तारिक़ आज़मी
कानपुर: जनपद के कानपुर आउटर पुलिस का कारनामा आज जग ज़ाहिर हो गया है। मध्य प्रदेश के सीधी जनपद में पत्रकारों को नंगा थाने पर खड़ा कर फोटो खीचा गया था। उन पत्रकारों के शरीर पर सिर्फ कच्छा (अंडरवीयर) था। कम से कम मध्य प्रदेश की सीधी पुलिस ने पत्रकारो के शरीर पर कच्छा छोड़ दिया था कि इज्ज़त को उसी से ढक ले। मगर कानपुर जनपद की कानपुर आउटर पुलिस के महाराजपुर थाने ने तो इससे भी दो हाथ आगे की कहानी कर दिया और कच्छा भी उतरवा लिया। पूरा नग्न करने के बाद उस पत्रकार के गले में आईकार्ड टांगा गया। फिर उसका नग्न अवस्था में वीडियो बनाया गया।
हम जर्नलिस्ट क्लब के अभय त्रिपाठी को बधाई देते है। कल जर्नलिस्ट क्लब के सदस्यों और अन्य पत्रकारों के द्वारा जब प्रदर्शन हुआ तो उसमे एक बात मुख्य रूप से चर्चा का केंद्र रही कि घटना वाले दिन महाराजपुर थानेदार ने प्रेस क्लब में फोन किया था, उसके बाद से पत्रकार चन्दन जायसवाल पर अत्याचार की इन्तेहा हो गई। अब अगर इस चर्चा पर ध्यान दे तो आखिर प्रेस क्लब क्या पत्रकारों को प्रमाणित कर रहा है कि कौन पत्रकार है? कौन नही है? ये तो फिर वही स्थिति हो गई जो वर्ष 2015-16 में हुआ करती थी, जिसके खिलाफ मैंने आवाज़ उठाई थी और मैंने विरोध जमकर किया था। आखिर प्रेस क्लब होता कौन है किसी को प्रमाणित करने वाला कि अमुक इंसान पत्रकार है और फलनवा फर्जी है। फिर जो संस्था मुसीबत के समय अपने सदस्य का साथ न देकर उसको अपनी संस्था से निष्कासित कर दे रही है वह भला पत्रकार हितो की रक्षा करने का दावा कैसे कर सकती है। फिर कुशाग्र पाण्डेय हुवे या फिर अवनीश दीक्षित खुद को पत्रकारों का मसीहा समझने की भूल कैसे कर रहे है?
हम इस बात की पुष्टि तो नही करते है कि प्रेस क्लब ने घटना में क्या किया, क्या नही किया। कल विरोध प्रदर्शन में जो चर्चा थी उसको आधार माने तो बात ये बिलकुल गलत है कि किसी को कोई संस्था द्वारा प्रमाणित किया जाए। जिस लम्हे की घटना है उस लम्हे में तो कम से कम चन्दन जायसवाल प्रेस क्लब का सदस्य था। दुसरे दिन उसका निष्कासन होता है। तो फिर अपने सदस्य के बारे में अगर ऐसा कुछ कहा गया जो उसके हितो की रक्षा के बजाए उसका अहित करे तो बेशक ये शर्मनाक है।
ये उतना ही शर्मनाक है जितना पुलिस द्वारा नंगा करने का प्रकरण शर्मनाक है। हकीकत में इसकी जाँच होनी चाहिए कि चौकी इंचार्ज और महाराजपुर थानेदार ने किसको उस रात फोन किया था। उनकी काल डिटेल के आधार पर वह नम्बर सार्वजनिक किया जाना चाहिए जिससे दूध का दूध और पानी का पानी हो जाए। अगर प्रेस क्लब पर ये आरोप झूठा है तो यह भी साबित हो जायेगा और प्रेस क्लब की प्रतिष्ठा सलामत रहेगी। अगर आरोप में सत्यता है तो कम से कम ये बात तो साबित हो जाएगी कि रक्षक के रूप में आखिर भक्षक कौन है? कौन है जिसने प्रेस क्लब की प्रतिष्ठा पर धक्का मारा, जिसके कृत्यों से सिर्फ चन्दन जायसवाल शर्मसार नही है बल्कि पूरा पत्रकार समाज ही शर्मसार है।
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