तारिक़ आज़मी
वाराणसी: अचानक मीडिया में एक नाम उछल कर सामने आया है मुख़्तार अंसारी। ये मुख़्तार अंसारी मऊ सदर के बाहुबली पूर्व विधायक मुख़्तार अंसारी नही बल्कि लोहता थाना क्षेत्र के निवासी मुख़्तार अहमद अंसारी है। विगत काफी समय से पसमांदा समाज के लिए आवाज़ उठाने की बात कहने वाले मुख़्तार अहमद अंसारी के जानिब मीडिया के कैमरे दौड़ लगाते दिखाई दे रहे है। कभी किसी चैनल के लिए तो कभी किसी चैनल के लिए अपने वक्तव्य देते मुख़्तार अहमद अंसारी ने बड़ा आरोप ज्ञानवापी मस्जिद कमिटी पर लगाया है कि ज्ञानवापी मस्जिद कमेटी ने कई बिस्से ज़मीन बेच दिया है।
बहरहाल, इस बार बड़ा सनसनीखेज़ खुलासा करते हुवे मुख़्तार अहमद अंसारी ने मस्जिद कमेटी पर आरोप लगाया है कि मस्जिद की संपत्ति बेच दी गई है। इन आरोपों के समर्थन में नेता जी ने वर्ष 1882-83 का खसरा निकाला है और दावा किया है कि इस खसरे में वर्ष 1882-83 में मस्जिद की ज़मीन 1 बिगहा, 9 बिस्व और 6 धुर यानी कुल 31 बिस्वे के लगभग है। जबकि सर्वे कमीशन के सर्वे में मस्जिद को कुल 14 बिस्वे के लगभग की बताया है। ये खसरा अराज़ी नम्बर 9130 की सर्टिफाई कापी बताई जा रही है। नेता जी यानी मुख़्तार अहमद अंसारी सभी मीडिया के कैमरों पर दावा करते हुवे दिखाई दे रहे है कि मस्जिद कमेटी ने इस खसरे के अनुसार ज्ञानवापी मस्जिद की संपत्ति बेच दिया है।
क्या है अराजी नम्बर 9130
राखी सिंह ने जो दावा दाखिल किया है उस दावे में अराजी नम्बर 9130 का ज़िक्र है। इस अराजी नम्बर पर मस्जिद भी है। इसी अराजी के सम्बन्ध में मस्जिद कमेटी ने दावे की मुखालफत सर्वे कमिश्नर के सर्वे पर किया था कि इस अराजी की नावयात और इसका क्षेत्रफल नही देने के कारण इसके ऊपर सर्वे का आदेश मस्जिद के सर्वे से सम्बन्धित नही है। राखी सिंह के दावे के बाद से ये अराजी नम्बर चर्चा में आया है।
क्या है हकीकत और क्या है फ़साना
इस सम्बन्ध में हमने अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी के जॉइंट सेक्रेटरी एसएम यासीन से बात किया तो उन्होंने असली नवय्यत और हकीकत का बयान किया। उन्होंने बताया कि अदालत सिविल जज ने वर्ष 1936 में दाखिल वाद संख्या 62/36 के निस्तारण में फैसला देते हुवे वर्ष 1937 में इसका निस्तारण कर वक्फ बोर्ड के हवाले मस्जिद और उसकी संपत्ति किया था। अदालत ने प्लाट नम्बर 8276 जिसको बाद में कारीडोर के समय ट्रांसफर करके बांसफाटक वाली संपत्ति मस्जिद को दिया गया था के साथ प्लाट नम्बर 8263 जो छत्ताद्वार के रूप में जाना जाता था के अलावा मस्जिद के बैरिकेटिंग के अन्दर का पूरा इलाका और मस्जिद वक्फ बोर्ड के हवाले किया था।
एसएम यासीन ने बताया कि इसी आदेश के तहत मंदिर पक्ष को 2 बीघा ज़मीन मिली थी। ये वो समय था जब अंजुमन इन्तेज़ामियाँ मसाजिद कमेटी अपने अस्तित्व में नही थी। कमेटी बनने के बाद से इसकी देखभाल इंतेजामिया कमेटी करती है। वर्ष 1937 के अपने आदेश में सिविल जज वाराणसी की अदालत ने केस नम्बर 62/36 में फैसला देते हुवे साफ़ साफ़ लिखा था कि “One of the Masque and Court Yard with Land under meath transfarung to muslim waqf”। अब इसके बाद कोई आरोप लगाना ऐसा निराधार ही है। ऐसे आरोपों पर क्या जवाब दिया जाए।
हमने इसकी तस्दीक में एस0एम0 यासीन के पास इस आदेश की कापी भी देखा। उसमे लिखे हुवे शब्दों को पढ़ा जो लगभग वही थे जो एस0एम0 यासीन ने हमको बताया था। अब ऐसे स्थिति में मस्जिद की संपत्ति 31 बिस्वा होना और बाद में उसको बेच दिया जाना जैसी बाते एक सनसनी जैसी ही दिखाई दे रही है। वैसे मुख़्तार अहमद अंसारी उर्फ़ नेता जी ने इस मामले में मुकदमा दाखिल करने की बात कही है। अब देखना होगा कि ये बात सिर्फ मीडिया कैमरों के दावो तक ही सीमित रहती है अथवा अदालत की चौखट पर भी जाती है। वैसे मुख़्तार अहमद अंसारी ने हमारे एक सूत्र से कल दावा किया है कि उनके पास मस्जिद से जुड़े काफी बड़े बड़े दस्तावेज़ है। अब देखते है कि दस्तावेज़ क्या अदालत में पेश होते है या फिर मीडिया कैमरों पर सनसनी के लिए ही काम आते है।
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