तारिक़ आज़मी
महाराष्ट्र में चल रहे सियासी संकट को सियासी जानकार आपरेशन लोटस से जोड़ कर देख रहे है। असल में ये शब्द “आपरेशन लोटस” किसी सियासी किताब का हिस्सा नही है। बल्कि बिना चुनाव जीते सत्ता हासिल करने के लिए किये जाने वाले भाजपा के प्रयास को सियासी जानकार आपरेशन लोटस का नाम देते है। पिछले 6 सालो में 7 राज्यों में आपरेशन लोटस चला और भाजपा को इसमें 4 बार सफलता भी हासिल हुई जब उसको बिना जीते ही सत्ता मिल गई। जबकि 3 बार उसको मुह की खानी पड़ी है।
आपरेशन लोटस में सबसे बड़ा आपरेशन हुआ था मध्य प्रदेश में कमलनाथ की सरकार का तख्ता पलट करने में कामयाब रही थी। भाजपा ने यहाँ कांग्रेस के असंतुष्ट नेता ज्योतिरादित्य सिधिया और उनके समर्थक विधायको के बल पर यहाँ कमलनाथ सरकार को अल्पमत में करके शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री बनाया गया था। सियासत का पाला तो देखे, जो ज्योतिरादित्य सिंधिया चुनावों के समय कमलनाथ के पाले में रहकर शिवराज सिंह चौहान पर शब्दों के तीर छोड़ा करते थे। वही उनकी तरीफ़ो के कसीदे पढने लगते है।
सियासत में सच है कि न कोई परमानेंट शत्रु होता है और न कोई परमानेंट मित्र होता है। भाजपा ने यहाँ कमलनाथ सरकार को गिराने के लिए अपने दल के नेता नरोत्तम मिश्रा के हाथ में कमान सौंपी थी। मध्य प्रदेश में वर्ष 2018 में हुवे विधानसभा चुनाव में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था। कांग्रेस ने बहुजन समाज पार्टी और निर्दलियों के बल पर सरकार तो बना लिया था। मगर सरकार के पास एक मजबूत संख्या बल नही था। दुसरे तरफ ज्योतिरादित्य सिंधिया का आरोप था कि पार्टी और सरकार में उनकी अनदेखी किया जा रहा है। फिर क्या था? हालात सत्ता परिवर्तन के लिए फायदेमंद दिखा दी और भाजपा के बड़े नेताओं ने ज्योतिरादित्य सिंधिया से संपर्क स्थापित करना शुरू किया। आखिर मार्च में सियासी हडकंप मचा और फिर सिंधिया समर्थक विधायको को स्पेशल चार्टर प्लेन से बेंगलुरु भेज दिया गया।
उधर कांग्रेस हाई कमान सिंधिया को मनाने की कवायद में लगा रहा मगर सिंधिया थे कि किसी शर्त पर मानने को तैयार नही थे। लाख कोशिशे हुई, कमलनाथ का अनुभव भी काम नही आ सका और आखिर 15 महीनो के बाद कमलनाथ सरकार गिर गई और शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए। ये सत्ता भाजपा ने बिना चुनाव जीते हासिल किया था। जो आज भी कायम है। अब जब दुबारा चुनावों की मध्य प्रदेश में अगले वर्ष तैयारी है तो ये नया गठजोड़ भाजपा सिंधिया का सियासत में बड़ा कारनामा दिखा सकता है।
मध्य प्रदेश में सत्ता हासिल करने के बाद राजस्थान में भी कमल खिलाने की कोशिश हुई। भले ये बात दीगर है कि कमलनाथ के सरकार गिरने से सबक हासिल किये अशोक गहलोत यहाँ थोडा अपनी स्थिति मजबूत किये हुवे थे। यहाँ प्रदेश के भाजपा नेताओं ने ये ज़िम्मा उठाया और मुख्यमंत्री बनने से महरूम रह गए सचिन पायलट की नाराजगी को भुनाने की कोशिश हुई। चुनावो में 100 सीट जीत कर अशोक गहलोत बमुश्किल बहुमत के आकडे तक पहुचे थे। मगर गहलोत ने यहाँ निर्दल और बसपा विधायको को अपने खेमे में मिलाकर अपने बहुमत को मजबूत कर लिया था।
यहाँ सचिन पायलट सीएम की कुर्सी पर बैठने से महरूम रह गए थे और उनके खेमे में कुल 18 विधायक थे। सीएम की कुर्सी से महरूम हुवे सचिन पायलेट ने जुलाई के पहले सप्ताह में गहलोत सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। जिसके बाद 11 जुलाई 2020 को सचिन पायलट ने गहलोत के मोर्चा बुलंद किया। जिसके बाद अपने समर्थक 18 विधायको के साथ वह गुरुग्राम के एक होटल में पहुंच गए। मगर यहाँ मुकाबला एक तजुर्बेकार गहलोत से थे। वह भी तुरन्त एक्शन मोड़ में आये और अपने सभी विधायको को एक होटल में उन्होंने रख दिया। जिसके बाद सचिन पायलट को मनाने की ज़िम्मेदारी उठाई प्रियंका गांधी ने। उन्होंने 10 अगस्त को आखिर बातचीत कर सचिन पायलट को मना लिया। यहाँ सत्ता परिवर्तन को मुह की खानी पड़ी।
ऐसा ही कुछ हुआ कर्नाटक में। 2017 के विधानसभा चुनावों में भले भाजपा ने 104 सीट जीत कर सबसे बड़ी पार्टी होने का तमगा खुद के नाम किया हो मगर सरकार बनाने के लिए जादुई आकडे उसके पास नही थे। यहाँ बीएस यदुरप्पा ने राज्यपाल से भेट कर सरकार बनाने का दावा पेश किया और मुख्यमंत्री पद की शपथ ले लिया। मगर यदुरप्पा यहाँ फ्लोर टेस्ट नही पास कर पाए और उनकी सरकार गिर गई।
यदुरप्पा को मुख्यमंत्री पड़ से इस्तीफा देना पड़ा। जिसके बाद कांग्रेस ने अपने 80 और जेडीएस ने अपने 37 विधायको के साथ सरकार बनाने का दावा पेश किया। पूर्ण बहुमत रखने वाला ये गठबंधन 2 साल भी सरकार नही चला पाया था कि वर्ष 2019 के जुलाई में कांग्रेस के 12 और जेडीएस के 3 विधायक बागी हो गए। मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा पंहुचा था और मुल्क की सबसे बड़ी अदालत ने कुमारस्वामी सरकार को फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया था। बागी विधायको के बाद कांग्रेस जेडीएस गठबंधन के पास 101 विधायक बचे थे और भाजपा के पास 105 विधायक थे। आखिर फ्लोर टेस्ट में कुमारस्वामी सरकार गिर गई और यहाँ भाजपा ने अपनी सरकार बना लिया जो आज भी है। यहाँ मिली कामयाबी पूरी तरफ से यदुरप्पा की कामयाबी मानी जाती है।
इसी प्रकार 2019 महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में भाजपा को 105 शिवसेना को 56 सीट पर जीत हासिल हुई थी। इस तरीके से गठबंधन को स्पष्ट बहुमत तो मिला था। मगर यहाँ शिवसेना अपना सीएम चाहती थी। जिसके बाद मामले में पेच फसना शुरू हो गई। यहाँ चुनाव में एनसीपी को 54, और कांग्रेस को 44 सीट मिली थी। इन दोनों को मिलाकर बहुमत की संख्या पूरी नही हो पा रही थी। यहाँ एनसीपी मुखिया शरद पवार ने अपना सियासी तजुर्बा अपनाया और शिवसेना-कांगेस तथा एनसीपी गठबंधन करवा दिया जिसका नाम “महाविकास अघाड़ी” दिया गया। अभी ये गठबंधन अपनी सरकार बनाने का दावा करता उसके पहले ही भाजप के द्वारा इस गठ्बन्धन में सेंध लगाने के लिए अजीत पवार से हाथ मिला लिया गया। इसके एवज में अजीत पवार पर लगे सारे आरोप वापस लेने की बात कही गई थी।
“महाविकास अघाड़ी” गठबंधन सरकार बनाने का दावा पेश करता इसके ठीक एक दिन पहले 23 नवंबर 2019 को ही मुख्यमंत्री के रूप में देवेंद्र फडणवीस ने अजीत पवार का साथ पाकर शपथ ले ली। अजीत पवार को उप मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। मगर यहाँ शरद पवार का सियासी अनुभव काम आया और उन्होंने अपने विधायको को अजीत पवार के साथ जाने से रोक लिया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया। जब फडणवीस को लगा कि वह बहुमत नहीं हासिल कर पाएंगे तो उन्होंने 72 घंटे में ही इस्तीफा दे दिया। यहां भाजपा एनसीपी को तोड़ कर सरकार बनाने की कोशिश कर रही थी। मगर शरद पवार की रणनीति के आगे भाजपा की रणनीति फेल हो गई।
फरवरी 2017 में गोवा विधानसभा चुनावों में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। मगर यहाँ सरकार भाजपा ने कम सीट होने के बाद भी बना लिया। कम सीटें होने के बावजूद भी भाजपा ने सरकार बनाने का दावा पहले पेश कर दिया। जा तक कांग्रेस अपने अन्य सहयोगी दलों से बात करती तब तक भाजपा ने कम सीट होने के बाद भी अपना दावा पेश कर दिया। चुनाव में किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला, लेकिन कांग्रेस 17 सीटों के साथ सबसे बड़ा पार्टी बनकर उभरी। जिसके बाद सत्ता की चाबी छोटे दलों और निर्दलियों के हाथ में थी। कांग्रेस जब तक छोटे दलों और निर्दलियो से बातचीत शुरू करती तब तक मनोहर पर्रिकर ने 21 विधायकों के समर्थन की बात कहते हुए सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया और राज्यपाल मृदुला सिन्हा ने उन्हें सरकार गठन का न्यौता दे दिया। राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि गोवा में कांग्रेस के बहुमत का भाजपा ने हरण कर लिया। कांग्रेस का तर्क था कि सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते सरकार गठन के लिए उन्हें पहले बुलाया जाना चाहिए था।
2014 अरुणाचल प्रदेश विधान सभा चुनावों में कांग्रेस के दो तिहाई से ज्यादा विधायकों को तोड़कर नई सरकार बन गई थी। इस दरमियान कांग्रेस के नेताओं के बीच की रंजिश खुलकर सामने आती रही। आखिरकार 16 सितंबर 2016 को कांग्रेस पार्टी के मुख्यमंत्री पेमा खांडू और 42 विधायक पार्टी छोड़कर पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल प्रदेश में शामिल हो गए और भाजपा के साथ मिल कर सरकार बना लिया। ये कांग्रेस को सबसे बड़ा सियासी झटका था।
ऐसा ही वर्ष 2012 में उत्तराखंड विधानसभा चुनावो में हुआ जहा कांग्रेस ने मुख्यमंत्री पद से विजय बहुगुणा को हटा दिया। जिसके बाद भाजपा उनकी नाराजगी को भुनाकर कांग्रेस को तोड़ना और विधानसभा में बहुमत हासिल करना चाहती थी। दरअसल उत्तराखंड में हुवे इस चुनाव में भाजपा अपनी हार को डाइजेस्ट नही कर पा रही थी। यहाँ कांग्रेस 32 सीटें मिली और वह सबसे बड़ी पार्टी बनी, जबकि भाजपा 31 सीटें मिलीं। लेकिन जैसे ही कांग्रेस ने केदारनाथ आपदा के बाद विजय बहुगुणा को हटाकर 2014 में हरीश रावत को मुख्यमंत्री बनाया, वैसे ही भाजपा को यहां अपनी उम्मीदें दिखाई देने लगी।
जिसके बाद 18 मार्च 2016 को बहुगुणा समेत कांग्रेस के 9 विधायक बागी हो गए। हालांकि, उत्तराखंड के स्पीकर ने जब कांग्रेस के 9 बागियों को अयोग्य घोषित कर दिया तो केंद्र सरकार ने उसी दिन राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बागी विधायकों को दूर रखते हुए शक्ति परीक्षण कराया गया। 11 मई 2016 को हुवे इस बहुमत परीक्षण में हरीश रावत की जीत हुई। सुप्रीम कोर्ट के चलते भाजपा की सरकार बनाने की तमन्ना रुक गई।
इनपुट साभार दैनिक भास्कर
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