तारिक़ आज़मी
वाराणसी: मुल्क में अमन-ओ-आमान के साथ ईद-उल-अजहा बीत चूका है। जिस वक्त आप इस लेख को पढ़ रहे होंगे उस वक्त तक करीब करीब ईद-उल-अजहा का त्यौहार मुकम्मल हो चूका होगा। नगर निगम वाराणसी और साफ़ सफाई का बीड़ा उठाये जलकल विभाग अपनी पीठ थपथपा रहा होगा कि “बहुत खूब….!”। मगर हकीकत तो ये है कि आत्ममुग्ध नगर निगम और जलकल विभाग को थोडा सोचने की ज़रूरत है कि शहर के अधिकांश मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र में गन्दगी के बीच इस बड़े त्यौहार को शांतिपूर्वक निपटा देने के लिए उन्हें खुद की नहीं बल्कि शहर के सहनशील जनता की तारीफ करना चाहिए।
बेशक तस्वीर शर्मसार करने के लिए है। तो आइये नगर आयुक्त साहब और जलकल के जीएम साहब, हम लोग आत्ममंथन थोडा कर लेते है। बेशक हम ज़ाहिद-ए-क़लम को शर्मसार इस लिए होना चाहिए कि हमारी क़लम में अब वो तासीर नही बची कि आपके वातानुकूलित कार्यालय में ख़बर की गर्मी पैदा कर सके। अगर ऐसा होता तो शायद स्थानीय जेई साहिबा प्रीती जी अपना सरकार के द्वारा उपलब्ध करवाया गया सीयुजी नम्बर बंद करके न बैठती। हमारी खुद शनिवार को इस समस्या के लिए उनसे बतौर एक पत्रकार बात हुई थी। उन्होंने एक घंटे का आश्वासन भी दिया था। मगर क्या करना है साहब शर्मसार तो हम क़लमकारो को होना है जिनकी क़लम की तासीर को प्रीती मैडम ने शायद अपने सामने अदना बना रखा है। तो साहब, हम शर्मसार है कि हमारी क़लम की तासीर ख़त्म हुई।
नगर आयुक्त साहब और जलकल के जीएम साहब दूसरी तस्वीर जो आप देख रहे है वह आज की तस्वीर है। उसी जगह की तस्वीर है जहा की पहले थी. जब एक आम नागरिक खुद अपने हाथो से सार्वजनिक नाली साफ़ कर रहा था। स्थिति अभी भी कैसी है आप खुद देख सकते है। मगर आपके पास पहुची कागज़ी कार्यवाही की रिपोर्ट तो साफ़ साफ़ कहती होगी कि “वर्क डन, नो प्रॉब्लम फाउंड”। अब थोडा हम दोनों ही शर्मसार हो लेते है। हमारी क़लम में अगर तासीर नही बची है कि अधिकारी महोदय के कार्यालय के वातानुकूलित कमरे में थोड़ी लफ्जों की गर्मी पैदा कर सके, तो आपके आदेशो में भी इतनी तपिश नही बची है कि वह अधिनस्थो को सडक पर जन समस्या को हल करने के लिए भेज सके।
तो हम दोनों ही आइये शर्मसार होकर थोडा मुस्कुरा लेते है। मुस्कुराए तीन बार कि “ई पत्रकरवा बतिया तो ठीके लिखा है।” वैसे लिखने में हमारे कल्लन चा कहते है “शीन-क़ाफ़” में बहुते गलती होती है। आज एकदम ध्यान से लिखा है। जब कुछ न समझ आये तो ये देख लेना चाहिए कि “शीन-क़ाफ़” ठीक है। वैसे हमने कोई ऐसा मुद्दा नही उठाया है जिसको समझने के लिए इंजीयरिंग करना पड़े, मगर जलकल की कार्यप्रणाली को समझने के लिए मुझको लगता है कि इंजीनियरिंग में एडमिशन लेकर तीन बार फेल होना पड़ेगा। अब आप जोर जोर से तीन चार बार हंस सकते है।
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