ए0 जावेद
वाराणसी: वाराणसी यानी बनारस..! मौज और मस्ती का शहर बनारस अपना अलग ही सांप्रदायिक रिश्ता रखता है जिसको ताने बाने का रिश्ता कहते है। भले नफरतो एक सौदागर जितनी चाहे नफरत तकसीम करे, मगर बनारस की आपसी मुहब्बत अपना अलग ही रास्ता अख्तियार करके चलती है। इसका जीता जागता उदाहरण मिला इस सप्ताह के सोमवार और मंगलवार को। जहा एक तरफ सावन के आखरी सोमवार पर दर्शनार्थियों ने भगवान भोले के चरणों में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाया, वही दुसरे तरफ गम-ए-हुसैन ने ताजियों और जुलूसो का सिलसिला चलता रहा।
मंगलवार को जहा दर्शनार्थियों का आगमन पहले जैसा ही था वही दूसरी तरफ ताजियों का जुलूस भी निकल रहा था। रात भर जगी वाराणसी कमिश्नरेट पुलिस और खुद पुलिस कमिश्नर वाराणसी ए0 सतीश गणेश सुबह से ही सडको पर चक्रमण करते रहे। एक ही रास्ते से जहा ताजिया के जुलूस गुज़र रहे थे वही दूसरी तरह दर्शनार्थी भी गुज़र रहे थे। आपसी मुहब्बत और मिल्लत का एक बड़ा उदहारण दिखाई दे रहा था। एक उदहारण तो ऐसा इन आँखों ने देखा कि वाकई आपसी मुहब्बत लगा जवा हो गई हो। नज़ारा हमारे कैमरों में कैद होने से चुक गया वर्ना शायद ये बेस्ट फोटो होता।
हुआ कुछ इस तरह की दालमंडी से एक ताजिया का जुलूस नई सड़क चौराहे पर पंहुचा। तभी कावड़ियो का एक जत्था भी उधर से गुज़र रहा था। एक बुज़ुर्ग कावड लिए गुज़रते वक्त बड़े ही आस्था और विश्वास से ताजिये को हाथ लगा कर चुमते है। वही सबील लेकर चल रहे एक चाचा उनके हाथो में पानी की बोतल देते है। कौन कहता है नफरते अपने शबाब पर है। हमारी आँखों ने खुद इस मुहब्बत का मंज़र देखा है।
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