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पुलिस के लिए अभी भी अबूझ पहेली है इनामियां अपराधी “सलीम उर्फ़ मुख़्तार शेख”, आखिर कब पहुचेगा पुलिस का हाथ इसकी गिरेबाँ तक? जाने कौन है सलीम उर्फ़ मुख़्तार और कैसे फ़िल्मी अंदाज़ में हुआ फरार

तारिक़ आज़मी

वाराणसी। भले ही वाराणसी पुलिस कमिश्नरेट ने क्राइम ग्राफ कम करने के अपने प्रयास में कई बड़े इनामियां अपराधी को ज़मीदोज़ कर रखा है। किट्टू से लेकर दीपक वर्मा और मनीष सिंह सोनू तक पुलिस के सामने ढेर हो चुके है। मगर आज भी वाराणसी कमिश्नरेट पुलिस के लिए कई बड़े अपराध जगत के नाम ऐसे है जो वर्षो से सरदर्द बने हुवे है और पुलिस इनका आज तक सुराग नही लगा पाई है।

ऐसा ही अपराध जगत का एक बड़ा नाम है सलीम उर्फ़ मुख़्तार शेख। वर्ष 2013 में वाराणसी पुलिस के हाथ से सरका ये एक लाख का इनामिया अपराधी आज भी पुलिस की गिरफ्त से बाहर है। सबसे बड़ी बात तो ये है कि वाराणसी कमिश्नरेट पुलिस के पास इसकी जानकारी भी काफी कम है और जिस फोटो को वाराणसी पुलिस कमिश्नरेट अपने वांछित फाइल में लगा कर इसकी तलाश कर रही है वह लगभग 20 साल पुराना बताया जाता है।

सलीम उर्फ़ मुख़्तार शेख

सलीम उर्फ़ मुख़्तार के सम्बन्ध में पुलिस को बहुत कुछ जानकारी भी नही है। यहाँ तक कि हमने इसके फरार होने पर दर्ज हुवे मुक़दमे के सम्बन्ध में जानकारी हासिल करने के लिए कैंट थाने के कई चक्कर काटे मगर जानकारी हमको शुन्य ही हासिल हो सकी। सूत्रों की माने तो वाराणसी पुलिस इस अपराधी के पीछे पीछे लगता है भागते भागते थक चुकी है शायद इसीलिए इसको भूल बैठी है। वर्ष 2013 में जब सलीम उर्फ़ मुख़्तार शेख पुलिस के गिरफ्त से फरार हुआ तो पुलिस ने पसीने खूब बहाए थे। तत्कालीन थाना प्रभारी डीके सिंह ने सलीम की तलाश में जमकर छापेमारी तो किया था। भले निशाने गलत जगह लगते रहे हो और तत्कालीन थाना प्रभारी कैंट डीके सिंह इस उम्मीद से सलीम उर्फ़ मुख़्तार शेख के घर पर बार बार छापेमारी कर रहे थे कि वह पुलिस हिरासत से भागा है और सीधे अपने घर जायेगा। मगर हकीकत तो इसके उल्ट ही होती है।

वाराणसी कैंट पुलिस का वह प्रयास वाकई में एक ऐसी सोच के कारण था जो अमूमन होती ही नहीं है। कोई अपराधी अगर पुलिस हिरासत से भागेगा तो वह अपने घर क्या खुद को दुबारा गिरफ्तार करवाने के लिए जायेगा? शायद इस सवाल का जवाब तत्कालीन पुलिस तलाश कर लेती तो अब तक सलीम उर्फ़ मुख़्तार पुलिस गिरफ्त में होता। इस मामले में सलीम उर्फ़ मुख्तार शेख की तलाश में जुटी पुलिस अदालत से उसके लिए वक्त पर वक्त मांगती रही। मगर सलीम उर्फ़ मुख़्तार शेख पुलिस के हाथ नही लगा। इसकी गिरफ़्तारी का मामला 2017 में उच्च न्यायालय की चौखट तक पहुच गया था। उस समय पुलिस की नाकामी पर हाईकोर्ट ने तत्कालीन डीजीपी जावीद अहमद को तलब किया और सलीम उर्फ़ मुख्तार शेख को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश करने का हुक्म दिया। हाईकोर्ट के आदेश पर तत्कालीन डीजीपी ने सूबे के सभी पुलिस अधीक्षकों को फरमान जारी कर ‘मुख्तार को गिरफ्तार करने को कहा। इस फरमान से पुलिस के पसीने छूट गए, मगर सलीम उर्फ़ मुख्तार उसकी पकड़ में नही आया।

कौन है कुख्यात सलीम उर्फ़ मुख़्तार शेख और कैसे हुआ फ़िल्मी अंदाज़ में फरार

लखनऊ के आलमबाग़ थाना क्षेत्र स्थित इंदल होटल के पीछे गढ़ी कनौरा, हरचंदपुर के रहने वाले नजीर अहमद का ये बिगडैल बेटा पहले से ही मनबढ़ था। इस मनबढ़ युवक का पुलिस रिकार्ड में नाम एक अपहरण और हत्या के मामले में सामने आया। वर्ष 2000 में क्राइम नम्बर 20 जो अपहरण और हत्या का मामला था में सलीम उर्फ़ मुख़्तार शेख का नाम सामने आया। पुलिस ने इस मामले में जमकर पैरवी किया और वर्ष 2004 में अदालत ने इसको इस अपरहरण और हत्या तथा साक्ष्य छिपाने के मामले में सबूतों के आधार पर आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई। ये तभी से जेल में था। फिर वर्ष 2006 में सलीम उर्फ़ मुख़्तार शेख की जेल में बन रही पकड़ को कम करने के लिए उसका स्थानांतरण वाराणसी केंद्रीय कारागार में कर दिया गया।

सूत्र बताते है कि वाराणसी केंद्रीय कारागार में बंद सलीम उर्फ़ मुख़्तार शेख ने अपनी पकड़ बनानी शुरू कर दी। शायद वह जानता था कि वह आजीवन तो जेल से बाहर नही निकल सकता है हाँ पुलिस पकड़ से फरार होकर आज़ादी पा सकता है। इसी दरमियान वक्त गुजरता गया और सलीम उर्फ़ मुख़्तार 38 साल का हो गया। इस दरमियान कथित रूप से वर्ष 2013 के अप्रैल में माह में जेल की सीढ़ी चढ़ते समय गिर गया और उसके कुल्हे की हड्डी सरक गई। बताया जाता है कि 25 अप्रैल 2013 को जेल में सीढ़ी चढ़ते समय सलीम उर्फ़ मुख़्तार शेख गिर गया था। इससे उसकी कूल्हे की हड्डी सरक गई थी। जिसके बाद जेल प्रशासन ने उसे दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल में तीसरी मंजिल पर स्थित जनरल वार्ड में भर्ती कराया था। जहा उसका इलाज चल रहा था। दरमियान इलाज दो कांस्टेबल समरजीत और ओमप्रकाश उसकी सुरक्षा हेतु लगे थे। दरमियान इलाज 6 मई 2013 सोमवार की रात अपनी सुरक्षा में लगे पुलिस कर्मियों से सलीम उर्फ़ मुख़्तार शेख “सुसु” करके आने को कहकर गया। वह एक बार गया तो फिर ऐसा गया कि आज तक नही लौटा। “सुसु करने के बहाने सलीम अस्पताल से भाग निकला था।

उस समय उसकी सुरक्षा में लगे सिपाही समरजीत और ओमप्रकाश को देर रात इसकी जानकारी हुई। ऐसा पुलिस फाइल कहती है। मगर सूत्र बताते है कि दोनों सिपाहियों समरजीत और ओमप्रकाश ने सलीम उर्फ़ मुख़्तार शेख पर कुछ ज्यादा ही भरोसा कर रखा था और खुद बैठे रहे तथा इसको “सुसु” करने अकेले ही भेज दिया था। जब काफी देर तक वह वापस नही आया था तो इनको शक हुआ। जाकर देखा तो सलीम उर्फ़ मुख़्तार इन सिपाहियों के फाख्ता उड़ा चूका था। पहले तो इन सिपाहियों ने उसको पुरे अस्पताल में तलाशने की कोशिश किया। जब देर रात तक इनका प्रयास सफल नही हुआ तो इन्होने इसकी जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को प्रदान किया जिसके बाद फिर तत्कालीन थाना कैंट प्रभारी डीके सिंह मौके पर पहुचे थे और उन्होंने तफ्तीश किया।

दोनों सिपाहियों की तहरीर के बाद इस्पेक्टर डीके सिंह ने मुकदमा लिखने का आदेश दिया और मुकदमा दर्ज हुआ। मगर तब तक काफी देर भी हो चुकी थी। यहाँ से कैंट पुलिस की सुझबुझ की परीक्षा हुई मगर सलीम उर्फ़ मुख़्तार शेख इस समझदारी की परीक्षा को पास कर गया। सरकारी रिकार्ड के अनुसार इस्पेक्टर डीके सिंह ने कई बार इसके घर पर छापेमारी किया था। इस्पेक्टर डीके सिंह सोचते थे कि फरार अपराधी पुलिस की पकड़ से भाग कर अपने घर जाएगा और इंतज़ार करेगा कि पुलिस आये और उसको पकड़ कर ले जाए। इस सोच को भी आप समझ सकते है। एक छोटे सा अदना अपराधी भी ऐसी  गलती नही करेगा। जबकि सलीम उर्फ़ मुख़्तार शेख तो शातिर अपराधी था। फिर कैसे पुलिस ये उम्मीद कर रही थी कि वह भाग कर अपने घर जायेगा।

बहरहाल छापेमारी होती रही मगर सलीम उर्फ़ मुख़्तार शेख पुलिस के हत्थे नही पड़ा। आज भी सलीम फरार है और कागजों पर तो पुलिस इसको तलाश भी कर रही है। मगर लगता है कि शायद सलीम उर्फ़ मुख़्तार शेख को आसमान निगल गया या फिर ज़मीन खा गई है जो आज लगभग 9 सालो बाद भी वह पुलिस के लिए एक अबूझ पहेली बना हुआ है। हद तो इसको कहा जा सकता है कि वर्तमान आलमबाग इस्पेक्टर को मालूम ही नही है कि उनके थाना क्षेत्र का ये एक लाख का इनामियां अपराधी है और पुलिस इसकी तलाश कर रही है। यही नही कैंट थाना भी इस फरार और अपने यहाँ का इनामियां अपराधी होने के बावजूद इसकी जानकारी नही रखता है।

अब जब थाना लालपुर पाण्डेयपुर की स्थापना हो चुकी है तो इस अपराधी के लिए जवाबदेही उसकी भी बनती है। मगर इस्पेक्टर सुधीर सिंह को इस सम्बन्ध कोई ख़ास जानकारी ही नही होना इस बात को साबित कर रही है कि वाराणसी कमिश्नरेट पुलिस इसकी गिरफ़्तारी के लिए कितना प्रयास जारी कर रखा है। उस समय अगर ये कोशिश होती कि सलीम उर्फ़ मुख़्तार शेख जेल में किसके संपर्क में था तो शायद मुख़्तार शेख तक पुलिस के हाथ जाने कब के पहुच चुके होते और जेल की सलाखों के पीछे होता। बहरहाल, हमारी तफ्तीश इस अपराधी के ऊपर जारी है।

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