आदिल अहमद
डेस्क: शाहजहांपुर में होली के त्योहार पर लाट साहब का जुलूस निकलता है। फूलमती देवी मंदिर में लाट साहब के मत्था टेकने के बाद शुरू होने वाला ये जुलूस कोतवाली पहुच कर खत्म होता है। इस बार होली और शब-ए-बारात एक ही दिन पड़ने के कारण शाहजहांपुर प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है। पुलिस प्रशासन ने जुलूस को शांतिपूर्वक तरीके से निकालने के लिए मुस्तैदी से काम शुरू कर दिया है। एडीएम रामसेवक द्विवेदी ने कहा कि होली का त्योहार और शब-ए-बारात वाले दिन पड़ रहा है। उसी रोज जुमे की नमाज भी है। लिहाजा जोनल और स्टैटिक मजिस्ट्रेट को जुलूस के रास्ते में हर तिराहे और चौराहे पर तैनात किया जाएगा।
पहले ये जुलूस बहुत ही तहजीब के साथ निकाला जाता था मगर आजादी के बाद इस जुलूस का नाम लाट साहब का जुलूस रख दिया गया। अंग्रेजी शासन में आमतौर पर गवर्नर को लाट साहब कहा जाता था। बाद में लाट साहब बने व्यक्ति को जूते मारने का रिवाज शुरू हो गया जिस पर आपत्ति भी दर्ज कराई गई और मामला कोर्ट पहुंचा, मगर अदालत ने इस पर रोक लगाने से इंकार कर दिया।
जुलूस में एक व्यक्ति को लाट साहब बनाकर भैंसा गाड़ी पर बैठाया जाता है। फूलमती देवी मंदिर में लाट साहब के मत्था टेकने के बाद यह जुलूस शुरू होकर कोतवाली पहुंचता है। परंपरा है कि कोतवाल लाट साहब को सलामी देते हैं। जब लाट साहब कोतवाल से पूरे साल में हुए अपराधों का ब्योरा मांगते हैं। तब कोतवाल इनाम के तौर पर उन्हें नकद और एक शराब की बोतल देते हैं। यह जुलूस शहर के काफी बड़े इलाके से होकर गुजरता है। इस दौरान हुरियारे लाट साहब के जयकारों के बीच उन्हें जूतों से मारते हैं। इसी तरह छोटे लाट साहब के भी आधा दर्जन से ज्यादा जुलूस मोहल्लों में निकाले जाते हैं।
जुलूस के आयोजकों का कहना है कि लाट साहब की तलाश होली से एक महीने पहले शुरू कर दी जाती है। लाट साहब बनाए गए शख्स को गुप्त स्थान पर रखा जाता है और उसके खाने-पीने का पूरा ख्याल रखा जाता है। स्वामी शुकदेवानंद कॉलेज में इतिहास विभाग के अध्यक्ष डॉक्टर विकास खुराना ने कहा कि शाहजहांपुर शहर की स्थापना करने वाले नवाब बहादुर खान के वंश के आखिरी शासक नवाब अब्दुल्ला खान पारिवारिक विवाद के चलते फर्रुखाबाद चले गए थे और वर्ष 1729 में 21 वर्ष की उम्र में वह शाहजहांपुर वापस आए थे। एक बार होली के पर्व पर हिंदू और मुस्लिम दोनों ही धर्मों के मानने वाले लोग होली खेलने उनके घर गए। नवाब ने उनके साथ होली खेली। बाद में नवाब को ऊंट पर बैठाकर पूरे शहर का एक चक्कर लगाया गया। तब से यह परंपरा बन गई।
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