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विधानसभा चुनाव: नहीं दिख रही इस बार भाजपा के अभेद किले में भाजपा की राह आसान, मिल रही कड़ी टक्कर, देखे चुनावी संग्राम में क्या है हाल-ए-बनारस

तारिक़ आज़मी

वाराणसी प्रधानमन्त्री का संसदीय क्षेत्र है, साथ ही भाजपा का अभेद किला माना जाता रहा है। तीन दशक तक वाराणसी के दक्षिणी विधानसभा सीट पर भाजपा का कब्ज़ा रहा है। इस कब्ज़े को भाजपा बरक़रार रखने के लिए बेक़रार है। वही विपक्ष अपने तीन दशक का सुखा खत्म करने की जी तोड़ कोशिश कर रहा है। दक्षिणी विधानसभा के लिए सपा ने जहा महामृत्युंजय मंदिर के महंत किशन दीक्षित को टिकट देकर चुनाव मैदान में उतारा है। वही दुसरे तरफ बसपा ने दिनेश कसौधन पर अपना दाव लगाया है। वही आम आदमी पार्टी ने अजीत सिंह को उतारा है।

अब अगर शहर दक्षिणी के जातिगत समीकरण को देखे तो यहाँ मुस्लिम मतदाता 1 लाख 23 हज़ार के करीब है। इस वोट बैंक पर सपा ने अपना दावा पुरे चुनाव में किया है। सपा एमवाई (MY) फैक्टर पर पुरे चुनाव में काम कर चुकी है और उसको इस वोट पर सफलता भी मिली है। अगर इस फैक्टर पर नज़र डाले तो यादव मतदाता दक्षिणी में 17 हज़ार के करीब है। इसके अलावा गेम चेंजेर वोट बैंक ब्राह्मण समाज का है। यहाँ ब्राह्मण वोट 30 हज़ार के करीब है, जो इससे पहले भाजपा के पाले में दिखाई देता था। इसके अलावा मल्लाह समुदाय 18 हज़ार, भूमिहार 15 हज़ार के साथ एक बड़ा वोट बैंक वैश्य समाज का भी है जो 70 हज़ार है। दलित वोट 15 हज़ार है।

अब अगर जातिगत समीकरणों पर ध्यान दे तो इसके पहले तक ब्राह्मण तथा वैश्य वोट के साथ भाजपा के पाले में मल्लाह और भूमिहार वोट जाता रहा है। मगर इस बार दक्षिणी विधानसभा में सीन थोडा अलग ही दिखाई दे रहा है। यहाँ काटे की टक्कर तीसरे प्रत्याशी की दौड़ के मजबूती पर निर्भर कर रही है। सपा जहा एक तरफ एमवाई के साथ ही इस बार ब्राह्मण मतों को भी रिझाने की कोशिश कर रही है। जिस ब्राह्मण वोट पर भाजपा अपना वर्चस्व रखती थी, इस बार सपा प्रत्याशी किशन दीक्षित के वजह से उस वोट में सेंधमारी होने की संभावना दिखाई दे रही है।

दुसरे तरफ अजीत सिंह जो दो बार के पार्षद रह चुके है और लम्बे समय से इस चुनाव की तैयारी कर रहे थे का दावा भी काफी मजबूत दिखाई दे रहा है। अजीत सिंह इस बार झाड़ू लगाने के मूड में दिखाई देते हुवे दक्षिणी सीट से आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी है। वही वैश्य समाज के वोट पर भी अजीत सिंह अपनी पकड़ मजबूत करते दिखाई दे रहे है। अजीत सिंह इसके अलावा पक्के मोहाल में भी बढ़िया पकड़ रखने के कारण लड़ाई मजबूती से लड़ रहे है। इन सबके बीच बसपा के चुनाव प्रचार में भले वो दम नही दिखाई दे रही है, मगर दलित वोट पर अपना अधिकार मानने वाली बसपा के प्रत्याशी दिनेश कसौधन वैश्य समाज से आने के कारण वैश्य मतों पर भी अपनी पकड़ बताते है।

इन सबके बीच अगर वोट के नफे नुक्सान को देखे तो हर एक प्रत्याशी अपनी जद्दोजेहद करता हुआ दिखाई दे रहा है। मामला त्रिकोणीय मुकाबले में फंसता अभी तक तो दिखाई दे रहा है। इसमें अगर बसपा अपने वोट बैंक पर पकड़ मजबूत करती है तो फिर मामला एक नजदीकी हार-जीत पर आकर टिक जाएगा। अजीत सिंह को हल्के में भाजपा नही लेना चाहती है। वही सबकी नज़र बसपा के ऊपर टिकी है। बसपा जितनी मजबूती से चुनाव लड़ेगी वह भाजपा को उतना धक्का पंहुचा रही है। वही भाजपा की निगाहें एआईएमआईएम प्रत्याशी परवेज़ कादरी पर टिकी है। परवेज़ कादरी के मजबूत होने का फायदा भाजपा को मिलना निश्चित है। इन सबके बीच इस बार सभी वर्ग के मतदाताओं की ख़ामोशी सभी प्रत्याशियों के अन्दर बेचैनी पैदा करने के लिए काफी नज़र आ रही है।

वैसे जीते कोई भी मगर शहर दक्षिणी की सीट पर कांटे की टक्कर एक रोचक सियासी मुकाबला दिखा रही है। कोई भी दल किसी भी तरीके का दाव इस्तेमाल करने में कोई भी कोशिश बाकी नही छोड़ना चाहता है। सभी अपने सारे पत्ते प्रयोग कर रहे है। सब मिलाकर एक कडा और रोचक मुकाबला सामने दिखाई दे रहा है। जनता ख़ामोशी के साथ इस मुकाबले को अभी तक तो देख रही है। कही कोई किसी दल विशेष के लिए जनता में हलचल दिखाई नही दे रही है। अब 10 मार्च को स्थिति साफ़ होगी कि वाराणसी दक्षिणी विधानसभा क्षेत्र में विपक्ष का तीन दशक से चला आ रहा प्रयास सफल होता है या फिर इस बार फिर पुराना इतिहास दोहराया जाता है।

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