अनदेखी की बाते दबी जुबान से करता रहा है। इस हकीकत से भी इन्कार नही किया जा सकता है कि औरंगाबाद हाउस नाम से मशहूर त्रिपाठी घराने की ब्राहमण मतो पर बढ़िया पकड़ भी है। ऐसे में पिछले लगभग एक दशक से पार्टी में अनदेखी की शिकायत दबी जुबां से करने वाले ललितेश ने टीएमसी ज्वाइन कर लिया है। अब टीएमसी का टिकट ललितेश को मिलना करीब करीब फाइनल है। ये टिकट किस विधानसभा से ललितेश लेते है ये अभी स्पष्ट नही हुआ है।

यदि राजेश मिश्रा के पिछले विधानसभा चुनाव में सबसे कम अंतर वाली दलील को मान कर उस समय के सियासी आकड़ो और अब के आकड़ो पर नज़र डाले तो स्थिति एकदम उलट दिखाई देती है। वर्ष 2017 में कांग्रेस का गठबंधन सपा से था। सपा ने इस सीट पर राजेश मिश्रा को उतारा था। अब उस समय के आकड़ो पर नज़र डाले तो सपा का दक्षिणी में खुद का वोट राजेश मिश्रा को गया था। जब्को मुस्लिम मतदाताओं के पास दूसरा कोई विकल्प न होने की स्थिति में मुस्लिम मतो का रुझान भी राजेश मिश्रा के खाते में गया था। इस सीन को अब अगर 2022 में देखे तो स्थिति एकदम उलट होगी।

भीतर खाने में चल रही कलह आई सामने, शैलेन्द्र सिंह ने किया आकड़ो को लेकर ट्वीट

वैसे कांग्रेस में भीतर खाने में चल रही कलह अब सुर्खियों में आ रही है और सोशल मीडिया पर भी सामने आने लगी है। पहले जो आलोचनाये दबी जबान से हुआ करती थी वह अब सामने से होने लगी है। उत्तरी विधानसभा से टिकट मांग रहे शैलेन्द्र सिंह छावनी के द्वारा ट्वीट कर आकड़ो का वर्णन किया गया है। छावनी परिषद के पूर्व उपाध्यक्ष व कांग्रेस नेता शैलेंद्र सिंह ने शहर उत्तरी व दक्षिणी विधानसभा में टिकट बंटवारे को लेकर पार्टी के फार्मूले पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए आंकड़ों के जरिए पार्टी को आईना दिखाया है। उन्होंने अपने ट्विटर पर दो आंकड़े शेयर करते हुए लिखा है कि शहर उत्तरी व दक्षिणी विधानसभा में कांग्रेस क्यों हार रही है? आंकड़ों में लिखा है कि दक्षिणी विधानसभा में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या एक लाख छह हजार है जबकि उत्तरी में 65 हजार मुस्लिम व 80 हजार से ज्यादा राजपूत मतदाता हैं। उन्होंने यह भी लिखा है कि 2012 के पहले उत्तरी विधानसभा में सबसे अधिक मुसलमान थे। 2012 के बाद दक्षिणी विधानसभा में मुस्लिम मतदाता अधिक हो गए और उत्तरी में कम हो गए। उन्होंने भाजपा की जीत का प्रमुख कारण बताते हुए यह भी लिखा कि यहां पार्टी ने मुस्लिम उम्मीदवार को लड़ाना बंद नहीं किया जिसकी वजह से बीजेपी लगातार जीत रही है।

दम तो शैलेन्द्र सिंह की बातो में भी है। दक्षिणी और उत्तरी में सिर्फ एक वर्ग के मतदाता का मत मिल जाना जीत की गारंटी तो नही हो सकती है। इसके कारण उत्तरी और दक्षिणी विधानसभा सीट पर मंथन अभी भी जारी है। उत्तरी में जहा तक माना जा रहा है कि मुख्य लड़ाई में तीन नाम कांग्रेस के सामने है जिसमे दो महिला नाम है और एक पुरुष नाम है। महिला नामो पर अगर ध्यान दे तो एक अल्पसंख्यक वर्ग से पूर्व पार्षद नीलम खान है तो दूसरी दावेदार भोजपुरी की स्टार रह चुकी है। वही तगड़ी दावेदारी शैलेन्द्र सिंह की भी है। पिछले लगभग एक दशक से देखे तो कांग्रेस के सडको पर संघर्ष में बड़ा नाम शैलेन्द्र सिह का रहा है। यदि शैलेन्द्र सिंह के आकड़ो पर गौर करे तो आकडे बेशक सही है। राजपूत मतदाता 80 हज़ार चुनावों के रुख को तय कर सकते है। दुसरे मतदाता के रूप मे फिर मुस्लिम और दलित भी चुनावों में उत्तरी विधानसभा का रुख तय कर सकने में सक्षम है।

कुछ ऐसी ही उहापोह की स्थिति दक्षिणी विधानसभा की है जहा से मुख्य दावेदार सीताराम केशरी को माना जा रहा है। भाजपा के गढ़ में 20 वर्षो से लगातार पार्षद रहे सीताराम केसरी व्यापारी वर्ग का प्रतिनिधित्व करते चले आये है। इस सीट पर भी स्थिति ऐसी है कि मुस्लिम मतदाता एक लाख से ऊपर होने के कारण ये चुनावों में फेरबदल कर सकते है। मगर दूसरी तरफ यदि मुस्लिम प्रत्याशी के तौर पर यहाँ से आने वाले प्रत्याशियों पर नज़र डाले तो फिर इस मतदाता वर्ग के मतों का विभाजन ही हुआ है। जिसके बाद भाजपा ने ये सीट आसानी से अपने नाम किया है।

इसी तरह उहापोह की स्थिति कैंट विधानसभा की भी है। कैंट विधानसभा में जहा एक तरफ रोशनी कुशल जायसवाल द्वारा टिकट की मांग किया जा रहा है तो वही खुद पूर्व सांसद इस सीट से चुनाव लड़ने की इच्छा रखते है। वैसे उन्होंने अपनी ये इच्छा ज़ाहिर नही किया है मगर उनके करीबियों की माने तो ऐसा संभव है। जबकि रामनगर की चेयरमैंन रेखा शर्मा की दावेदारी भी दमदार है मगर आज भी अनिश्चिंतता के बीच में है। अन्य दलों को भी इंतज़ार है कि कैंट विधानसभा से कांग्रेस टिकट किसको देती है। रेखा शर्मा सेटिंग चेयरमैन है। इस बार उनके जगह कांग्रेस ने दूसरा प्रत्याशी उतारा था तो रेखा शर्मा निर्दल प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ी और जीत गई। कांग्रेस के सूत्र बताते है कि इस सीट की प्रबल दावेदार रेखा शर्मा बड़े वोट बैंक पर अपना अधिकार रखती है। मगर कांग्रेस के अन्दर खाने में चल रही असंतोष की भावनाओं ने उनका भी टिकट अभी अधर में रख रखा है।

बहरहाल, इसमें कोई दो राय नही है कि प्रियंका गांधी ने इन चुनावों के लिए काफी समय से मेहनत किया है। मगर भीतर खाने में स्थानीय नेताओं को लेकर चल रही असंतोष की लहरे पार्टी को बेशक नुक्सान पंहुचा सकती है। वैसे भी पूर्वांचल में कांग्रेस अपनी गुम हो चुकी सियासी ज़मीन तलाश रही है। सबसे कम अंतर से हार का दावा करने वाले पूर्व सांसद राजेश मिश्रा पिछला लोकसभा चुनाव बुरी तरीके से हारे थे और उनको मिले मत कांग्रेस को आईना दिखा देने के लिए काफी थे कि उसकी सियासी ज़मीन गुम हो चुकी है।

सेवादल नही रहा है एक्टिव

कांग्रेस सेवा दल अपने समय में काफी दमदार हुआ करता था। बेशक आज भी सेवादल मौजूद है मगर स्थिति उसकी किसी से छिपी नही है। सडको पर संघर्ष से लेकर मतदाताओं के दर तक जाने वाले सेवा दल के लोग अब चुनावों के समय भी नही नज़र आते है। उनकी कार्यक्षमता पहले इतनी हुआ करती थी कि दो लोगो के साथ चलने वाले एक एक मतो को घरो से जाकर मतदान स्थल तक लाने के लिए प्रयास करते थे। अब स्थिति ऐसी है कि कांग्रेस का चुनावी बस्ता भी कुछ जगहों पर दुसरे खाते में खड़ा दिखाई दे जाता है। अब देखना होगा कि सियासी ज़मीन खो चुकी कांग्रेस इस बार कैसे इस चुनाव में अपनी सियासी ज़मीन पाती है। अभी तक जो स्थिति है वह साफ़ नज़र आ रहा है कि कांग्रेस पूर्वांचल में अपने भीतर खाने में चल रही आपसी नाराज़गी से ही दो चार हो रही है।

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