तारिक़ आज़मी
आशा के अनुरूप तो एकदम ही बजट नही रहा। बजट पर दो तरीके के लोग नज़रे गडाए बैठे रहते है। पहला कार्पोरेट घराना को कार्पोरेट टैक्स में मिली छुट का लुत्फ़ उठा रहा है। दूसरा होता है हमारे आप जैसा मिडिल क्लास इंसान। हम मिडिल क्लास वालो की भी बड़ी दिक्कते है। अपने क्लास से ऊपर जा नही सकते है। नीचे आने में रूह फना होने लगती है। टैक्स पर छुट का इंतज़ार था। सोचा था कि जो तनी मुनि बचत है उसकी इस बार क्रिप्टो करंसी ले लिए जायेगा। मगर निराशा हाथ लगी। क्रिप्टो पर भी होने वाली इनकम का 30 फीसद सरकार को चाहिए।
अब काका होते तो कहता उनसे कि पार्टनर बन जाओ। इनकम का 30 फीसद ले लो, और नुक्सान का भी 30 फीसद दे दो। मगर काका को क्या है। सरकारी पेंशन है। मौज ही मौज है। वैसे थोड़ी उम्मीद 60 लाख नौकरी की बंधी है कि हो सकता है कि नौकरिया ही हाथ लग जाये। मगर फिर ध्यान आता है कि नौकरी करने की उम्र भी चली गई है। अब तो बस एक ही रास्ता है कि टैक्स जैसे पहले दिया गया वैसे ही देते रहे।
महंगाई का क्या है? ससुरी कमाई खाए जा रही है। मगर कमाई में टैक्स तो देना ही पड़ेगा। टैक्स स्लैब में कोई बदलाव न होने से हमारे जैसे मिडिल क्लास लोगो को उदासी ही हाथ लगी है। अब ममता दीदी तो बंगाल में बैठ कर बोल दी है कि उन्होंने सरकार पर तंज कसते हुए इसे एक पेगासस स्पिन बजट बताया। उन्होंने कहा कि बेरोजगारी और महंगाई से कुचले जा रहे आम लोगों के लिए बजट शून्य है। सरकार बड़े शब्दों में खो गई है, जिसका कोई मतलब नहीं है।
वही शशि थरूर भी अपनी भड़ास निकाल बैठे है। शशि थरूर ने कहा कि बहुत स्पष्ट है कि जहां तक डिजिटल मुद्रा का संबंध है, सरकार उस दिशा में सही कदम बढ़ा रही है और मैं इसकी आलोचना नहीं करूंगा। लेकिन इस बजट से आम लोगों के लिए मेरी चिंता बढ़ गई है। अब थरूर साहब की बात से समझ में आ रहा है कि उन्हें भी इनकम टैक्स देने की चिंता बढ़ रही है। वैसे उनकी इनकम ज्यादा होगी तो टैक्स भी ज्यादा देना होगा। मगर ईहा तो हम जैसे लोगो की चिंता बढ़ी है। सोचा टैक्स स्लैब बढेगा तो बचत से एक बुर्ज़ खलीफा बनाया जायेगा। मगर यहाँ तो खलीफागिरी ही निकल पड़ी।
दिक्कत तो तब है जब असली गहनों की मांग करने वाली काकी को काका जमकर अर्तिफिशियल ज्वेलरी पहनाते थे। कहते थे कि “अरे सोने से कम नही है, खो जाए तो गम नही है।” अब काका की भी चिंता बढ़ गई है कि उहो महंगा हो जायेगा। मजा तो कार्पोरेट को आ गया जब उनका टैक्स 12 फीसद से घट कर 7 फीसद हो गया। वैसे कार्पोरेट बढेगा तो आम जनता का जेब भी बढ़ जायेगा शायद ऐसा ही सोचते होंगे लोग। मगर हम मिडिल में रहने वाले मिडिल क्लास का करे भाई। चलो खाता बही संभालो और जुट जाओ उसी पुरानी स्कीम पर टैक्स जमा करने के लिए।
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