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ज्ञानवापी मस्जिद प्रकरण: कल होगी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, जस्टिस चन्द्रचुड और जस्टिस नरसिम्हा की बेंच करेगी मामले में सुनवाई, जाने क्या है पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991

तारिक़ आज़मी/शाहीन बनारसी

दिल्ली: वाराणसी के ज्ञानवापी वज़ुखाने में कथित रूप से शिवलिंग मिलने के याचिकाकर्ता के दावो सिविल जज (सीनियर डिविज़न) द्वारा दिए गये आदेश के क्रम में वाज़ुखानो को सील करने की कार्यवाही चल रही है। इस सम्बन्ध में अंजुमन इन्तेजामियाँ मसाजिद कमिटी का कहना है कि वजू खाने में लगे फव्वारे को शिवलिंग बताया जा रहा है और अदालत ने बिना हमारा पक्ष जाने और बिना सर्वे रिपोर्ट देखे एकपक्षीय आदेश दे दिया है।

इस सम्बन्ध में अंजुमन मसजिद इंतेजामिया कमिटी की निगाहें अब सुप्रीम कोर्ट पर आकर रुकी है। सुप्रीम कोर्ट में मसाजिद कमिटी द्वारा दाखिल वाद पर कल सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस डी0 वाई0 चंद्रचूड़ और जस्टिस पी0 एस0 नरसिम्हा की बेंच सुनवाई करेगी। इस याचिका में मसाजिद कमिटी ने अदालत से सर्वे पर रोक लगाने की मांग किया है। मामले में कुल दो याचिका दाखिल हुई है।

अंजुमन मसाजिद इंतेजामिया कमिटी ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपनी अर्जी में कहा है कि 1991 में दाखिल किए गए ऑरिजिनल सूट पर इलाहाबाद हाईकोर्ट पहले ही रोक लगा चुका है। लेकिन उस मामले को बाईपास करने के लिए 2021 में दूसरी याचिका दाखिल की गई। इस मामले में दोनों याचिकाएं प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के खिलाफ हैं।

जाने क्या है पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991

प्लेसेज़ ऑफ़ वर्शिप एक्ट, 1991 या उपासना स्‍थल (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1991 बाबरी मस्जिद विध्वंस से से पहले 1991 में पी0वी0 नरसिम्हा राव सरकार के द्वारा एक कानून लाया गया था। जिसको प्लेसेस आफ वर्शिप एक्ट 1991 यानी उपासना स्थल (विशेष उपबन्ध अधिनियम) 1991 का नाम दिया गया। यह अधिनियम जम्मू और कश्मीर राज्य को छोड़कर पूरे भारत में लागू है। अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की पीठ ने अपने फैसले के जरिए इस कानून पर अपनी मुहर भी लगाई थी।

भारत की संसद द्वारा पास यह केंद्रीय कानून 18 सितंबर, 1991 को पारित किया गया था। इसके तहत कानून है कि यह 15 अगस्त 1947 तक के अस्तित्व में आए हुए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को एक आस्था से दूसरे धर्म में परिवर्तित करने पर और किसी भी स्मारक के धार्मिक आधार पर रख रखाव पर यह कानून रोक लगाता है।

इस अधिनियम में बताया गया है कि मान्यता प्राप्त प्राचीन स्मारकों पर धाराएं लागू नहीं होंगी। यह अधिनियम उत्तर प्रदेश राज्य के अयोध्या में स्थित रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद और उक्त स्थान या पूजा स्थल से संबंधित किसी भी वाद, अपील या अन्य कार्यवाही के लिए लागू नहीं होता है। इस अधिनियम ने स्पष्ट रूप से अयोध्या विवाद से संबंधित घटनाओं को वापस करने की अक्षमता को स्वीकार किया।

कल ही है सिविल जज (सीनियर डिविज़न) की अदालत में मामले की सुनवाई

कल कोर्ट में सर्वे की रिपोर्ट सौंपी जाएगी। सरकारी वकील महेंद्र प्रसाद पांडेय ने सर्वे के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि आज सर्वे कमीशन ने अपना काम पूरा कर लिया है। कमीशन ने बारीकी के साथ हर जगह की वीडियोग्राफ़ी की है।  तीनों गुंबद, तहखाने, तालाब हर जगह की रिकॉर्डिंग की गई है। कल एडवोकेट कमिश्नर अपनी रिपोर्ट कोर्ट में दाखिल करेंगे। ये रिपोर्ट आज तीन सदस्य बनाएंगे। अगर रिपोर्ट पूरी नहीं हुई तो कल न्यायालय से और वक्त भी मांग सकते हैं। पूरी प्रक्रिया शांतिपूर्ण तरीक़े से हुई है।

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