तारिक़ आज़मी
डेस्क: नेशनल हेराल्ड प्रकरण में ईडी यानी प्रवर्तन निदेशालय इस समय राहुल गांधी से पूछताछ कर रहा है। गाँधी परिवार पर इस मामले में 2000 करोड़ के घोटाले का आरोप लगाया जा रहा है। इसकी सबसे पहले शिकायत भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने वर्ष 2012 में इस मामले में सोनिया गांधी, राहुल गांधी, मोतीलाल वोरा, ऑस्कर फर्नांडीस, पत्रकार सुमन दुबे और टेक्नोक्रेट सैम पित्रोदा के खिलाफ मामला दर्ज कराया। तब केंद्र में कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए की सरकार थी।
इस फैसले के बाद पंडित जवाहर लाल नेहरू जो आज़ाद भारत के पहले प्रधानमन्त्री थे ने 20 नवंबर 1937 को एसोसिएटेड जर्नल लिमिटेड का गठन किया था। इसका उद्देश्य अलग-अलग भाषाओं में समाचार पत्रों को प्रकाशित करना था। इस क्रम में नेशनल हेराल्ड अखबार अंग्रेजी में, कौमी आवाज़ उर्दू में और नवजीवन हिंदी में प्रकाशित होना शुरू हुआ। अगर तवारीख के झरोखे से देखे तो इन तीनो अखबारों ने जंग-ए-आज़ादी में अपना अपना सहयोग किया।
ये भी एक हकीकत थी कि एसोसिएट जर्नल लिमिटेड जिसको एजीएल कहकर संबोधित किया जाता था के स्थापना में सबसे बड़ा योगदान पं0 जवाहर लाल नेहरू का था, मगर इस पर मालिकाना हक कभी भी उनका नहीं रहा। क्योंकि, इस कंपनी को काफी स्वतंत्रता सेनानी सहयोग कर रहे थे और वही इसके 1000 स्टेट शेयर होल्डर भी थे। जंग-ए-आज़ादी ख़त्म होती है और अपना मुल्क आज़ाद होता है। ये तीनो अख़बार उसके बाद भी चलते थे। एजीएल को 1956 में गैर-व्यावसायिक कंपनी कर दिया गया।
इसके बाद 90 का दशक आता है और इस दरमियान एजीएल घाटे में आ गई। एजीएल पर करीब 90 करोड़ का क़र्ज़ हो जाता है। यहाँ तक तो सब कुछ ठीक ठाक दिखाई दे रहा था। मामला तब भी पेचीदा नही होता है जब साल 2008 में एजीएल के सभी प्रकाशन बंद हो जाए है। कंपनी पर 90 करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज चढ़ गया था। अखबारों का प्रकाशन बंद करने के बाद एजीएल प्रॉपर्टी के कारोबार में उतर गई।
2010 में एजीएल के 1057 स्टेट शेयर होल्डर्स थे। मामला यहाँ तक भी पेचीदा नही था। वर्ष 2010 में यंग इंडिया प्राइवेट लिमिटेड का निर्माण होता है। 28 नवम्बर 2010 को यंग इण्डिया प्राइवेट लिमिटेड का निर्माण होता है और जिसके फाउन्डर मेंबर थे पत्रकार सुमन दुबे और सैम पेत्रो। जिसके बाद 13 दिसंबर को राहुल गाँधी इस कंपनी के साथ जुड़ते है और फिर 22 जनवरी 2011 को इस कंपनी के साथ सोनिया गांधी, मोती लाल वोरा, ओस्कर फर्नांडिस जुड़ते है। यंग इंडिया की वर्किंग कैपिटल 50 लाख दिखाई गई थी। अब सवाल ये खड़ा हुआ कि यंग इंडिया जो केवल 50 लाख की कंपनी थी उसने नेशनल हेराल्ड जिसका क़र्ज़ 90 करोड़ था को चूका कर अपने में समाहित कैसे कर लिया।
यहाँ गौर करने वाली बात थी कि एजीएल यानी नेशनल हेराल्ड की मुख्य तीन संपत्तियां थी जिसमे दिल्ली स्थित आईटीओ का भवन और बांद्रा की एक 9 मंजिली इमारत शामिल है। इसको ईडी ने वर्ष 2020 में कब्ज़े में ले लिया है। बहरहाल, मुख्य सवाल ये था कि 50 लाख की कंपनी ने 90 करोड़ का क़र्ज़ कैसे चूका दिया। सब मिला जुला कर सवाल बड़े खड़े हुवे और सुब्रह्मण्यम स्वामी ने लगभग 55 करोड़ के हेराफेरी की शिकायत दर्ज करवाया। वर्ष 2014 के जून की 26 तारिख को मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के अदालत द्वारा सम्मन जारी किया जाता है जिसमे अगस्त में पेशी को कहा जाता है। इस बीच अगस्त में ईडी ने केस दर्ज कर लिया और मामला फिर ईडी के पास पहुच जाता है।
अब सबसे साफ़ साफ़ बात यहाँ ये है कि ईडी के पास विपक्ष के लगभग सभी नेता की फाइल है। 2014 में ईडी द्वारा दर्ज इस मामले में वर्ष 2015 में जाँच चालु हो जाती है। ईडी जिसके पास लगभग 5 हज़ार केस है और उसकी समाधान का प्रतिशत महज़ 0.3 फीसद है तथा 5-6 फीसद मामलो में वह निस्तारण के करीब है के कार्यशैली पर विपक्ष हमेशा से हमलावर रहा है। ईडी मनी लड्रिंग के केस में किसी को भी बुलाने की शक्ति रखती है। ऐसे में सवाल उठ रहे है और नियत पर शक जाहिर किया जा रहा है। अब बात ये भी है कि वर्ष 2014 में केस दर्ज होता है। 2015 में सुनवाई शुरू होती है और 2019 में ईडी संपत्तियां ज़ब्त करता है।
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