शाहीन बनारसी
नई दिल्ली: केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर और सासंद प्रवेश वर्मा पर हेट स्पीच का आरोप था। उनके खिलाफ ऍफ़आईआर दर्ज करने की सीपीएम नेता वृंदा करात की याचिका दिल्ली हाईकोर्ट ने खारिज कर दी है। दिल्ली हाईकोर्ट ने हेट स्पीच को लेकर चिंता जताई। कोर्ट ने कहा कि विशेष रूप से धर्म, जाति, क्षेत्र या जातीयता के आधार पर निर्वाचित प्रतिनिधियों, राजनीतिक और धार्मिक नेताओं की ओर से दी गई हेट स्पीच भाईचारे की अवधारणा के खिलाफ हैं। ये संवैधानिक लोकाचार को ‘बुलडोज़’ करते हैं। साथ ही भारतीय संविधान के तहत दिए गए समानता, समता, स्वतंत्रता और जाने के अधिकार का उल्लंघन करते हैं। यह संविधान के तहत निर्धारित मौलिक कर्तव्यों का घोर अपमान है, इसलिए केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से कड़ी कार्रवाई की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि हेट स्पीच विशिष्ट समुदायों के सदस्यों के खिलाफ हिंसा और आक्रोश की भावनाओं को भड़काती हैं, जिससे उन समुदायों के सदस्यों के मन में भय और असुरक्षा की भावना पैदा होती है। हेट स्पीच को लगभग हमेशा एक समुदाय की ओर लक्षित किया जाता है ताकि उनके मानस पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव डाला जा सके, जिससे भय पैदा हो। हेट स्पीच लक्षित समुदाय के खिलाफ हमलों का शुरुआती बिंदु है जो भेदभाव से लेकर बहिष्कार, निर्वासन और यहां तक कि नरसंहार तक पहुंचता है। कश्मीर घाटी से कश्मीरी पंडितों के पलायन का उदाहरण देते हुए कोर्ट ने कहा यह पद्धति विशिष्ट रूप से किसी धर्म या समुदाय तक ही सीमित नहीं है, देश के विभिन्न हिस्सों में जनसांख्यिकीय संरचना के आधार पर विशिष्ट समुदायों के लोगों के खिलाफ लक्षित हेट स्पीच के उदाहरण हैं। इस तरह के नफरत/भड़काऊ भाषणों के बाद जनसांख्यिकीय बदलाव, कश्मीर घाटी से कश्मीरी पंडितों का पलायन एक प्रमुख उदाहरण है।
कोर्ट ने कहा कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19 उचित प्रतिबंधों के साथ बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करता है, यह एक पूर्ण अधिकार नहीं है। हेट स्पीच न केवल मानहानि का कारण बनती हैं बल्कि इस देश के धर्म के एक विशेष संप्रदाय के खिलाफ अपराध को भी भड़काती हैं। दंडात्मक कानून हेट स्पीच के खतरे को रोकने के लिए पर्याप्त उपाय प्रदान करता है। कार्यपालिका के साथ-साथ नागरिक समाज को पहले से मौजूद कानूनी व्यवस्था को लागू करने में अपनी भूमिका निभानी है। सभी स्तरों पर “हेट स्पीच” के प्रभावी नियंत्रण की आवश्यकता है। सभी कानून लागू करने वाली एजेंसियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि मौजूदा कानून को एक मृत पत्र नहीं बनाया गया है।
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