भारत की परिकल्पना विषयक संगोष्ठी में बोले प्रोफ़ेसर आरिफ, समतामूलक समाज को संरक्षित करने की जिम्मेदारी राज्य की है
अजीत शर्मा/करन कुमार
अम्बेडकरनगर। जनपद के सिसवा स्थित कर्मयोगी रामसूरत त्रिपाठी महाविद्यालय में राष्ट्रीय एकता, शान्ति, सद्भाव एवं न्याय के लिए “भारत की परिकल्पना” विषयक परिचर्चा आयोजित की गई। इस परिचर्चा में मुख्य वक्ता गांधीवादी विचारधारा के डॉ0 मोहम्मद आरिफ ने कहा कि भारत हजारों सालो से विविध धर्म संस्कृतियों का देश रहा है। संविधान में समतामूलक समाज को संरक्षित करने की जिम्मेदारी राज्य की है।
उन्होंने कहा कि राज्य का कर्तव्य है कि वह ऐसा वातावरण निर्मित करे जिससे लोग बेहतर तरीके से एक दूसरे के साथ भाईचारा के साथ अपनी विविधिता को मेंटेन करते हुए रह सकें।यह परिकल्पना थी आईडिया ऑफ इंडिया की। संविधान भी मेल जोल, स्वतंत्रता, समता, बन्धुता की बात करता है।हमें अपने इन मूल्यों को बचा कर रखना होगा और समय समय पर इनकी रक्षा के लिए संघर्ष करना होगा।भारत की परिकल्पना तभी पूरी होगी जब हम बुद्ध, कबीर,गोरखनाथ,निज़ामुद्दीन औलिया, स्वामी विवेकानंद, गांधी,भगत सिंह, नेहरू आदि को पढ़ेंगे,जानेंगे और उनके विचारों पर चलेंगे।
विशिष्ट वक्ता विनोद गौतम ने कहा कि आपसी मेल जोल के लिए सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देना होगा तभी एक सुंदर व खुशहाल भारत बनेगा। हम अपने विवेक से निर्णय लें और आगे बढ़ें। संविधान की मूल अवधारणा लेकर चलें तो सर्वे भवन्ति सुखिना, सर्वे भवन्तु, निरामया को आगे बढ़ा पाएंगे।किसी भी देश में यदि उथल पुथल होता है तो उसकी जिम्मेदार सत्ता होती है क्योंकि जनता सत्ता के भरोसे रहती है। खुद के अधिकारों को पहचानने की जरूरत है। आज हमारे अधिकार छीन गए हैं। सामाजिक बदलाव के लिए जागरूकता आवश्यक है।
मनोज कुमार ने कहा कि सामाजिक एकता को कायम रखने के लिए संयम व जिम्मेदारी आवश्यक है। विचारों को सोचते रहना चाहिए कि समाज में क्या हो रहा है और कुछ ऐसे कार्य होते हैं उससे एकता खतरे में आ जाती है। ऐसा वातावरण का निर्माण करें ताकि एकता व प्रेम कायम रहे। इस तरह के आयोजन के जरिये हम एक दूसरे को समझते हैं। सभी धर्म संस्कृति का सम्मान होगा तभी राष्ट्रीय एकता, शांति, सद्भाव व न्याय कायम होगा। वीरेंद्र त्रिपाठी ने कहा कि आज समाज मे विखराव और नफरत बढ़ रहा है। हमें एकता, शांति न्याय को अक्षुण बनाये रखना होगा। उसके लिए अपनी मानसिकता बदलनी होगी। हमें अपने मूल्यों व धरोहरों को मजबूत बनाना होगा। देश मे रहने वाले सभी धर्मों के लोग अपने है और सबको बराबर अधिकार हासिल है। उनके साथ भेदभाव करना संविधान के मूल्यों के साथ खिलवाड़ है।
कामिनी ने कहा कि देश स्वस्थ समाज की परिकल्पना को तभी पूरा कर पायेगा जब अच्छे लोग हों। हिंदुस्तान की एकरूपता में जितनी तरह की आवाजें, संस्कृति, भिन्नता होगी उतना ही मजबूत होगा। इतनी सारी विविधताओं के बाद भी देश की एकता मजबूत है। कार्यक्रम में अम्बेडकरनगर के विभिन्न क्षेत्रों से आये हुए सैकड़ों प्रतिभागी शामिल हुए। स्वागत और विषय प्रवेश वीरेंद्र त्रिपाठी,संचालन मनोज कुमार और आभार अंजू ने व्यक्त किया।