तारिक़ आज़मी
मुल्क में आज जुमा-तुल-विदा यानी अलविदा की नमाज़ पुरे अकीदत के साथ अमनो सुकून संग संपन्न हुई। मुल्क के मुख्तलिफ कही से भी किसी अप्रिय घटना की जानकारी नही आ रही है। आज हर एक रोज़दार नमाज़-ए-जुमा के बाद नम आँखों से इस मुकद्दस और रहमतो के महीने को “अलविदा ओ अलविदा माहे मुबारक अलविदा, ये लो कि रुखसत हो चला माहे मुबारक अलविदा” कह कर रुखसत की तैयारी किया।
गौरतलब हो कि इस्लाम में, शुक्रवार इबादत और अन्य नेक कामों के लिए सबसे उल्लेखनीय दिन है। यह सभी मुसलमानों के लिए सप्ताह की ईद की तरह है क्योंकि ईद और शुक्रवार के बीच काफी समानता है। मुक़द्दस कुरआन की आयत 62:9 में रब्बुल आलमीन इरशाद फरमाता है कि “ऐ ईमान वालो, जब जुम्मे के दिन की नमाज़ का आह्वान किया जाता है तो अल्लाह की याद की तरफ़ जल्दी करो और ख़रीद-बिक्री (सारे सांसारिक धंधे) को छोड़ दो।” पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया है कि “सबसे अच्छा दिन जिस पर सूरज उग आया है वह शुक्रवार है; उस दिन, आदम बनाया गया था, उसे स्वर्ग में भर्ती कराया गया था, और उसे वहाँ से निकाल दिया गया था। आपके सबसे अच्छे दिनों में शुक्रवार है।”
शुक्रवार का महत्व सप्ताह के अन्य दिनों की तुलना में बहुत अधिक है। आका सरवरे कायनात पैगंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इरशाद फरमाया है कि “अल्लाह उस व्यक्ति के दो शुक्रवार के बीच किए गए गुनाहों (पापों) को मुआफ करता है जो नियमित रूप से शुक्रवार की नमाज अदा करते हैं”।
इस्लाम में जुमा के सभी दिनों में, जुमा-तू-विदा सबसे शानदार शुक्रवार है और प्रार्थनाओं की स्वीकृति के लिए सबसे महत्वपूर्ण दिन है। पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के सहाबियो (साथियों) में से एक हज़रत जाबिर इब्न अब्दुल्ला अल-अंसारी (रहमतुल्लाह अलैहि) कहते हैं “मैंने रमज़ान के आखिरी शुक्रवार को अल्लाह के रसूल से मुलाकात की। मुझे देखते ही उसने कहा, “जाबिर….! यह रमजान का आखिरी शुक्रवार है। इस प्रकार आपको निम्नलिखित कहकर इसे विदाई देनी चाहिए कि “फा-इन जलतहू फजल्नी मरहुमन वा ला ताज’अलनी महरुमन” यानि “या अल्लाह: (कृपया) इसे इस महीने में हमारे उपवास का अंतिम न बनाएं। “लेकिन अगर आप ऐसा तय करते हैं, तो (कृपया) मुझे अपनी दया प्रदान करें और मुझे (इससे) वंचित न करें।”
एक बार किसी ने हज़रत अली से कहा: “हजरत अनगिनत नमाज़े मुझसे चूक गई हैं, जिन्हें भरने की कुवत मेरे पास नहीं है। मुझे क्या करना चाहिए?” हज़रत अली (रहमतुल्लाह अलैही) ने इरशाद फ़रमाया कि “जिसने कई नमाज़ों को याद किया है और उन्हें पूरा नहीं कर सकता है, उसे रमजान के मुक़द्दस महीने के आखिरी शुक्रवार को एक सलाम के साथ चार रकात नमाज़ पढ़नी चाहिए।
आज जुमा तुल विदा के साथ, हम साल के सबसे शानदार महीने रमजान अल-मुबारक के अंत की ओर बढ़ रहे हैं। जुमा-तिल-विदा या रमजान का आखिरी शुक्रवार उपवास के इस पवित्र महीने की विदाई के उपलक्ष्य में होता है। इस जुमा-तुल-विदा के मौके पर हम रब की बारगाह में इल्तेजा करते है कि कि “अये दोनों जहा के मालिक, या रुब्बुल आलमीन तू हमारे हर एक पाठक की तमाम जायज़ तमन्नाओ को पूरा कर दे, या रब हमारे प्यारे मुल्क में अमन-ओ-सुकून अता फरमा। जो बेरोजगार है उन्हें हलाल रोज़ी अता फरमा, जो परेशानहाल है उनकी परेशानियों से उन्हें निजात दिला। जो बीमार है उन्हें शिफा अता कर। या रब हमारे हर एक पाठक को दुनिया की तमाम खुशियाँ नसीब फरमा…..!अमीन……!
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