तारिक़ आज़मी
वाराणसी में एक तरफ ज्ञानवापी मस्जिद से लेकर मस्जिद धरहरा माधोसिंह तक विवादों में आ चुकी है। किसी का कुछ दावा रहता है तो किसी का कुछ और दावा रहता है। मगर इन सबके बीच लोगो की नजरो को बचा कर मंदिर की संपत्ति और मंदिर तक बेच दिया गया है। यही नही खरीदार अब बाहुबल से कब्ज़ा दखल भी ले चूका है और भवन में तोड़फोड़ भी शुरू करवा चूका है। रोकने वाला कोई है नही, आखिर धनबल और बाहुबल दोनों खरीदार के साथ है, तो खरीदार को कौन रोकेगा।
प्रकरण जो निकल कर सामने आया है वह कुछ इस प्रकार है कि वाराणसी के दशाश्वमेघ थाना क्षेत्र स्थित मदनपुरा इलाके के सदानन्द बाज़ार में एक राम-जानकी मंदिर है। दरअसल ये मंदिर भवन संख्या डी0 43/73-74 में स्थित है। इस भवन के मुख्य स्वामी थे सोमनाथ, जिन्होंने लगभग एक सदी अपने भवन के जुज हिस्से में मंदिर को बनवा कर पूजा पाठ करते थे। सोमनाथ के कोई संतान नही थी और उनकी पत्नी का नाम रामदेई था। संतान न होने के कारण सोमनाथ ने कैलाश नाम के एक बालक को गोद ले लिया था। कैलाश का नामकरण उन्होंने कैलाश नाथ किया और अपने पुत्र के सामान ही दत्तक पुत्र की शिक्षा दीक्षा का पूरा ख्याल रखा।
सोमनाथ का देहांत होने के बाद उक्त मन्दिर और भवन की एकमात्र स्वामिनी बनी उनकी पत्नी रामदेई। रामदेई को अपने दत्तक पुत्र कैलाश नाथ पर विश्वास कम होने लगा और उनको शायद शंका रही होगी कि कैलाश नाथ उनके पति द्वारा बनवाई गई संपत्ति को बेच देगा। जिसका निस्तारण रामदेई ने अपने पति के मित्र और पडोसी रहे हरी तथा पन्ना लाल से संपर्क कर अपने भवन डी0 43/73-74 को भगवान के नाम उपहार करते हुवे कैलाश को अधिकार दिया कि उक्त भवन से होने वाली आय के माध्यम से वह अपना खर्च आजीवन अपने व परिवार के साथ चला सकता है। इसीलिए शर्त धरी कि इसके एवज में उसको मन्दिर में भगवान् के सेवईत की तरह काम करना होगा। रामदेई ने यह वसीयतनामा 1 नवम्बर 1965 को तत्कालीन चीफ सब रजिष्ट्रार वाराणसी के यहाँ किया जो बही संख्या 3, के जिल्द संख्यां 652 के पृष्ठ संख्या 5 से 10 पर अंकित है। बुज़ुर्ग इलाके के नाम न ज़ाहिर करने की शर्त पर बताते है कि भवन में कुछ किरायदार थे, जिनसे अच्छा ख़ासा किराया आता था। मगर शायद ये किराय की राशि कम पडती होगी कैलाशनाथ को और चाहत ज्यादा रही होगी।
इस वसीयतनामें के शरायत संख्या 3 में रामदेई ने साफ़ साफ़ लिखा कि कैलाश नाथ को ये अधिकार तो रहेगा कि वह संपत्ति से मिलने वाली आय से अपने परिवार को भरण पोषण कर सके। मगर वह संपत्ति को बेच नही सकता है और न ही इस संपत्ति को लीज़ पर दिया जा सकता है। साफ़ साफ़ इस तहरीर को करने में शायद रामदेई का कैलाश नाथ पर वह अविश्वसनीयता थी जो उनके गुजरने के बाद सच साबित हुई। समय गुज़रा और रामदेई का देहांत हो जाता है। जिसके बाद इतनी मूल्यवान संपत्ति पर कैलाश नाथ की नियत ख़राब हो जाती है और वह वर्ष 1985-86 में उस संपत्ति का सट्टा इकरारनामा फैय्याज, फैजान वगैरह कुल 3 लोगो के नाम कर देता है और इनसे इस संपत्ति के लिए रकम ले लेता है।
इसके बाद फ़य्याज़, फैजान आदि ने मिलकर षड्यंत्र के तहत इस भवन की रजि0 करवा लिया जाता है। सभी कागज़ात को अँधेरे में रख कर उस वसीयतनामे जो रामदेई ने भगवान को अपनी संपत्ति का मालिक मुक़र्रर किया था को छिपा कर इस संपत्ति को फैय्याज आदि द्वारा खरीद लिया जाता है। जिसके बाद कागजों की जलेबी बन सके और मूल दस्तावेज़ कागजों के बोझ में दब कर अपना दम तोड़ दे इसलिए फ़य्याज़ आदि द्वारा इस भवन को मदनपुरा स्थित जगजीवनपूरा निवासी महमूद आलम को बेच दिया जाता है। कागजों के बोझ के नीचे मूल दस्तावेज़ दब जाते है और महमूद आलम भगवान राम जानकी की इस संपत्ति का मालिक हो जाता है।
यहाँ से भू-माफिया आमिर अंसारी की इंट्री इस पुरे प्रकरण में होती है। आमिर अंसारी लक्सा थाने का एक अपराधी है जिसकी हिस्ट्रीशीट है और उसके ऊपर गुंडा एक्ट भी लग चूका है। आमिर अंसारी ने मामले में और भी जलेबी कागजों की बनाया तथा इस मामले में कई पेच खेले और बाहुबल के दम पर तीन दिनों पहले संपत्ति पर कब्ज़ा कर लिया। यही नही संपत्ति को तोड़ फोड़ भी करवाना शुरू कर दिया। हद तो तब ख़त्म है जब एक अपराधिक इतिहास रखने वाले इस व्यक्ति ने पुलिस को भी अँधेरे में रखा और रामदेई के मूल दस्तावेज़ को दबा कर सिर्फ एक रजिस्ट्री के कागज़ को दिखा कर अपने कब्ज़े को जायज़ ठहरा दिया।
इस रिपोर्ट के साथ लगे दस्तावेज़ मूल दस्तावेज़ की छायाप्रति हमको हमारे एक सूत्र ने उपलब्ध करवाया है। अगले अंक में हम आपको दस्तावेजों के माध्यम से बतायेगे कि इस भवन में एक बहुमूल्य मूर्ति भी थी जिसको हमारे सूत्र बताते है कि अब नही है। जुड़े रहे हमारे साथ। धनबली महमूद आलम और बाहुबली आमिर अंसारी के गठजोड़ का भी और भी खुलासा बाकी है। फिलहाल मौके पर तोड़फोड़ चल रही है।
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