तारिक़ आज़मी
जॉन एलिया..! उर्दू शायरी की दुनिया में बड़े ही अदब से ये नाम लिया जाता है। उत्तर प्रदेश के अमरोहा में 14 दिसंबर, 1931 को जन्मे जॉन एलिया ने उर्दू शायरी को एक नया मकाम दिया था। उनके अशआर जमीन से जुड़े हुवे रहते थे। मुशायरो के मंचो पर सिगरेट का कश लेते हुवे जॉन एलिया ने जो शेर कह दिया वह बेशक उर्दू अदब के फलक पर एक चमकीले सितारे की तरह आज भी कायम है।
एक महफ़िल में जॉन एलिया ने अपने इस दर्द को बयान भी किया था। जॉन ने सलीम की सदारत में हो रही इस महफ़िल के लिए कहा था कि अगर सलीम जाफरी न होता तो आप जॉन एलिया को आप नही जानते रहते। उन्होंने इस महफ़िल में कहा था कि “आप सामी नही है, ये खानवादा है” उन्होंने अर्ज़ किया था कि बेदिली।।! क्या युही दिन गुज़र जायेगे, सिर्फ जिंदा रहे हम तो मर जायेगे।” उन्होंने आगे कहा था कि “ये खराबतियाँने खैराब बाख्ता, सुबह होते ही सब काम पर जायेगे।
जॉन ने एक शेर में कहा था कि “कितने दिलकश हो तुम, कितना दिलजू हु मैं, क्या सितम है कि हम लोग मर जायेगे।” उन्होंने कहा था कि “मेरी अक्ल-ओ-होश की सब हालाते, तुमने सांचे में जुनू के डाल ली, कर लिया था मैंने अहद-ए-तर्क-इश्क, तुमने फिर बाहे गले में डाल ली। जॉन एलिया के सबसे करीबी दोस्त सलीम जाफरी के इन्तेकाल के बाद जॉन काफी टूट गए थे। शर्म, दहशत, झिझक, परेशानी, नाफ़ से काम क्यों नही लेती। आप, वो, जी ये सब क्या है? तुम मेरा नाम क्यों नही लेती।” सलीम जाफरी के इन्तेकाल के बाद टूटे हुवे जॉन एलिया को लोगो ने देखा और महसूस किया था।
एक महफ़िल में जॉन ने सलीम को याद करते हुवे कहा था कि सलीम के जाने के बाद से अब महफ़िलो में मन नही लगता है। जॉन ने अपनी इस महफ़िल जिसको जानकार बताते है कि उनकी आखिरी महफ़िल थी में अपनी एक पुराने ग़ज़ल को पेश किया था और जॉन इसमें आंसुओ से रोने लगे थे। उन्होंने अपने ग़ज़ल के कलाम में कहा था कि ”हालत-ए-हाल के सबब, हालत-ए-हाल ही गई, शौक में कुछ नही गया, शौक की ज़िन्दगी गई।” उन्होंने इसके आगे जो शेर कहे वह वाकई आज भी अजर अमर है।
इस ग़ज़ल के आखरी शेर के बाद बताया जाता है कि जॉन एलिया फुट फुट कर सलीम जाफरी के याद में रोने लगे थे और फिर किसी और महफ़िल में वह नही गए। जॉन एलिया का इसके बाद 8 नवंबर 2002 को इन्तेकाल हो गया था। अज़ीम शायर मजरुह सुल्तानपुरी ने जॉन एलिया के मुताल्लिक एक शानदार अलफ़ाज़ कहे थे। जॉन महफिल में खुद बैठे थे और कहा जाता है कि जॉन एलिया महफ़िल की जान हुआ करते थे। उस महफ़िल में जॉन एलिया का तार्रुफ़ मजरुह साहब ने ये कहकर करवाया था कि “ये बदबख्त शायरों का शायर है।” बेशक मजरुह साहब के लफ्ज़ जॉन एलिया के लिए गलत नही थे। आज जब दो दशक गुज़र चुके है और जॉन साहब अगर हयात में होते तो बेशक उनकी उम्र 91 बरस होती। एक 20 साल पहले इस दुनिया से रुखसत हो चुके शख्स के अलफ़ाज़ आज भी नवजवानों की पहली पसंद है।
जॉन एलिया के अब तक पांच गजल संग्रह प्रकाशित हुए हैं। उनके गद्य का भी कलेक्शजन ‘फर्नूद’ छप चुका है। जौन एलिया अंत में क्षय रोग के शिकार हुए थे। जॉन एलिया की शायरी में दर्द और जिंदगी के कई चेहरे नजर आते हैं। आज भी युवाओं द्वारा उन्हें काफी पढ़ा और सुना जाता है। 2020 में पंजाबी रैपर के कैप ने जौन एलिया की शायरी को “बुलावा” सॉन्ग में अपनी आवाज से पिरोया था। आइये उनके कुछ शानदार अशआर आपके नज्र करते है,
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