उत्तराखंड: मतदान हुआ संपन्न, अब सियासी अटकले हुई तेज़ कि किस करवट बैठेगा सियासत का ऊँट

मो0 कुमेल

डेस्क. पिछले दो सालों से उत्तराखंड में कोरोना महामारी का साया है। कोरोना महामारी के साये में प्रचार की फीकी रंगत के बीच 65.10 प्रतिशत मतदान को चुनाव आयोग से जुड़ी मशीनरी बड़ी उपलब्धि मान रही है। उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद पहले तीन विस चुनाव में मत प्रतिशत में लगातार वृद्धि हुई। हालांकि, वर्ष 2017 के चुनाव में करीब एक प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई थी।

उत्तराखंड के राजनीतिक इतिहास में अंतरिम के बाद पहली विधानसभा के गठन के लिए वर्ष 2002 में हुए विधानसभा चुनाव 52.34 प्रतिशत वोट पड़े थे। जो अब तक का सबसे न्यूनतम आंकड़ा है। इसके बाद वर्ष 2007 में हुए चुनाव में मतों यह प्रतिशत बढ़कर 63.10 पर जा पहुंचा। वर्ष 2012 में बंपर वोट पड़े।

इस बार आंकड़ा पिछले चुनाव के इर्द-गिर्द ही है। मतदान को लेकर राजनीतिक विश्लेषक और पार्टियां अलग-अलग आकलन कर रही हैं। भाजपा को पूरा विश्वास है कि जनता ने सत्ता की चाबी पुन: उसे सौंपी है तो कांग्रेस भी इस बात को लेकर आश्वस्त दिख रही है कि राज्य में सत्ता परिवर्तन होने जा रहा है।

मुद्दों की अगर बात करें तो पांच साल राज करने और तीन-तीन मुख्यमंत्री बदलने के बाद भी भाजपा जनता के सामने कुछ खास उपलब्धियां नहीं रख पाई। भाजपा आखिरकार मोदी नाम के सहारे ही मैदान में उतरी। पिछले चुनाव में इसी मोदी मैजिक ने उसे प्रचंड बहुमत दिलाया था। भाजपा को विश्वास है कि उत्तराखंड की जनता में मोदी को लेकर अब भी क्रेज बरकरार है और उसे इस बार भी फायदा जरूर मिलेगा।

वहीं, कांग्रेस जहां इसी बात को मुद्दा बनाते हुए जनता के बीच पहुंची, अगर भाजपा ने पांच साल विकास किया है तो उसे मोदी मैजिक की जरूरत क्यों पड़ रही है। कांग्रेस महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और अवैध खनन जैसे मुद्दों के साथ चुनाव में जनता के द्वार गई। वहीं चारधाम चार काम जैसे लोक लुभावनी घोषणाओं ने भी जनता का ध्यान खिंचा है। इसलिए उसे विश्वास है कि उत्तराखंड की जनता ने उसके हक में मतदान किया है।

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