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छावनी बोर्ड के पूर्व उपाध्यक्ष/निवर्तमान सदस्य शैलेन्द्र सिंह ने छावनी बोर्डों के चुनाव अकारण लंबे स्थगन के संदर्भ में प्रधानमंत्री को लिखा पत्र

ए जावेद

वाराणसी: छावनी बोर्ड के पूर्व उपाध्यक्ष और निवर्तमान सदस्य शैलेन्द्र सिंह ने छावनी बोर्ड के चुनावों के टाले जाने पर प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखा है। पत्र में उन्होंने कहा है कि आप वाराणसी के सांसद और देश के लोकतांत्रिक व्यवस्था के सर्वोच्च केंद्र बिंदु हैं, इसलिए देश की आवाम आपसे उम्मीद करती है कि आप जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए सदैव प्रतिबद्ध रहेंगे।

उन्होंने लिखा कि देशभर के छावनी बोर्डों के चुनाव अकारण लंबे और अनिश्चितकालीन स्थगन से केंद्र सरकार की यह रीत नीत प्रभावित हो रही है, जिसके चलते देश के तमाम छावनी क्षेत्र न केवल राजनीतिक नागरिक अधिकारों से वंचित हैं। बल्कि जनता की समस्याओं के लोकतांत्रिक एवं वैधानिक माध्यमों से समाधान की समूची संविधान प्रदत्त प्रक्रिया ही बाधित है। कोविड काल में अन्य सभी संवैधानिक निकायों के चुनाव होते रहे है, लेकिन केवल छावनी बोर्डों के चुनाव 2 वर्ष से स्थगित रखे गए हैं। कोविड-काल के साथ जनजीवन सामान्य भी हो चुका है। लेकिन छावनी क्षेत्रों का स्थानीय स्वशासन सैन्य अधिकारियों की मुट्ठी में संविधान एवं लोकतंत्र के तकाजों के खिलाफ पूरी तरह जकड़ बंद है।

लिखा है कि छावनी के स्थानीय स्वशासन से जुड़े विधिक सुधार के किसी विधेयक के संसद में लंबित होने की भी बात अधिकारियों द्वारा कही जाती है। लेकिन संसद भी लगातार अपने अन्य कामकाज निपटाती रही है। ऐसी स्थिति में इस विधिक सुधार विधेयक को अकारण लटका कर रखना सरकार की नियत पर सवाल खड़ा करता है। यदि संसद नए सुधार नहीं पारित कर रही है, तो उस देरी के नाम पर पुरानी स्थापित विधि से चुनाव होना चाहिए, क्योंकि स्थानीय निकायों का समय पर चुनाव होना एक बाध्यकारी संवैधानिक जिम्मेदारी है। ऐसा न करने के गलत बहानो के सहारे संवैधानिक के 74वें संशोधन से स्थापित संवैधानिक व्यवस्था का उल्लंघन हो रहा है।

शलेन्द्र सिंह ने पत्र में आगे लिखा है कि छावनी क्षेत्रों के लोग 1924 के छावनी बोर्ड अधिनियम में सुधार के संशोधनों के विरुद्ध नहीं हैं। बेशक 74वें संविधान की भी यही भावना रही है। लेकिन उस प्रक्रिया को अनंतकाल तक लटकाए रखकर देश की 62 छावनी के लाखों नागरिकों के नागरिक राजनैतिक हक और अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से अपनी बुनियादी समस्याओं के समाधान की उनकी आकांक्षाओं को रौदा नहीं जा सकता। उन्होंने पत्र के अंत में अनुरोध किया है कि सरकार गंभीरता से इस अलोकतांत्रिक गतिरोध को तोड़ने एवं चुनाव कराने की पहल करें आशा ही नहीं विश्वास है कि छावनी परिषदों के लाखों निवासियों के लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा हेतु रक्षा मंत्रालय को उचित परामर्श देने की महती कृपा करेंगे।

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