पत्रकार नग्न काण्ड पर तारिक़ आज़मी की मोरबतियाँ: बेशक शर्मनाक है पुलिस की हरकत, मगर कानपुर प्रेस क्लब पर लगे आरोपों में अगर सत्यता है तो वो इससे भी ज्यादा शर्मनाक है
तारिक़ आज़मी
कानपुर: जनपद के कानपुर आउटर पुलिस का कारनामा आज जग ज़ाहिर हो गया है। मध्य प्रदेश के सीधी जनपद में पत्रकारों को नंगा थाने पर खड़ा कर फोटो खीचा गया था। उन पत्रकारों के शरीर पर सिर्फ कच्छा (अंडरवीयर) था। कम से कम मध्य प्रदेश की सीधी पुलिस ने पत्रकारो के शरीर पर कच्छा छोड़ दिया था कि इज्ज़त को उसी से ढक ले। मगर कानपुर जनपद की कानपुर आउटर पुलिस के महाराजपुर थाने ने तो इससे भी दो हाथ आगे की कहानी कर दिया और कच्छा भी उतरवा लिया। पूरा नग्न करने के बाद उस पत्रकार के गले में आईकार्ड टांगा गया। फिर उसका नग्न अवस्था में वीडियो बनाया गया।
शायद वर्दी का रौब था…! जमकर इज्ज़त को सार्वजनिक रूप से उतारा गया। कपडे क्या चन्दन जायसवाल के तन पर एक चिथड़ा भी नही था। मारपीट तो उसके साथ इतनी किया गया था कि वह बोल भी नही पा रहा था। घटना 19 अप्रैल की बताई जा रहा है। मामले में कानपुर प्रेस क्लब के द्वारा 20 अप्रैल को एक पत्र जारी कर उसको सार्वजनिक किया जाता है और चन्दन जायसवाल की प्रेस क्लब से सदस्यता खत्म कर दिया जाता है। शायद ये सबक उनके लिए बड़ा होगा जो कानपुर में खुद को प्रेस क्लब का सदस्य बनने के लिए किसी न किसी की “पत्तेचाटी” करते नही थकते है। “मुश्किल वक्त, कमांडो सख्त” की जगह कानपुर प्रेस क्लब ने शायद नई मुहीम चलाया कि “मुश्किल वक्त, चल तू अब कट”।
घटना की जानकारी कानपुर जर्नलिस्ट क्लब के महामंत्री अभय त्रिपाठी को हो गई। यहाँ तारीफ अभय त्रिपाठी की करना होगा कि चन्दन जायसवाल जो प्रेस क्लब का सदस्य था की बीच चौराहे पर उतरी आबरू बचाने के लिए सबसे पहले सामने वही शख्स आया। यहाँ ध्यान देने की बात ये है कि खुद को भगवान् का दर्जा दे बैठे कानपुर प्रेस क्लब के पदाधिकारियों और अभय त्रिपाठी में कभी तालमेल बहुत बढ़िया नही रहा। एक तरफ जहाँ पत्रकारों का मसीहा होने की खुशफहमी में कानपुर प्रेस क्लब जी रहा है। वही पत्रकार हितो की रक्षा के लिए कानपुर जर्नलिस्ट क्लब ने कई लडाइयां लड़ी। मामले की पूरी जानकारी अभय त्रिपाठी को होती है। अभय त्रिपाठी प्रकरण में डीजीपी से मुलकात करते है और मामले के जानकारी देते हुवे अपना विरोध दर्ज करवाते है। जिस पर आईजी कानपुर को जाँच कर कार्यवाही का आदेश होता है। मामला यहाँ से भी ठन्डे बस्ते में चला गया होता। मगर कहते है कि शायद ज़ालिम के ज़ुल्म को जग जाहिर होना था तो कथित रूप से पुलिस द्वारा बनाया गया चन्दन जायसवाल का वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो गया। जिसके बाद मामले में अभय त्रिपाठी के साथ पत्रकारों ने आईजी कार्यालय पर अपना विरोध दर्ज करवाया।
यहाँ खुद की इज्ज़त अब तार तार होते देख प्रेस क्लब डिफेन्स के मूड में आया और खुद का बड़ा वाला विरोध जिससे क्रांति आ जाती वह विरोध उसने ट्वीटर पर दिखाना शुरू कर दिया। शर्मनाक तो शब्द थे कि विरोध में जो ट्वीट किया गया उसमे आशा किया गया और खुद को ही अदालत समझ कर कहा गया कि “चन्दन जायसवाल अगर दोषी था तो उसको जेल भेजना चाहिए था ऐसे नंगा करने की घटना का विरोध करते है।” सच बताता हु गुरु कुशाग्र पाण्डेय और अवनीश दीक्षित तथा उनके साथी उनके चाहने वालो ने तो ट्वीटर पर ही क्रांति ला दिया होता। मगर उफ़…..! अभय त्रिपाठी जिसने सड़क पर क्रांति ला दिया और घटना के सम्बन्ध में चौकी इंचार्ज प्रद्युमन सिंह तथा सिपाही दरवेश सस्पेंड हो गए। यही नही मौके पर अन्य दरोगा संजीव कुमार, आशीष कुमार और कृष्णकांत को लाइन हाज़िर कर दिया गया। हेड कांस्टेबल पंकज विहान भी लाइन हाज़िर हुवे।
हम जर्नलिस्ट क्लब के अभय त्रिपाठी को बधाई देते है। कल जर्नलिस्ट क्लब के सदस्यों और अन्य पत्रकारों के द्वारा जब प्रदर्शन हुआ तो उसमे एक बात मुख्य रूप से चर्चा का केंद्र रही कि घटना वाले दिन महाराजपुर थानेदार ने प्रेस क्लब में फोन किया था, उसके बाद से पत्रकार चन्दन जायसवाल पर अत्याचार की इन्तेहा हो गई। अब अगर इस चर्चा पर ध्यान दे तो आखिर प्रेस क्लब क्या पत्रकारों को प्रमाणित कर रहा है कि कौन पत्रकार है? कौन नही है? ये तो फिर वही स्थिति हो गई जो वर्ष 2015-16 में हुआ करती थी, जिसके खिलाफ मैंने आवाज़ उठाई थी और मैंने विरोध जमकर किया था। आखिर प्रेस क्लब होता कौन है किसी को प्रमाणित करने वाला कि अमुक इंसान पत्रकार है और फलनवा फर्जी है। फिर जो संस्था मुसीबत के समय अपने सदस्य का साथ न देकर उसको अपनी संस्था से निष्कासित कर दे रही है वह भला पत्रकार हितो की रक्षा करने का दावा कैसे कर सकती है। फिर कुशाग्र पाण्डेय हुवे या फिर अवनीश दीक्षित खुद को पत्रकारों का मसीहा समझने की भूल कैसे कर रहे है?
हम इस बात की पुष्टि तो नही करते है कि प्रेस क्लब ने घटना में क्या किया, क्या नही किया। कल विरोध प्रदर्शन में जो चर्चा थी उसको आधार माने तो बात ये बिलकुल गलत है कि किसी को कोई संस्था द्वारा प्रमाणित किया जाए। जिस लम्हे की घटना है उस लम्हे में तो कम से कम चन्दन जायसवाल प्रेस क्लब का सदस्य था। दुसरे दिन उसका निष्कासन होता है। तो फिर अपने सदस्य के बारे में अगर ऐसा कुछ कहा गया जो उसके हितो की रक्षा के बजाए उसका अहित करे तो बेशक ये शर्मनाक है।
ये उतना ही शर्मनाक है जितना पुलिस द्वारा नंगा करने का प्रकरण शर्मनाक है। हकीकत में इसकी जाँच होनी चाहिए कि चौकी इंचार्ज और महाराजपुर थानेदार ने किसको उस रात फोन किया था। उनकी काल डिटेल के आधार पर वह नम्बर सार्वजनिक किया जाना चाहिए जिससे दूध का दूध और पानी का पानी हो जाए। अगर प्रेस क्लब पर ये आरोप झूठा है तो यह भी साबित हो जायेगा और प्रेस क्लब की प्रतिष्ठा सलामत रहेगी। अगर आरोप में सत्यता है तो कम से कम ये बात तो साबित हो जाएगी कि रक्षक के रूप में आखिर भक्षक कौन है? कौन है जिसने प्रेस क्लब की प्रतिष्ठा पर धक्का मारा, जिसके कृत्यों से सिर्फ चन्दन जायसवाल शर्मसार नही है बल्कि पूरा पत्रकार समाज ही शर्मसार है।