तारिक आज़मी/शाहीन बनारसी
डेस्क: सुप्रीम कोर्ट में ज्ञानवापी मस्जिद मामले जिलाधिकारी वाराणसी को नोटिस जारी करते हुवे कहा है कि उक्त विवादित स्थल को सुरक्षित करे, मगर नमाजियों के हितो का ख्याल रखते हुवे करे और इनकी सुविधाओं में कोई खलल न पड़े। इसके साथ ही अदालत मुस्लिम पक्ष की मांग पर हिन्दू पक्ष नोटिस जारी किया है। अदालत इस मामले में 19 तारिख को सुनवाई करेगी।
मामले में आज सुप्रीम कोर्ट में मस्जिद कमिटी के तरफ से सीनियर एडवोकेट हुज़िफा अहमदी ने अदालत में पक्ष रखते हुवे अदालत ने जिरह किया। उन्होंने कहा कि “ये वाद ये घोषणा करने के लिए किया गया है कि हिंदू दर्शन करने और पूजा करने के हकदार हैं। इसका मतलब मस्जिद का धार्मिक करेक्टर बदलना होगा। आप एडवोकेट कमिश्नर को इस तरह नहीं चुन सकते। वादी के सुझाए गए विकल्प पर एडवोकेट कमिश्नर की नियुक्ति नहीं की जा सकती थी।’ उन्होंने कहा कि हमारे आग्रह पर सीजेआई ने जल्द सुनवाई की मांग की। अहमदी ने कहा, ‘शनिवार और रविवार को कमीशन ने सर्वे किया। कमिश्नर को मालूम था कि सुप्रीम कोर्ट मामले की सुनवाई करेगा, इसके बावजूद सर्वे किया गया। सोमवार को वादी ने निचली अदालत में अर्जी दी कि सर्वे में एक शिवलिंग मिला है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि ट्रायल कोर्ट ने इस पर सील करने के आदेश जारी कर दिए।’
अहमदी ने दलील दिया कि ‘इस तथ्य के बावजूद कि कमिश्नर द्वारा कोई रिपोर्ट दाखिल नहीं की गई थी।वादी द्वारा अर्जी कि कमिश्नर ने तालाब के पास एक शिवलिंग देखा है। यह अत्यधिक अनुचित है क्योंकि कमीशन की रिपोर्ट को दाखिल होने तक गोपनीय माना जाता है। कमीशन के सर्वे की आड़ में जगह को सील कराने की कोशिश की गई। प्लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्ट का उल्लंघन नहीं किया जा सकता। इसी तरह के सूट पर हाईकोर्ट द्वारा रोक लगाई जा चुकी है। हमने ट्रायल कोर्ट के जज को सूचित किया था।’ अहमदी ने मांग की कि ट्रायल कोर्ट के आदेश को रोका जाए, ये गैर कानूनी है। बाबरी मस्जिद केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट ऐतिहासिक गलतियों को सुधारने की शिकायत पर रोक लगाता है।\
अहमदी ने दलील दिया कि “ ‘इस न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा कि 15 अगस्त, 1947 को किसी स्थान के धार्मिक चरित्र से छेड़छाड़ नहीं की जा सकती। इस तरह के आदेशों में शरारत की गंभीर संभावना होती है।’ उन्होंने कहा कि इन सभी आदेशों पर भी रोक लगाई जाए। ये आदेश संसद के कानून के खिलाफ हैं। पहले के एक सूट पर रोक लगा दी गई थी।ये सभी आदेश अवैध हैं और इन्हें रोका जाना चाहिए।
अहमदी की इस दलील पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘हम ट्रायल कोर्ट को कमीशन की नियुक्ति को लेकर लंबित अर्जी को निपटाने को कह सकते हैं। एकमात्र बिंदु, हम केवल चर्चा कर रहे हैं, आपकी चुनौती के आधार पर कि प्लेसऑफ वर्शिप एक्ट द्वारा राहत अनुदान को रोक दिया गया है। यही वह राहत है जिसे आपने आवेदन में मांगा है। हम निचली अदालत को निपटान करने का निर्देश दे सकते हैं।”
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हम आदेश जारी करेंगे कि जिला मस्जिट्रेट उस जगह की सुरक्षा करें जहां शिवलिंग मिला है। लेकिन ये लोगों के नमाज अदा करने के रास्ते में नहीं आना चाहिए। उन्होंने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा- “शिवलिंग कहां मिला है”। इस पर एसजी ने कहा, ‘वजूखाने में, जैसा कि मैं समझता हूं, वह जगह है जहां आप हाथ-मुंह धोते हैं और नमाज अदा करने के लिए एक अलग जगह है। मजिस्ट्रेट की चिंता यह लगती है कि यदि कुछ महत्वपूर्ण पाया जाता है, तो यहां आने वाले लोगों की वजह से परेशानी हो सकती है।” एसजी ने सुप्रीम कोर्ट से कल तक का वक्त मांगा जिसका मस्जिद कमेटी ने इसका विरोध किया और कहा कि गलत तरीके से आदेश जारी किए गए।
अहमदी ने कहा कि सोमवार को वाराणसी कोर्ट ने अर्जी दाखिल करने के एक घंटे के भीतर आदेश पारित किया और वह भी एकपक्षीय। क्या निचली अदालत में कार्यवाही पर निष्पक्षता की कमी नहीं दिखती? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम मामले की सुनवाई 19 मई को करेंगे। हम निचली अदालत के आदेश के कुछ हिस्से पर पर रोक लगा देंगे लेकिन अगर कोई शिवलिंग मिला है तो उसका संरक्षण हो। साथ ही मुस्लिमों का भी नमाज अदा करने का अधिकार है। एसजी तुषार मेहता ने कहा कि आप मामले की सुनवाई कल कीजिए। उन्होंने कहा कि एक कुआं है, जिसका पानी वज़ूखाना में इस्तेमाल किया जाता है। अगर इसकी अनुमति दी जाती है तो इसके अनपेक्षित परिणाम हो सकते है। इस पर अहमदी ने कहा, ‘ मुझे प्रस्तावित के आदेश पर आपत्ति है यदि आदेश शिवलिंग पाए जाने की बात होती है, तो इसका उपयोग याचिकाकर्ता अपने लाभ के लिए करेंगे।’
एसजी तुषार मेहता ने कहा, ‘जहां बताया गया शिवलिंग मिला है अगर नमाजी वजू के दौरान उसे पैर से छूते हैं तो कानून व्यवस्था की स्थिति हो जाएगी। लिहाजा उस बताए गए शिवलिंग के चारों ओर उस पूरे क्षेत्रफल की मजबूत सीलबंदी और सुरक्षा की जाए। इस पर कोर्ट ने कहा कि अन्य पक्षकार यहां मौजूद नहीं हैं लिहाजा हम समुचित आदेश जारी कर रहे हैं। अहमदी ने कहा कि गुरुवार तक निचली अदालत आगे कोई सुनवाई या आदेश न दे। इस पर कोर्ट ने कहा कि आदेश स्पष्ट है। कोई भी न्यायिक अफसर समझ जाएगा कि क्या करना है?
अदालत में दाखिल याचिका में मस्जिद समिति ने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाया था कि वर्शिप एक्ट 1991 के तहत निचली अदालत इस मामले की सुनवाई नही कर सकती और सर्वे को प्रतिबंधित किया जाए। इस वाद के दाखिल होने के बाद छुट्टियों के बीच सर्वे की कार्यवाही शुरू हुई और सर्वे हुआ। सर्वे के आखरी दिन वादिनी मुकदमा के द्वारा दावा किया गया कि वजू हेतु बना कुण्ड में शिवलिंग है। जिसके बाद अदालत ने उक्त वज़ुखाने को सील कर दिया। जबकि मस्जिद पक्ष का दावा है कि वह फव्वारे का बेस है और जिसको भ्रम फैलाने के लिए शिवलिंग साबित कर रहे है। इस बीच याची के तौर पर सुप्रीम कोर्ट में हिन्दू महासभा भी पंहुचा है और उसने मुस्लिम पक्ष की याचिका को खारिज कर उनके ऊपर जुर्माना लगाने की मांग किया है।
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