जाने आखिर क्या है रूस और युक्रेन विवाद का प्रमुख कारण और क्यों पूरी दुनिया की निगाहें टिकी है दोनों देशो पर, जाने दो अज़ीज़ दोस्त क्यों बन गए है एक दुसरे के दुश्मन

आफताब फारुकी

डेस्क. रूस और यूक्रेन यूरोप के दो बड़े देश हैं। हालांकि, रूस (17 मिलियन स्क्वेयर किलोमीटर) क्षेत्रफल में यूक्रेन से 28 गुना बड़ा है। अगर भारत से तुलना करें तो रूस भारत से 5 गुना बड़ा है, वहीं, यूक्रेन भारत से 3 गुना छोटा है। जनसंख्या के मामले में भी रूस यूक्रेन से कहीं आगे है। रूस की जनसंख्या 14.4 करोड़ है, वहीं यूक्रेन की जनसंख्या 4.4 करोड़ है। दोनों देशों में 1990 के बाद से प्रजनन दर में भी कमी आई है। वर्तमान में रूस में 1.5 और यूक्रेन में 1.2 प्रजनन दर है। भारत में यह 2.0 है और 2.1 को आदर्श प्रजनन दर माना जाता है, जिसे हर देश पाना चाहता है।

ये दोनों ही देश एक दुसरे के अभिन्न मित्र हुआ करते थे। अब रूस और यूक्रेन के बीच बढे तनाव पर दुनिया भर के देशों की निगाहें रूस, नाटो सेना और अमेरिकी रुख पर टिकी हुई हैं। यहां, यूक्रेन और रूस के बीच गर्म हुए माहौल के इतर यह जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर यूक्रेन क्यों नाटो में मिलना चाहता है? रूस को इससे क्यों एतराज है? और अमेरिका इसमें थर्ड पार्टी क्यों बना हुआ है? उसका मकसद क्या है…एक समय रूस का पक्का वाला दोस्त कहलाने वाला यूक्रेन आज उसका सबसे बड़ा दुश्मन कैसे बन गया है।

दरअसल, 1939 से 1945 तक दूसरा विश्व युद्ध चला और इसमें अमेरिका, फ्रांस, सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक संघ और ब्रिटेन ने मिलकर इटली और जापान के खिलाफ जमकर युद्ध किया। इस दौरान 1945 में अमेरिका ने सबसे आगे निकलते हुए जापान पर परमाणु बम गिरा दिया और इसी के साथ दूसरा विश्व युद्ध भी खत्म हो गया। हालांकि, यहां पर यूएसएसआर को यह बात चुभ गई कि अमेरिका के पास इतने घातक हथियार थे तो सहयोगी होने के नाते उसने बताया क्यों नहीं। यहीं से दोनों देशों के बीच शीत युद्ध की शुरुआत हो गई और दोनों देश दुनिया के अन्य देशों को अपने पाले में करने के उद्देश्य से आगे बढ़े। यही वह समय था जब नाटो नाम के एक संगठन का जन्म हुआ और इसे अमेरिका ने 12 देशों के समर्थन से बनाया। 1949 में जन्में नाटो में शुरू में 12 देश थे लेकिन समय के साथ अन्य देश भी इससे जुड़ते गए और अब ये 30 देशों का एक मजबूत संगठन बन गया है।

क्यों है नाटो से रूस को आपत्ति

नाटो में कुल 30 देश हैं जिसमें अल्बानिया (2009), बेल्जियम (1949), बुल्गारिया (2004), कनाडा (1949), क्रोएशिया (2009), चेक रिपब्लिक (1999), डेनमार्क (1949), इस्तोनिया (2004), फ्रांस (1949), जर्मनी (1955), ग्रीस (1952), हंगरी (1999), आइसलैंड (1949), इटली (1949), लातविया (2004), लिथुआनिया (2004), लक्जमबर्ग (1949), मोंटेनिग्रो (2017), नीदरलैंड (1949), नॉर्थ मेसीडोनिया (2020), नॉर्वे (1949), पोलैंड (1999), पुर्तगाल (1949), रोमानिया (2004), स्लोवाकिया (2004), स्लोवेनिया (2004), स्पेन (1982), तुर्की (1952), ब्रिटेन (1949) और अमेरिका (1949) का नाम शामिल है। इसमें से इस्तोनिया, लातविया और नॉर्वे की सीमा ही रूस से मिलती है, जो कि बेहद कम है। लेकिन यूक्रेन के नाटो में शामिल हो जाने के बाद रूस तक नाटो देशों की पहुंच का इलाका काफी बढ़ जाएगा।

ये रूस की सबसे बड़ी चिंता है और ब्लादिमीर पुतीन कभी नही चाहेगे कि नाटो की पहुच उनके देश तक हो सके। रूस को भी ये बात अच्छे से पता है कि अगर यूक्रेन भी नाटो का सदस्य बन गया तो नाटो रूस की एक लंबी सीमा तक पहुंच बना लेगा और फिर कुछ भी ऊपर-नीचे होने पर, सभी 31 देश मिलकर रूस पर हमला कर सकते हैं। यही कारण है कि रूस ने अमेरिका से कहा है कि वो विवाद से दूर रहे और यूक्रेन को नाटो में एंट्री न दे।

रूस अपने सैनिकों और हथियारों को यूक्रेन की सीमा पर तैनात कर चुका है, जिसे देखते हुए तमाम देश इस बात की आशंका जता रहे हैं कि रूस किसी भी समय यूक्रेन पर हमला कर सकता है। वहीं, इस आशंका को देखते हुए अमेरिका लगातार रूस पर प्रतिबंधों की धमकी देकर दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है। अमेरिका का कहना है कि अगर रूस यूक्रेन पर हमला करता है तो उसे वैश्विक स्तर पर कड़े प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा। इस तनातनी के बीच सवाल उठता है कि आखिर ये बवाल है किस बात पर है? तो इसका जवाब ये है कि खुद को असहज पाने के कारण यूक्रेन, नाटो से हाथ मिलाना चाहता है। वहीं रूस अमेरिका से आश्वासन चाहता है कि यूक्रेन को किसी भी शर्त पर नाटो में जगह न दी जाए।

क्यों है दुनिया को चिंता

रूस युक्रेन विवाद पर दुनिया के सभी देश चिंतित है। इसका कारण है कि रूस और यूक्रेन दोनों ही तेल और गैस के मामले में समृद्ध हैं। रूस के पास दुनिया का सबसे अधिक प्रमाणित गैस भंडार (48,938 बिलियन क्यूबिक मीटर) है और इससे भी खास बात ये है कि देश के गैस भंडार के 70 प्रतिशत से अधिक हिस्से पर मालिकाना हक या स्वामित्व सरकारी ऊर्जा कंपनी गैजप्रोम के पास है। यूरोपीय देशों को जितनी प्राकृतिक गैस की जरूरत पड़ती है, रूस उन्हें उसका एक तिहाई हिस्सा सप्लाई करता है। लेकिन अप्रैल 2021 के बाद उसने सप्लाई में बड़ी कटौती की है। हालांकि, रूस अगर यूक्रेन पर हमला करता है तो इस स्थिति में अमेरिका रूस पर कड़े प्रतिबंध लगाने की धमकी दे चुका है।

हमले की स्थिति में रूस पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद यूरोप को होने वाली गैस की आपूर्ति भी पूरी तरह बाधित हो सकती है। इससे पूरे यूरोप में ऊर्जा संकट उत्पन्न हो सकता है। इन सबके बीच अमेरिका की चांदी ही चांदी है। रूस पर प्रतिबंध लगाए जाने की स्थिति में उसे यूरोप को मनमाफिक कीमत पर गैस की सप्लाई करने का मौका मिलेगा। रूस के पास 80 अरब बैरल यानी दुनिया के कुल तेल भंडार का 5 प्रतिशत (सबसे बड़े तेल भंडारों में से एक) सिद्ध तेल भंडार है। वहीं, यूक्रेन में भी 395 मिलियन बैरल तेल और 349 बिलियन क्यूबिक मीटर गैस का एक बड़ा भंडार है। फिलहाल यूक्रेन पश्चिमी देशों (यूरोपियन देशों) और रूस के बीच एक कड़ी का काम करता है और रूसी गैस को यूरोपीय बाजारों में पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ऐसे में अगर युद्ध होता है तो गैस संकट का उत्पन्न होना तय है।

हमारी निष्पक्ष पत्रकारिता को कॉर्पोरेट के दबाव से मुक्त रखने के लिए आप आर्थिक सहयोग यदि करना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें


Welcome to the emerging digital Banaras First : Omni Chanel-E Commerce Sale पापा हैं तो होइए जायेगा..

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *