शाहीन बनारसी
वाराणसी: मिटटी भी जहां की पारस है, उस शहर का नाम बनारस है। बेशक मौज और मस्ती का शहर है बनारस। ये बनारस ही है जहा नई सड़क स्थित कोदई चौकी स्थित कोदो की मंडी से कोदो का चावल कम जाता था और अंगेजों के दांत खट्टे करने के लिए सम्वदिया अधिक जाती थी। ये वही शहर बनारस है जहा से शाही इमामबाड़े फातमान से जंग-ए-आज़ादी के फरमान जारी होते थे। ये बनारस है जहाँ जंग-ए-आज़ादी में दालमंडी इलाके ने भी अपना योगदान दिया तो भैरोनाथ इलाके ने भी योगदान दिया। मैदागिन पर आज़ादी के परवानो का जमघट होता था, तो रातो को दालमंडी की पेचीदा दलीलों जैसी गलियों ने आज़ादी के परवानो से लेकर लोकतंत्र के सेनानियों तक को पनाह दिया।
एक तरफ मुहर्रम का महिना चल रहा है। गम-ए-हुसैन में हर मुस्लिम डूबा हुआ है। इमामबाड़ो में मजलिसो का दौर जारी है। घरो पर गम-ए-हुसैन में हुसैनी झंडे काले रंग के लगे है। हुसैन की शहादत का ज़िक्र हो रहा है। वही गम-ए-हुसैन में जहा आँखों के एक कोने नम है तो दूसरी तरफ यौम-ए-आज़ादी के मौके पर दिल खुश है। नम आँखे और होंठो पर हंसी हो तो आप समझ सकते है कि हालात क्या होगी? ऐसा नज़ारा बनारस के कई मुस्लिम बाहुल्य इलाको में दिखाई दे जाएगा। ऐसी ही एक तस्वीर आज सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। जिसमे एक तरफ गम-ए-हुसैन का झंडा है तो उसी छत पर तिरंगा है। ऐसा माहोल सिर्फ शहर बनारस में ही दिखाई दे जायेगा। आइये यौम-ए-आज़ादी मनाइये। कुछ दिन तो बनारस में बिताइए,
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