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ख़त्म हुवे हिंदी पत्रकारिता दिवस पर तारिक़ आज़मी की मोरबतियाँ: ओमफ़ोम…….! दुर्राटे काट रही है……..! गूगल वाइस टाइप को भी तो कोई बधाई दे दो, उसने भी बहुते पत्रकार बना दिए

तारिक़ आज़मी

कल हिंदी पत्रकारिता पखवारा खत्म हुआ। हर साल के तरह हिंदी के पत्रकारों ने जुगल किशोर शर्मा को खूब याद किया। बड़ी बाते हुई “उदन्त मार्तण्ड” की। पण्डित जुगल किशोर शर्मा के हिंदी पत्रकारिता में योगदान को जमकर सराहा गया। साल में एक दिन हिंदी पत्रकारिता दिवस पर खूब जमकर पंडित जी को याद किया जाता है। उसके बाद सब भूल जाते है। यहाँ तक कि कानपुरिया पत्रकार भी भूल जाते है कि उनकी जन्म स्थली कानपुर है। किसी एक चौराहे का नाम या फिर किसी एक गली का नाम ही पंडित जी के नाम पर करवाने की कवायद शुरू कर देते। मगर क्या करे साहब, काम बहुते रहता है। तो काम से ही काम रखते है।

चलिए हिंदी पत्रकारिता पखवारा खत्म हुआ, इस दरमियान हमने कल; तक किसी को विश नही किया तो काका ने बड़े ताने मारे और कहा कि विषपान करवा दूंगा तुझे अगर विश नहीं किया तो। अब बात विश करने की है हिंदी पत्रकारिता दिवस पर सबसे पहले उनको बधाई जो गाडी पर बड़ा बड़ा “प्रेस” केवल इस लिए लिखवाते है कि कोई उनकी गाडी न रोक सके। ऐसे गुरु लोगो को नमन और हिंदी पत्रकारिता दिवस की बधाई, क्योकि हिदी पत्रकारिता न होती तो एक दिन में तीन चार दाई चालान कट जाता।

दुसरे हिंदी पत्रकारिता की बधाई उनको भी स्वीकार हो जिनका मुख्य कान प्रेस कार्ड दिखा कर थाने चौकी पर दिन गुजारना होता है। असली तो हकदार हिंदी पत्रकारिता दिवस की बधाई के वही लोग है। क्योकि अगर पंडित जुगल किशोर शर्मा ने उदन्त मार्तण्ड न शुरू किया होता तो हिदी पत्रकारिता की शुरूआत न होती और उनके पास काम न होता। अब अगर काम न होता तो फिर नाम कैसे होता। अब उनको हिंदी पत्रकारिता दिवस की बधाई तो बनती है न भाई।

सबसे बड़ी वाली बधाई दंडवत प्रणाम करके गूगल बाबा को स्वीकार हो। दरअसल गूगल बाबा का अगर गूगल वाइज़ टाइप न होता तो कई लोग आज भी फोटो को फुतु लिख रहे होते। अब आप सोचे गूगले बाबा ने एक सोफ्टवेयर दिया जिसने बोलने की कला को लिखने की कला बना दिया। वरना काला अक्षर तो भैस बराबर भी होता है। तो गूगल बाबा को दंडवत प्रणाम करके हिंदी पत्रकारिता दिवस की हार्दिक शुभकामनाये देते है।

वैसे गजबे का सॉफ्टवेयर है गूगले वौइस् टाइप। एक दाई हमहू इस्तेमाल किया रहा। कसम से बोला ईसा तो लिखने लगा मुसा। आखिर कई बार हुआ तो गूगल बाबा खुदही बाहर आकर बोले “कारे जब लिखे आवेला त काहे डिसटरब करत हउवे।” हम पूछ लिया ई का है। हम बोल रहे है ईसा, लिख रहे हो मूसा, तो बोले गूगल बाबा कि “बतिया इज राईट, बस तनी मनी डिफ़रेंस।” हम समझ गए थे कि हमारे बस के नही है गूगल बाबा क्योकि हम हिंदी से ज्यादा लफ्ज़ उर्दू के इस्तेमाल करते है। अब उर्दू लिखे बदे गूगल बाबा का मदरसा जायेगे?

खैर एकदम्मे बड़ा वाला एकदम लोटमपोट वाला प्रणाम उन पत्रकारों को जो मजहबी चश्मे लगाये हुवे धर्मान्धता की पराकाष्ठ पार करते हुवे खुद ही अदालत बन जाते है। खुद ही फैसला कर लेते है कि क्या सही है क्या गलत है। भले ही कोरोना काल में शव घर में पड़ा हो और अंतिम संस्कार के पैसे न हो पास में, ऐसे समय में कोई अहमद या अली आया हो। मगर फिर भी उसकी भावनाओ को ठेस पहुचाओ और झूठ का आडम्बर खड़ा कर डालो। बस चश्मा सांप्रदायिक रहे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि टीवी अब टीआरपी खेल हो गया है। खूब जश्न मनाया जब खुद नम्बर 1 आये, मगर जैसे ही नम्बर 5 पर गए तो पहले वाले को जमकर कोसा और कहा कि लैंडिंग पेज खरीद लिया। उनको बधाई इस लिए कि कभी लैंडिग पेज खरीदने का आरोप उनके ऊपर खुद था।

तारिक़ आज़मी
प्रधान सम्पादक
PNN24 न्यूज़

एकदम आखिर में सबसे छोटी बधाई हिंदी पत्रकारिता दिवस की उन पत्रकारों को जो आज भी निष्पक्ष पत्रकारिता करते है। जेब खाली, आभाव की ज़िन्दगी मगर कलम में जान। ज़ुल्म को कलम की जोर से चीर देने का जज्बा, जिसने लिए आज भी पत्रकारिता एक मिशन है। उनको सबसे छोटी वाली बधाई। क्योकि बधाई लेने का समय भी उनके पास नही रहता है। एक खबर से दूसरी खबर पर भागते दौड़ते हुवे ज़िन्दगी बसर हो रही है। तो भाई आपको भी हिंदी पत्रकारिता दिवस की बधाई।

वैसे एक बात है, फोटो मेरा भी कभी कभी बड़ा मासूम आ जाता है। देखिये न चेहरे पर भले बुज़ुर्गी मुछो की सफ़ेद से ज़ाहिर हो रही है। मगर मासूमियत गज़ब की समझ आ रही है। तो कह सकते है आप भी तो भैय्य्य्यय्य्या…………! ओमफ़ोओओओओओओओम………! दुर्राटे काट रही है…………!

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