अरशद आलम
वाराणसी। आमतौर पर यह देखने में आता है कि पुलिस जब भी किसी अपराधी को पकड़ती है तो उसके पास से देशी तमंचा/पिस्टल और कारतूस जरूर बरामद होता है। मगर, पुलिस की ओर से कभी पता लगाने का प्रयास नहीं होता कि आखिर बरामद हुआ अवैध असलहा और कारतूस आता कहाँ से है। पुलिस की इस उदासीनता की वजह से अवैध असलहों की तस्करी करने वालों के हौसले बुलंद हैं और वो बेख़ौफ़ होकर अपना धंधा कर रहे हैं।
हाईकोर्ट की कड़ी नाराजगी के बाद से हर्ष फायरिंग पर पूरी तरह से पाबंदी है। विवाह में, किसी निजी या सरकारी कार्यक्रम में, किसी नेता के स्वागत व आगमन में, किसी त्यौहार में हर्ष फायरिंग नही की जा सकती। निशानेबाजी का आयोजन भी रायफल क्लब की शूटिंग रेंज में जिला प्रशासन करता है। यहां जाने वाले शस्त्र धारकों की संख्या मुश्किल से 50-100 होती है। वाराणसी जिले में लगभग 18 हजार लाइसेंस है। निश्चित रूप से भारी मात्रा में कारतूस बिकता होगा। भारी मात्रा में कारतूस निर्माता फैक्ट्री शस्त्र धारको को कारतूस सप्लाई करती होंगी। यह कारतूस शस्त्र धारको को ही बेंचे जाते है। अगर यह कारतूस अपराधी के पास पहुंच रहे है तो इसकी जांच पड़ताल न करना तो अपराध के मूल कारण को ही चोट नही पहुंचा सकेगी। यह अनियमितता या त्रुटि काफी गंभीर है। इस पर जिला प्रशासन को काफी गंभीरता से ध्यान देना होगा। कारतूस कहां से आता है, किसके पास आता है, कहां जाता है, प्रयोग कहां होता है, शेष कितना बचता है इसकी जांच नियमित की जानी चाहिए और जो भी अनियमितता का दोषी मिले उसके खिलाफ कार्रवाई हो।
अब बिहार नहीं जाना पड़ता, सब यहीं मिल जाता है
एक दौर था जब अवैध असलहे की खरीद-फरोख्त में बिहार के कई जिलों उसमें भी खासतौर से मुंगेर का दबदबा था। मगर, अब ऐसा नहीं रहा। हाल-फिलहाल में अवैध असलहों और कारतूस के साथ जितने भी आरोपियों की गिरफ़्तारी हुई उनमें से अधिसंख्य का कहना यही रहा कि उन्हें इसके लिए कहीं बाहर नहीं जाना पड़ा। बल्कि वाराणसी, चंदौली, गाजीपुर सहित आसपास के अन्य जिलों में ही अवैध असलहे और कारतूस आसानी से मिल गए। अवैध असलहे पांच हजार रुपये से मिलना शुरू होते हैं। यह खरीदने वाले की जेब पर निर्भर करता है कि वह कितना रुपया खर्च कर कितनी मारक क्षमता का असलहा चाहता है, ये जांच का विषय है कि आखिर इतना व्यापक नेटवर्क कौन और पुलिस की नाक के नीचे कौन चला रहा है!
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