मो0 कुमेल
कानपुर: कानपुर के बहुचर्चित बिकरू कांड में एसआईटी जाँच में दोषी पाए गए तत्कालीन थानेदार और हल्का इंचार्ज के साथ 14 अन्य पुलिस कर्मियों पर आज कार्यवाही की गाज गिरी है और इन सभी पर दंडनात्मक कार्यवाही हुई है। इन पर अब विभागीय कार्रवाई हुई है। पांच पुलिसकर्मियों के खिलाफ दंडित करने की कार्रवाई अभी भी जारी है। ये पूरी कार्रवाई कमिश्नरी की पुलिस ने की है।
बताया जा रहा है कि यह कार्रवाई डीसीपी मुख्यालय कर रहे हैं। जल्द ही इन पांचों पुलिसकर्मियों पर भी कार्रवाई पूरी कर ली जाएगी। इस कार्यवाही में इंस्पेक्टर राममूर्ति यादव, मुकेश कुमार और बृजकिशोर मिश्रा, सब इंस्पेक्टर दीवान सिंह, जितेंद्र प्रताप सिंह, संजय सिंह, राकेश कुमार, इंद्रपाल सरोज, सुजीत कुमार मिश्रा और रमेश चंद्र शामिल है वही हेड कांस्टेबल में लायक सिंह और धर्मेंद्र तथा सिपाही विकास कुमार और कुंवरपाल सिंह पर कार्रवाई हुई है। बिकरू कांड में इंस्पेक्टर मोहम्मद इब्राहिम, वेद प्रकाश और लालमणि सिंह भी दोषी पाए गए थे। विभागीय जांच में भी उनका दोष साबित हुआ है। इन तीनों को भी मिस कंडक्ट मिलती लेकिन यह सभी रिटायर्ड हो चुके हैं, इसलिए इन पर विभागीय कार्रवाई करना संभव नहीं है।
एडिशनल सीपी आनंद कुलकर्णी ने बताया कि बिकरू कांड में दोषी पाए गए पुलिसकर्मियों में से तीन पुलिसकर्मियों की विभागीय कार्रवाई लखनऊ पुलिस को सौंपी गई थी। जबकि चार की कानपुर आउटर पुलिस व सात की कानपुर देहात पुलिस को दी गई थी। बिकरू कांड में जेल में बंद तत्कालीन एसओ विनय तिवारी व दरोगा के0 के0 शर्मा की बर्खास्तगी को लेकर एक नया तथ्य सामने आया है। विभागीय जांच में दोनों के बयान शामिल नहीं हैं। बगैर बयानों के दोनों की बर्खास्तगी की गई है। इस वजह से भविष्य में इन पुलिसकर्मियों को लाभ मिल सकता है, हालांकि अफसरों का दावा है कि बयान के लिए जेल में कई बार नोटिस भेजे गए, लेकिन एसओ व दरोगा ने बयान देने से ही इनकार कर दिया। इसलिए बगैर बयान कार्रवाई की गई।
चौबेपुर के तत्कालीन थानेदार विनय तिवारी व दरोगा केके शर्मा को बिकरू कांड की साजिश में शामिल होने के आरोप में जेल भेजा गया था। दोनों जेल में ही बंद हैं। विभागीय जांच में दोनों को दोषी ठहराया गया है। एडिशनल सीपी मुख्यालय आनंद कुलकर्णी ने बताया कि बयान की प्रक्रिया को अपनाया गया था। कई बार जेल में नोटिस भेजकर बयान के लिए दोनों पुलिसकर्मियों से कहा गया लेकिन वह बयान दर्ज कराने को राजी नहीं हुए थे। इसलिए बगैर बयान के ही जांच पूरी की गई। दोनों के खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य मौजूद हैं। उसी आधार पर उनको बर्खास्त किया गया है।
अगर कानून की बात करे तो किसी भी आरोपी को अपना पक्ष रखने का अधिकार है। बिना पक्ष शामिल किए अगर कार्रवाई की जाती है तो संबंधित को लाभ मिल सकता है। इसमें कोर्ट अपने स्तर से निर्णय लेता है। इस मामले में सबसे बड़ा प्लस पॉइंट इस समय तत्कालीन थानेदार और हल्का इंचार्ज को मिलेगा और जब भी ये आरोपी कभी बहाली के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे तो उसमें वह प्रमुखता से कहेंगे कि जब उनके खिलाफ बर्खास्तगी की कार्रवाई की गई तो उनको अपना पक्ष रखने का मौका तक नहीं मिला। ऐसे में बेनिफिट दोनों को मिल सकता है।
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