तारिक़ आज़मी
ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे आज दुसरे दिन भी हुआ। अगर समाचारों पर जो असली है ध्यान दे तो इस दरमियान 85 फीसद से ज्यादा सर्वे हो चूका है। बाकि बचा हुआ सर्वे कल सोमवार को पूरा हो जायेगा। इस दरमियान अन्दर सर्वे में क्या है क्या नही है, हकीकत में इसकी जानकारी किसी को नही है। मगर कल एक पक्षकार ने विक्ट्री साइन दिखा कर कहा कि उम्मीद से ज्यादा साक्ष्य मिले। आज दुसरे दिन के सर्वे के बाद तो और भी बड़े बड़े बयान सनसनी फैला रहे थे।
हकीकत में मीडिया इस प्रकरण में ऐसे जूझा हुआ है जैसे लग रहा है कि दुनिया की सबसे सनसनी वाली खबर यही है। अरे भाई नार्मल सर्वे कमीशन सर्वे कर रहा है। रिपोर्ट देगा। अदालत रिपोर्ट को पढेगी। फिर विचार होगा, जिरह होगी, बहस होगी। सभी पक्ष अपनी अपनी दलील रखेगे। इसके बाद फिर मामले में अदालत फैसला देगी। मगर यहाँ जिस तरीके से दिखाई दे रहा है, मीडिया शायद अपने स्टूडियो रूम में ही फैसला देने के लिए बेताब है। सडको पर ही लोगो से विचार लिया जा रहा है। स्टूडियो में बहस ऐसे हो रही है जैसे इस मुद्दे के समाधान के बाद तुरंत ही देश से महंगाई खत्म हो जाएगी।
आज एक खबरिया चैनल पर बनारस की ये खबर देख रहा था। नेशनल लेवल का चैनल इस खबर को ऐसे प्रस्तुत कर रहा था जैसे पल पल की जानकारी उसके पास ही हो। बात करने के लिए अपने पास उन्होंने अपने ही चैनल के एक ब्यूरो चीफ को प्रयागराज से बुलवा रखा था। नाम में मज़हब तलाशने वालो के लिए बढ़िया मौका था। नाम में मज़हब की तलाश हुई, साहब ने अपने बयान में मस्जिद के अन्दर की जो बाते बताई वह साफ इस बात को ज़ाहिर करता है कि साहब बहादुर ज्ञानवापी मस्जिद के अन्दर तो क्या बल्कि किसी अन्य मस्जिद के अन्दर भी नहीं गए होंगे। क्योकि साहब को पता ही नही कि जहा इमाम खड़े होकर नमाज़ पढाते है उसके बगल में बनी जगह को सीढ़ी नही बल्कि मेम्बर कहते है। वैसे प्रयागराज से आये पत्रकार साहब ने सीढ़ी वगैरह के ज़िक्र के बाद एक सवाल कहा कि वहा पेंट क्यों करवाया गया।
अब अगर इस सवाल पर जवाब देना सिरियस बात है तो पत्थरो पर पेंट हर मस्जिद में होता है, और अधिकतर मस्जिदों में मेंबर और इमाम के नमाज पढ़ाने के जगह पत्थरो की ही नक्काशियो के साथ बनी होती है। इस पर प्लास्टिक पेंट भी होता है। मगर साहब ने सवाल उठा दिया। अब अगर मज़ाक करे तो भाई मस्जिद कमेटी के पास पैसे बढ़ गये थे तो उन्होंने खर्च कर दिया था। वैसे इस बात पर आप तीन बार जोर जोर से हंस सकते है। हंसी तो आपको तब भी आना चाहिए जब बढती महंगाई, बरोजगारी, गिरता शेयर बाज़ार पर बहस न होकर, बहस इस बात पर हो कि ताजमहल के नीचे आखिर है क्या? दरअसल आपके पसंदीदा चैनल ने भी जान लिया है कि आपको ये जानने में ज्यादा इंटरेस्ट होगा कि “इमरान खान की पत्नी जिन्न के लिए गोश्त पकाती है।” असल में खबरनवीस ही शायद पके हुवे गोश्त को जिन्न के पास पंहुचा रहा होगा। आप फिर एक बार इस बात पर हंस सकते है।
बस ऐसे ही हसते रहे, मुस्कुराते रहे। तब तक जब तक कि भीड़ में तब्दील न हो जाए। तारिक आज़मी का क्या है मोरबतियाँ तो करता रहता है, करता रहेगा। सनसनी फैलाना चाहिए। बस देखते रहे अपना पसंदीदा चैनल, जब तक भीड़ में खुद को तब्दील होते न देख ले। वैसे सर्वे कल भी जारी रहेगा। अभी तक हुवे सर्वे की हकीकत आपको बताता चलता हु कि दावे सबके अपने अपने है। अन्दर क्या है, ये सर्वे रिपोर्ट अदालत में पेश होगी। उसके बाद पढ़ी जाएगी या नही पढ़ी जाएगी खुली अदालत में इसका निर्णय अदालत करेगी। तब तक आप ऐसे ही सनसनी फैलने वाले बयानों को देखते रहे। वैसे आपको बताते चले कि इन सबके बीच शहर बनारस अपनी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी जी रहा है। ज्ञानवापी मस्जिद में नमाज़ जैसे पहले मुहब्बत और मिल्लत के साथ होती थी वैसे आज भी हो रही है। वही दूसरी तरफ मंदिर में जैसे दर्शन होते थे वैसे आज भी हो रहे है। बनारस में कोई असर नही पड़ा है। बनारस रोज़मर्रा की ज़िन्दगी जी रहा है। देर रात तक जमकर चौक पर चाय का दौर चल रहा है। सनसनी आपके पास फैली है। अब आप इस बात पर हंस भी सकते है और अगर आपको बनारस की कोई और रिपोर्ट मिली है तो आप अचम्भे से उसको पढ़ भी सकते है।
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