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बिजली संकट से निपटने के लिए सरकार ने शुरू किया कवायद, शुरू होगी बंद विद्युत इकाइयां, ठप्प पड़े खदानों से निकलेगा कोयला, जाने बकाया ने क्या संकट बढाया ?

आदिल अहमद

एक दशक में सबसे अधिक बिजली संकट झेल रहे अपने मुल्क में अब सरकार ने आपातकालीन प्रावधान करने के लिए कदम उठाने शुरू कर दिए है। देर आये दुरुस्त आये के तर्ज पर सरकार ने विद्युत उत्पादन बढाने के लिए कवायद शुरू कर दिया है। इस क्रम में घरेलू कोयला उत्पादन बढ़ाने और कोयले को संयंत्रों तक समय पर पहुंचाने के साथ आयातित कोयले से बिजली बनाने वाली बंद पड़ी विद्युत उत्पादन इकाइयों को फिर शुरू करने जा रही है, साथ ही बंद खदानों से कोयला भी निकाला जाएगा।

बताते चले कि भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कोयला उत्पादक, आयातक और उपभोक्ता है। देश में 2021-22 के दौरान करीब 7,772 लाख टन कोयला उत्पादन किया गया, जबकि 10,000 लाख टन कोयला इस्तेमाल किया गया। कोल इंडिया जो कि दुनिया की सबसे बड़ी कोयला उत्पादक कंपनी है, भारत का 80 फीसदी कोयला उत्पादन करती है। अब अगर ध्यान दे तो इस विद्युत् संकट पर उधारी की भी ज़बरदस्त मार दिखाई देती है। कोयला उत्पादन कंपनी कोल इंडिया को बिजली उत्पादन कंपनियों से 12 हज़ार 300 करोड़ रुपया लेना है। जबकि ताप विद्युत् संयंत्रो को राज्यों से कुल 1 लाख 10 हज़ार करोड़ रुपया लेना है। जबकि दूसरी तरफ बिजली वितरण कम्पनियां 5 लाख करोड़ के घाटे में चल रही है।

ये उधारी और घाटा एक बड़ा फैक्टर बिजली उत्पादन और कोयला उत्पादन के क्षेत्र में कमी का है। एक तरफ जहा विद्युत् वितरण कम्पनियां 5 लाख करोड़ के घाटे में है तो दुसरे तरफ कोल ईन्डिया 12 हज़ार 300 करोड़ रुपया बकाया वसूलने में मेहनत कर रहा है। वही बकाया की लिस्ट यही नही रूकती बल्कि ताप विद्युत संयंत्रो को भी राज्यों से 1 लाख 10 हज़ार करोड़ वसूलने है। ऐसे में एक बड़ा फैक्टर ये बकाया और घाटे वाला फैक्टर है। जिसके बाद बिजली की मांग चार दशक के उच्चतम स्तर पर है। वहीं आयातित कोयले पर आधारित 43 फीसदी से ज्यादा विद्युत उत्पादन इकाइयां बंद पड़ी हैं, जिनसे करीब 17.6 गीगावाट बिजली पैदा हो सकती है। देश में कोयला आधारित कुल विद्युत उत्पादन में ये इकाइयां 8.6 फीसदी का योगदान करती हैं। इसी वजह से सरकार ने इन्हें शुरू करने की तैयारी की है। इसके अलावा विद्युत उत्पादन की लागत ग्राहकों से वसूलने के लिए समिति का गठन किया है।

विद्युत उत्पादक इकाइयों के पास कोयले का भंडार 9 वर्ष के न्यूनतम स्तर पर आ गए हैं। इस संकट के पीछे कई कारण हैं, जिनमें विद्युत वितरण कंपनियों की ग्राहकों से बिजली उपभोग की समय पर कीमत वसूलने में नाकामी से कोयला खदानों से कोयला उत्पादन में 33 फीसदी तक कमी करना शामिल हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में पिछले वर्ष मार्च-अप्रैल की तुलना में नॉन कोकिंग कोल की कीमत 50 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 288 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गई थी। रूस से कोयला आयात बंद करने के बाद अब कीमत करीब 140 डॉलर प्रति टन है।

मंत्रालय ने बताया कोयले की अंतरराष्ट्रीय कीमत बढ़ने की वजह से कोयला आयात काफी कम हो गया है, जिससे घरेलू कोयले पर अधिक दबाव पड़ रहा है। 2015-16 में 370 लाख टन कोयला आयात किया जा रहा था, जो 2021-22 में घटकर 240 लाख टन रह गया, जबकि बिजली की मांग बढ़ने से कोयले की मांग बढ़ती जा रही है।

अब बिजली की मांग में 20 फीसदी से ज्यादा वृद्धि को देखते हुए कोयला केंद्रीय विद्युत मंत्रालय ने आयातित कोयले से बिजली बनाने वाले सभी संयंत्रों को पूरी क्षमता से संचालित करने का आदेश दिया है। इससे पहले मंत्रालय ने सभी निजी व सार्वजनिक विद्युत उत्पादकों को निर्देश दिया था कि वे जरूरत का कम से कम 10 फीसदी कोयला आयात करें। कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी ने ट्वीट कर बताया कि 20 बंद पड़ी कोयला खदानों से फिर से उत्पादन शुरू करने का फैसला किया गया है। इन खदानों में अब भी करीब 3800 लाख टन कोयला मौजूद है। वहीं, मंत्रालय के सचिव एके जैन ने बताया आगामी दो-तीन वर्ष में कोयला उत्पादन 750-1,000 लाख टन तक बढ़ाने की कोशिश की जाएगी। इसके लिए 100 से ज्यादा बंद पड़ी कोयला खदानों में फिर से खनन शुरू किया जाएगा।

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