तारिक़ आज़मी
कानपुर: वाहवाही पत्रकारिता, उपलब्धी की गिनती और साथ में एक आलीशान बिल्डिंग पर चला बुलडोज़र आज चर्चा का केंद्र बना हुआ है। एक तरफ जहा केडीए ने इसको अपनी पुरानी रूटीन कार्यवाही का हिस्सा बताया है, वही दुसरे तरफ पुलिस प्रशासन के स्थानीय थाना प्रभारी कोई भी बयान देने से साफ़-साफ़ मना कर रहे है। मगर पत्रकारिता ने उपलब्धियां गिनवाना शुरू कर दिया है कि यह दंगे के मुख्य षड्यंत्रकारी हयात ज़फर हाशमी के रिश्तेदार पर कार्यवाही सरकार ने किया है। मगर इस सबके बीच केडीए बहुत ही आसानी से एक बड़े सवाल से महफूज़ रह गया कि केडीए सचिव बंगले के सामने इतनी बड़ी अवैध इमारत बन कैसे गई। आप बज़र बजा सकते है कि सही सवाल….! मगर महफूज़ रह गया केडीए इस बड़े सवाल से।
अब भारी पुलिस बल के साथ होने की बात पर मिली जानकारी के अनुसार क्षेत्र संवेदनशील है। मामला किसी और तरफ न मुड जाए इसके लिए मौके पर भारी पुलिस बल तैनात थी। मामले में केडीए ने साफ़-साफ़ बताया कि भूमाफियाओ के खिलाफ केडीए की ये रूटीन कार्यवाही है। इसके किसी और से सम्बन्ध नही है। वही पुलिस के द्वारा भी बयान दिया गया कि केडीए के द्वारा ये कार्यवाही की गई है। मौके पर सुरक्षा व्यवस्था कायम रहे इसके कारण पुलिस बल की तैनाती है। कुछ पत्रकारों ने मौके पर ही पुलिस अधिकारी और केडीए के अधिकारी द्वारा इसको विभाग की नार्मल रूटीन की कार्यवाही बताया।
मगर उफ़…….., पत्रकारिता धर्म……., अमा जाने भी दो यारो……! एक तरफ जहाँ कानपुर की घटना में संवेदनशीलता को देखते हुवे प्रशासन भी सजग है। मगर वही पत्रकारिता धर्म की रक्षा के लिए कसम खाकर बैठे लोग ऐसा लग रहा था कि इस मामले में हयात ज़फर हाशमी से जोड़ के अपने लफ्ज़ अधिकारियों की जुबान से उगलवाना चाहते है। बार बार एक ही सवाल पर टिके थे कि ये हयात ज़फर हाशमी से जुडा शख्स है, हयात ज़फर हाशमी का कनेक्शन जो पुलिस को तलाशना था वह पत्रकारिता तलाश रही थी। बार-बार एक ही जगह पर कार्यवाही की सुई को लाकर रोका जा रहा था। शायद पत्रकारिता का धर्म निभा रहे थे।
अब बात मुद्दे की आती है। मुद्दे की बात ये है कि इश्तियाक अहमद की हयात ज़फर हाशमी से कौन सी रिश्तेदारी है ये बात खुद हयात ज़फर हाशमी के परिजनों को नही पता है। हमने इश्तेयाक अहमद से संपर्क करने की काफी कोशिश किया मगर संपर्क नही हो पाया। जिसके बाद हयात ज़फर हाश्मी के परिजनो से संपर्क करने की कोशिश किया। काफी मशक्कत के बाद हयात ज़फर हाशमी की बहन ने फोन उठाया और हमारे सवाल के जवाब में कहा कि “हमको तो नही पता कि इश्तियाक अहमद हमारे रिश्तेदार है। कौन सा हमारा रिश्ता है? पढ़ा मैंने भी खबर है और देखा भी है। मगर मेरी जानकारी में उनसे हमारी कोई रिश्तेदारी नही है।”
अब अगर बात करे कि आखिर पत्रकारिता धर्म क्या है? तो फिर वही बात निकल कर सामने आयेगी कि “अमा जाने भी दो यारो…..! सवाल तो ये होना था कि सचिव साहब के बंगला के सामने इतना बड़ा निर्माण जो अवैध था हो कैसे गया? “मगर फिर वही कहता हु कि अमा जाने भी दो यारो….! विजिट मिली न, टीआरपी चमकी न, तो फिर काहे का माथा खपाना?” पत्रकारिता का धर्म बाद में देखा जायेगा पहले विजिट और टीआरपी देख लिया जाए। कानपुर दंगे के बाद से एक नाम जो टीआरपी और और विजिट दिलवा सकता है हम पत्रकारों के पास है। मगर यहाँ एक बात मुद्दे की बता दू कि इश्तियाक अहमद की ये आलिशान बिल्डिंग केडीए सचिव के बंगले के सामने निर्मित हुई है। सवाल हम पूछ सकते है कि आखिर इतनी बड़ी अवैध इमारत बनी तो कहा था केडीए जो आज नींद से जागा है। मगर इस सवाल से केडीए महफूज़ रह गया और बात कही की थी और कही और चली गई।
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