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ईद पर मेरा कपडा सिलो….! दर्जी बोला नही सिल सकते….! फिर क्या था? अना हुई शिकार और ईहे बात पर हो गई दालमंडी के खजूर वाली मस्जिद के पास चपक के “ढिशुम-ढिशुम”

तारिक़ आज़मी

वाराणसी: अगर लड़ना है तो फिर दाल में नमक तेज़। ऐसी कई कहावते आपने सुनी ज़रुर होंगी। मगर ज़बरदस्ती के झगड़े की ये कहावते सिर्फ दाल में नमक तक ही सिमित नही है। कभी कभी खुद को मठाधीश समझने और भौकाल जमाने के लिए भी हम बनारसी आपस में लड़ बैठते है। फिर तो शमशेर माने शेर और शमशीर माने तलवार हो जाता है। शेर को थप्पड़ मार सकते है।

ऐसा ही कुछ कल रात चौक थाना क्षेत्र स्थित पियरी चौकी में आने वाले दालमंडी के खजूर वाली मस्जिद के पास दरपेश आया। जहा ईद का कुर्ता पैजामा सिलने से दर्जी का इन्कार करना “ढिशुम-ढिशुम” का कारण बन गया। इस मामले में “ढिशुम-ढिशुम” तो दो चार हाथ ही हुई मगर “ले तेरी….! दे तेरी….!” काफी देर तक चली। जमकर एक दुसरे को देख लेने की बात हुई। तभी किसी ने इसकी जानकारी स्थानीय पुलिस को दे दिया। एक दुसरे को देखते लोगो को देखने पुलिस आ पहुची तो देखते ही देखते देखने वाले दिखाई नही दिए।

हुआ कुछ इस प्रकार कि खजूर वाली मस्जिद के पास मशहूर फ़राज़ टेलर की दूकान है। ईद का त्यौहार सर पर होने के वजह से फ़राज़ टेलर के पास काम जमकर है। काम की अधिकता के कारण लगभग हर एक दर्जी काम वापस कर दे रहा है क्योकि सभी को कपडे ईद से पहले चाहिए होते है। अब अधिपत्य की बात कहे या “भौकाल” की बात इलाके के इफ्तेखार मियाँ कपडे लेकर पहुच गए फ़राज़ टेलर के यहाँ सिलवाने। फ़राज़ टेलर के वकील मियाँ ने इफ़्तेख़ार को समय पर सिल कर न दे पाने की अपनी असमर्थता के कारण कपडा लेने से इंकार कर दिया।

फिर क्या था ? अना शिकार हो गई। अना की बात बन आये तो दुनिया फनाह हो सकती है। “शमशेर” माने फिर “शेर” और शमशीर माने तलवार हो जायेगा। रूस इतने बम युक्रेन पर नही फोड़ सकता जितने मौके पर “लोलाबम” (मुह से शब्दों का फेका हुआ बम) चल जायेगा। “समझता नही है बात को, चला आता है रात को और कहता है एक कप दूध मिलेगा चाय बनानी है।” “पुष्पा जानकार फ्लावर समझते थे लोग, वो तो बाद में पता चलता है फायर है।” ऐसे डायलाग मारने के पहले ध्यान रखियेगा कि ढाढी हो चाहे न हो, सफाचट मैदान हो भले, मगर दाढ़ी पर हाथ उल्टा खजुआना बहुते जरुरी है। वरना नम्बर कम मिलेगा और पुष्पा भी नाराज़ हो जाएगा। फिर तो दुनिया चिल्ला बैठेगी “ओमफ़ोओओओ………! दुर्राते काट रही है, रे भईया ओमफ़ोओओओ…….!”

इफ़्तेख़ार मियाँ को रोज़ा भी चाप के लग गया था। बात तेरी मेरी से शुरू हुई तब तक मौके पर भीड़ इकठ्ठा होने लगी। इफ्तेखार के तरफ से नफीस, अनीस, वसीम, वकार, नाटे और काले सभी इकठ्ठा हो गए। दुसरे तरफ से फ़राज़ की जानिब से वकील, फैज़ और वहीद ने मोर्चा संभाल लिया। वैसे लोगो की माने तो फ़राज़ टेलर की बातो में “ऐठन” बहुत थी और शुरुआत उसी “ऐठन” से हो गई। पहले मुहा चाहि हुई। फिर थोडा ढिशुम ढिशुम हुई। ये ढिशुम ढिशुम बहुते जरा सी रही काहे की छुडाने वाले लड़ने वालो से ज्यादा था। इस दरमियान आसपास के लोगो ने छुड़ा दिया तो “ले तेरी”, “दे तेरी” काफी देर तक होती रही। “तुझे देख लेंगे”। “तुझे सुन लेंगे” ये तो बनारसी अंदाज़ में जमकर हुआ। आसपास वाले लोग समझा रहे थे, हटा रहे थे। मगर बात खत्म होने का नाम नही ले रही थी।

इसी दरमियान किसी ने इस “ढिशुम-ढिशुम” की जानकारी पुलिस को प्रदान कर दिया। पास ही पैदल गश्त कर रहे पियरी चौकी इंचार्ज कुछ ही देर में मौके पर पहुच गए। अचानक पुलिस को आता देख एक दुसरे को देखने की बात करने वाले दिखाई देना बंद हो गए और मौके पर शांति ऐसे स्थापित हो गई जैसे रूस और युक्रेन में समझौता हो गया हो। पुलिस मौके पर आती है। हालात का जायजा लेती है और वापस चली जाती है। समाचार लिखे जाने तक किसी भी पक्ष के तरफ से कोई तहरीर नही पड़ी है।

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