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तारिक़ आज़मी की मोरबतियाँ (भाग-2): सियासत मुस्कुरा कर दामन बचा रही है, जवाब कोई देना नही चाहता, फिर वाराणसी जनपद में मांस कारोबार से जुड़े इन 25 हज़ार परिवारों का दर्द आखिर कौन दूर करेगा?

तारिक़ आज़मी

पिछले भाग में आपने पढ़ा कि किस तरीके से अगर पक्की बाज़ार का स्लाटर हाउस शुरू हो जाता है तो केवल वाराणसी जनपद से सम्बन्धित कुरैश समुदाय के 25 हज़ार परिवार को ही नही बल्कि आसपास के जनपद में भी कारोबार को एक सहारा मिल जायेगा। यहाँ आपको याद दिलाता चालू कि सरकार ने कभी भी स्लाटर हाउस को पूरी तरीके से बंद कर देना अथवा मांस कारोबार को ख़त्म कर देने की बात कभी नही कही। फिर आखिर कौन से ऐसे कारण है कि लगभग बनकर तैयार की कगार पर पहुच चुके स्लाटर हाउस का काम रुक गया है और स्लाटर हाउस चालु नही हुआ है।

यहाँ कुरैश समुदाय के मांस विक्रेताओं की दूसरी समस्या ब्रिकी हेतु लाइसेंस रिनिवल न होने अथवा कोई नया लाइसेंस नही मिलने की भी आती है। हमने इस सम्बन्ध में नगर निगम वाराणसी में संपर्क किया। हमने पशु चिकित्साधिकारी डॉ अजय प्रताप सिंह से बात किया तो उन्होंने बताया कि पहले लाइसेंस रिनिवल का काम हमारे कार्यालय द्वारा होता था। मगर अब ये काम फ़ूड एंड सेफ्टी विभाग को चला गया है। जिसके बाद हमने जिला अभिहित अधिकारी संजय सिह से बात किया। जिसके बाद स्थिति काफी कुछ साफ़ होती दिखाई दी। लाइसेंस हेतु सबसे पहली और बड़ी शर्त के तहत है कि “स्लाटरिंग का काम केवल स्लाटर हाउस में होगा”। अब जब पूर्वांचल में कोई स्लाटर हाउस है ही नही तो फिर कैसे लाइसेंस बिक्री हेतु मिल सकता है। ये बात भी विभाग की ठीक है। ऐसा ही कहना जिला अभिहीत अधिकारी आजमगढ़ और मऊ का भी है। अगर वाराणसी तक में कोई स्लाटर होता तो वहा भी लाइसेंस बिक्री का जारी हो जाता। मगर स्थिति ऐसी है कि स्लाटर हाउस निर्मित ही नही है।

जब हमने स्लाटर हाउस सञ्चालन की बात जिला अभिहित अधिकारी से किया तो उन्होंने साफ़ साफ़ कहा कि हमारे पास ऐसे कोई भी निर्देश नही आये है कि स्लाटर हाउस चालु हो गया है। ऐसा निर्देश आते ही हम लाइसेंस की प्रक्रिया को शुरू कर देंगे। संजय सिंह ने साफ़ साफ़ कहा कि हम क्यों इस प्रक्रिया को रोकेगे। हम खुद एक मॉडल मीट शॉप का मोड्यूल तैयार कर रहे है। वैसे जिला अभिहित अधिकारी संजय सिंह की बातो को दुसरे तरफ से भी देखे तो एक बैठक में प्रमुख सचिव अनीता सिंह ने भी इस बात पर जोर देकर कहा था कि हमको एक मॉडल मीट शाप का निर्माण करना चाहिए। मगर बात यहाँ आकर रुक जाती है कि स्लाटर हाउस का निर्माण ही मुकम्मल नही हुआ है।

इस सम्बन्ध में नगर आयुक्त प्रणय सिंह ने हमसे बात करते हुवे कहा कि “पक्की बाज़ार के स्लाटर हाउस का निर्माण क्यों रुका है, इसकी जानकारी करवा लिया जाता है, अगर कोई वैधानिक बाधा नही है तो निर्माण कार्य को पूरा जल्द ही करवा लिया जायेगा। प्रकरण संज्ञान में अब आ चूका है। जल्द ही निस्तारण कर लिया जायेगा।” नगर आयुक्त से बात करने के बाद भी अभी तक यह स्थिति साफ़ नही हो पाई है कि आखिर काम रुका क्यों? क्योकि वैधानिक कोई भी समस्या इस सम्बन्ध में है ये हमारी जानकारी में तो नही आ सका। वैसे यहाँ गौर करने वाली बात ये है कि सरकार मंचो से स्लाटर हाउस बंद करने को अपनी उपलब्धियों में गिनवाती रहती है।

सामाजिक कार्यकर्ता मनीष शर्मा कहते है कि कुरैश समाज को संगठित करने की आवश्यकता है। संविधान हमको खाने की अनुमति देता है। एनजीटी ने 2012 में अपने नियम बनाये थे। स्लाटर हाउस से सम्बन्धित एनजीटी के नियम पर्यावरण से सम्बंधित है जो एक बड़ा मुद्दा है। वर्त्तमान सरकार ने इस सम्बन्ध में कुछ नही किया और इसको अपनी उपलब्धी बताती है। जबकि हाई कोर्ट ने इस सम्बन्ध में दिशा निर्देश भी जारी किये थे। अगर पुरानी सरकार की कार्यशैली को देखे तो वह भी कही से इस मामले में खुद को सवालो से अलग नही कर सकता है। एनजीटी के निर्देश 2012 में आये थे, तत्कालीन सरकार ने अगर उस समय से प्रयास किया होता तो प्रदेश के हर एक जनपद में स्लाटर हाउस बनकर तैयार हो चूका होता। मगर पूर्व सरकार ने भी इस मामले में कोई ध्यान नही दिया। जिसका लाभ उठा कर वर्त्तमान सरकार ने स्लाटर हाउस ही बंद कर डाला।

वैसे मामले में हमने कुरैश समाज के कुछ लोगो से भी बात करने की कोशिश किया। यहाँ हम आपको एक बार फिर बताते चले कि “कसाई” शब्द को जितना क्रूर समझा जाता है उतना ही ये समाज भोला और शांत है। हमारे सवालो का जवाब कोई भी कैमरे पर देने को तैयार नही था। मगर स्थिति ऐसी है कि हर एक परिवार रोज़गार को लेकर परेशान है। खुद की मेहनत, खुद का पैसा लगाने के बाद भी कारोबार ऐसा है कि कोई भी हड़का कर चला जाता है। रोज़गार की मार झेल रहे इस समाज ने दुसरे कारोबार को रुख किया। मगर पुश्तैनी कारोबार के अलावा और कोई कारोबार न आने के कारण अधिकतर लोग नए कारोबार में फेल ही होते दिखाई दिए है। कुछ नवयुवको ने नौकरियों का भी सहारा लेकर परिवार का पालन पोषण का ज़िम्मा ले रखा है।

सबसे अचम्भे की बात तो ये है कि इस समाज के वोट पाने के लिए सभी दल जो खुद को सेक्युलर कहते है अपना दंभ भरते है। मगर किसी भी दल के घोषणा पत्र में इनका मुद्दा नही है। अगर सिर्फ वाराणसी के दो विधानसभा सीट उत्तरी और दक्षिणी पर पर नज़र डाले तो 15-20 हज़ार वोट की एक विधानसभा में इस समाज की पॉकेट है। वही कैंट विधानसभा में इस समाज का 10-15 हज़ार वोट पॉकेट है। मगर समाज के लिए कोई भी दल सामने नही है। हमने इस सम्बन्ध में शहर उत्तरी से चुनाव लड़ रहे सपा प्रत्याशी अशफाक अहमद डब्लू से भी सवाल किया था। मगर अख्लियत के हक़ की बात करने वाले अशफाक अहमद डब्लू जो इसी समाज का हिस्सा भी है हमारे सवालो पर अपना दामन बचा कर निकल पड़ते है। आखिर कैसी रहनुमाई का दावा कर रहे है लोग?

बेशक कुरैश समाज को इस समय सबसे ज्यादा कमी पूर्व विधायक अब्दुल कलाम की खल रही है। इसी कुरैश समाज से आने वाले पूर्व विधायक अब्दुल कलाम इस समाज की हर एक छोटी बड़ी समस्याओ के लिए खड़े रहते थे। मगर उसके बाद किसी ने इस समाज का कोई भी हित सोचा हो ऐसा कोई उदहारण हमारे सामने नही है। समाज के हिस्सा होकर बड़ी बड़ी बाते करना और अख्लियत को अधिकार दिलवाने की बात तो बहुत आसान है। मगर सच में उसके लिए संघर्ष करना एक अलग बात है। पिछले पांच साल से कुरैश समाज अपने अधिकार के लिए और इस स्लाटर हाउस के लिए जिस लड़ाई को लड़ रहा था उसमे इस समाज से आने वाले समाज सेवको के नाम तो कभी नही थे। चाहे वह टिकट पाए हुवे प्रत्याशी हो अथवा टिकट मांगने वाले। किसी ने समाज के हितो हेतु अपना प्रयास नही किया। फिर आखिर क्या ये समाज केवल एक समर्थक, एक वोटर ही होकर रह जायेगा। नाम क्या लेना, स्थिति स्पष्ट केवल इससे आप कर सकते है कि हमने हर एक दल के हर एक प्रत्याशी से बात किया। मगर नतीजा ये रहा कि कोई भी कुछ बोलने से दामन बचाता हुआ दिखाई दे रहा है।

आखिर कौन है जिसको फायदा है इस स्लाटर हाउस के न खुलने का

हमने इस सम्बन्ध में ये समझने का प्रयास किया कि आखिर कौन है जिसको इस स्लाटर हाउस के न खुलने का फायदा है। तो नतीजे एकदम चौकाने वाले रहे है। बेशक सियासत को अपने मुफाद दिखाई देते हो। सियासत एक तरफ अख्लियत के वोटो को अपनी जागीर समझने और दुसरे तरफ अख्लियत के मुखालफत पर अपना वोट साधने में जुटी है। मगर इस सबके बीच खाद माफिया अथवा शिक्षा माफिया के तरह लगता है एक और सिंडिकेट जैसे जन्म ले चूका हो “मांस माफिया” के तौर पर। हम एकदम नही कहेगे कि कटान होती ही नही है। मगर ये अवैध रूप से होती है। अब आप सोचे कि एक काम जो वैध तरीके से हो सकता है उसको अवैध तरीके से करवाने का किसको फायदा है?

कुरैश समाज से आने वाले बड़े सियासी नामो में सबसे बड़ा नाम उत्तर प्रदेश का हाजी याकूब कुरैशी रहा है। अपने विवादित बयानों को लेकर मेरठ के इस बड़े नेता और कुरैश समाज का प्रतिनिधित्व करने वाले नेता के तौर पर हाजी याकूब कुरैशी का नाम आता है। एनजीटी की पर्यावरण को लेकर आये नियमो के समय हाजी याकूब कुरैशी सरकार में कद्दावर मंत्री पद पर रहे। अब हाजी याकूब कुरैशी की उपलब्धि को कुरैश समाज के नज़रिए से देखे तो अल फहीम के अलावा कोई और बड़ी उपलब्धी नही रही है। यदि सरकार में कद्दावर पद रखने वाले और 11 लाख तक का इनाम किसी के सर कलम करने पर रखने वाले हाजी याकूब कुरैशी ने कुरैश समाज का हित चाहा होता तो उस समय ही स्लाटर हाउस को नियमो के तहत बनवाने की कवायद किये होते।

बहरहाल, स्थिति ऐसी है कि एक स्लाटर हाउस सिर्फ वाराणसी के 25 हज़ार परिवार को रोज़गार नही बल्कि वाराणसी के आसपास के जनपदों में भी रोज़गार मुहैया करवा सकता है। मगर बात फिर वही आकर रुक जाती है कि स्लाटर हाउस बनकर तैयार तो हो। लगभग डेढ़ साल से रुके इसके काम को नगर आयुक्त कैसे प्रणय सिंह कब तक शुरू करवाते है ये देखने वाली बात होगी। मगर इस स्लाटर हाउस का निर्माण जल्द हो जाने की उम्मीद तो हम लगा ही सकते है। कहते है उम्मीद पर दुनिया कायम है तो उसी उम्मीद पर कुरैश समाज भी कायम है।

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