तारिक आज़मी
बात दो साल पहले की है। शायद अप्रैल की गर्मियां अपने आखरी दिनों के तरफ जा चुकीं थी, या फिर मई का ये बचपन था। तारीख तो याद नही है, मगर हमारा मुल्क कोरोना के खौफ से डरा सहमा अपने घरों में बैठा हुआ था। सड़के वीरान थी, गलियों में खौफज़दा लोग कोरोना से डर कर बैठे थे। हर तरफ एक अजीब ख़ामोशी और दहशत थी। रोज़ कुआ खोदने और रोज़ पानी पीने वाले लोगो की हाल बुरी हो रही थी। जिसने हाथ फैलने में झिझक नही होती थी, उनका तो नही हाँ उनके बुरे हाल थे जिनका ज़मीर उनको हाथ फैलाने से रोक देता था। जिसकी जो वसत थी एक दूसरे की मदद कर रहा था। अल्लाह ने मुझको भी जो बख्शा था वो भी खल्क की खातिर हाज़िर था।
मासूम बच्ची की इल्तेजा को ठुकरा न सका और रुक गया। ब्लैक कॉफी मेरी हमेशा से पसंद रही है। शायद चल रही दूध की किल्लत ने ब्लैक कॉफी पर ज्यादा तवज्जो दिया होगा। मैं जब उनके कमरे में बैठा था तो बाहर गली में एक कुत्ता बैठा था। छोटा था, शायद भूखा था। जब तक मैं वहां था उसको ही देखता रहा। न मालूम क्या दिमाग मे असर किया कि मैं एक ब्रेड और एक पैकेट दूध लेकर आया। शायद वो छोटा सा कुत्ता जिसको लोग पिल्ला कहते है भूखा काफी था और उसने जी भर कर खाया। बात यू ही खत्म हुई और मैं वापस अपने घर को चला आया।
वक्त गुज़रता रहा और गुज़रे वक्त की बाते ये हो गईं। फिर कभी मेरा उधर जाना नही हुआ। आज उस इलाके हुकुलगंज में बाढ़ की क्या स्थिति है और क्या हालात है जानने के लिये उसी गली में चला गया। कुछ देर मैं रुका ही था कि एक कुत्ता दौड़ा दौड़ा आया और मेरे पांव के पास भौकता हुआ घूमने लगा। दो पल को मैं चिहुँका और पीछे हटने को हुआ तो वही मेरे परिचित ने मुझको आवाज़ दिया और पास आकर बताया कि यह वही छोटा कुत्ता है जिसको मैंने लॉक डाउन में खाना एक बार खिलाया था। उसके बाद से वह उन्हों मेरे परिचित के घर के सामने ही रहता है। मैं काफी अचम्भे में था कि दो साल होने को आये यह बेजुबान जानवर आज भी मुझे पहचान रहा है।
मैने एक बिस्किट लेकर उसके सामने डाला। उसने खाया तो ज़रूर मगर मेरे अगल बगल वह घूमता रहा। शायद थक गया होगा तो वही पास ही एक किनारे बैठ गया। मैं बड़े सोच में था। इतनी वफादारी और अहसान मानने वाले का नाम कुत्ता है। मगर समाज एक हिकारत के अलफ़ाज़ से इसको आवाज़ देता है। वह एक जानवर आज भी शायद उस भोजन को मेरा अहसान मांन रहा होगा। जबकि मैंने अपने दिल के सुकून के लिए उसको वह खाना खिलाया था। वह भी सिर्फ एक बार। उसके बाद मेरा इत्तिफाक ही रहा कि उस इलाके से कभी गुज़र नही हुआ। कभी मैंने उसको देखा भी नही। छोटा सा एक पपी और गबरू जवान हो चूका है। मगर वह उन चंद लम्हों को आज भी नही भुला है।
इसको लोग आवारा कुत्ता जैसे हिकारत के अलफ़ाज़ से नवाजते है। एक हम इंसान है। जिसने पैदा किया, जिसने पाल पोस कर जवान किया। जिसने हमारा वजूद बनाया। जिसने हमको नाम दिया, जिसने हमको तालीम दिया, जिसने हमको इस लायक बनाया कि हम अपनी पहचान रख सकते है और अपने कदमो पर खड़े हो सकते है। हम उसको भूल जाते है। मंदिर हो या मस्जिद कही हाथ जोड़ कर तो कही हाथ फैला कर मांगते रहते है। मगर अल्लाह के फरिश्तो की शक्ल में हमारे वालिदैन, हमारे घर के अन्दर रहते है, हमारे उस्ताद हमारे आसपास रहते है। मगर हमारे लिए साल का तीन दिन इन फरिश्तो के लिए होता है। फादर्स डे, मदर्स डे और टीचर्स डे।
जो पैदा करता है हम उसको भूलने लगते है। बेशक सभी ऐसे नही नहीं। मगर कभी मदर्स डे और फादर डे पर सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर जाइए। आपको मातृभक्त और पिता के चाहने वालो की एक अजीब भीड़ मिलेगी। इसके बावजूद भी हम जो सभ्य होने का दावा करते है, हमारे ही समाज में वृद्धाश्रम है। हर शहर में है और उनमे अच्छी खासी आबादी है। फिर किसके माँ-बाप वो है?
आदिल अहमद डेस्क: महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के बेटे और पूर्व मंत्री आदित्य…
फारुख हुसैन डेस्क: 18वें प्रवासी भारतीय दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भुवनेश्वर में भारतीय…
आफताब फारुकी डेस्क: राजस्थान का कोटा शहर एक बार फिर कोचिंग छात्रों के सुसाइड मामले…
ईदुल अमीन डेस्क: मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की नेता वृंदा करात ने कहा है कि वामपंथी…
तारिक खान डेस्क: बुधवार को तिरुपति में कई श्रद्धालु तिरुमाला हिल्स स्थित भगवान वेंकटेश्वर स्वामी…
शफी उस्मानी डेस्क: उत्तर प्रदेश पुलिस का एक अजीब-ओ-गरीब मामला सामने आया है। जहा एक…