शाहीन बनारसी
डेस्क: ज्ञानवापी मस्जिद प्रकरण में वाराणसी जिला जज की अदालत ने मस्जिद कमेटी की आदेश 7 के नियम 11 में दाखिल याचिका को ख़ारिज कर दिया है। कल सोमवार को आये इस फैसले के बाद जहा एक तरफ वादिनी मुकदमा और उनके पक्षकारो में हर्ष की लहर है, वही मुस्लिम समाज ने इस फैसले पर अपनी नाराजगी जताई है। कल ही अंजुमन मसजिद इंतेजामिया कमिटी के संयुक्त सचिव एसएम यासीन ने इस सम्बन्ध में कहा था कि हम उपरी अदालत में इस फैसले के खिलाफ अपील दाखिल करेगे। इसके बाद कल देर रात और आज सुबह तक मुस्लिम समाज से सम्बंधित इदारो और संगठनो के बयान भी सामने आने लगे है।
बताते चले कि वाराणसी जिला अदालत ने सोमवार को कहा कि वह हिंदू देवताओं की दैनिक पूजा की मांग वाली याचिका पर सुनवाई जारी रखेगी, जिनकी मूर्तियां ज्ञानवापी मस्जिद की बाहरी दीवार पर स्थित हैं, मस्जिद समिति के तर्क को खारिज कर दिया कि मामला चलने योग्य नहीं है। इस फैसले के बाद ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने ज्ञानवापी मस्जिद मामले पर वाराणसी जिला अदालत के फैसले को निराशाजनक करार दिया है। एआईएमपीएलबी के महासचिव मौलाना खालिद सैफुल्ला रहमानी ने एक बयान जारी कर कहा है कि जिला न्यायाधीश की अदालत का प्रारंभिक फैसला निराशाजनक और दु:खद है। उन्होंने कहा कि अयोध्या मामले में वर्ष 1991 में संसद ने कानून बनाकर मंजूरी दी थी कि बाबरी मस्जिद को छोड़कर सभी पूजास्थलों को वर्ष 1947 की स्थिति में रखा जाएगा और उसके खिलाफ कोई भी विवाद मान्य नहीं होगा।
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी अयोध्या मामले में दिए फैसले में धार्मिक स्थल अधिनियम 1991 की पुष्टि की और इसे अनिवार्य घोषित कर दिया। इसके बावजूद बनारस में ज्ञानवापी का मुद्दा उठाया। पर अफसोसजनक है कि स्थानीय जिला न्यायाधीश ने धर्मस्थल कानून 1991 की अनदेखी करते हुए याचिका को स्वीकार कर लिया। कोर्ट का प्रारंभिक फैसला बेहद निराशाजनक व तकलीफदेह है। सरकार को धर्मस्थल कानून 1991 को मजबूती से लागू करना चाहिए। ऐसी स्थिति उत्पन्न न होने दें कि अल्पसंख्यक समुदाय न्याय से निराश हो जाएं और महसूस करें कि उनके लिए न्याय के सभी दरवाजे बंद हैं। उन्होंने कहा कि अब यह दुखद दौर आ गया है जहां अदालत ने शुरू में हिंदू समूहों के दावे को स्वीकार किया और उनके लिए मार्ग प्रशस्त किया। यह देश और लोगों के लिए एक दर्दनाक बात है। रहमानी ने कहा कि यह देश की एकता को प्रभावित करेगा और सांप्रदायिक सद्भाव को नुकसान पहुंचाएगा।
इंडो इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन के सचिव अतहर हुसैन ने कहा कि अयोध्या मामले में 9 सितंबर 2019 को दिए गए सुप्रीम कोर्ट के आदेश को वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद सहित देश के सभी धार्मिक स्थानों पर धर्मस्थल अधिनियम 1991 की प्रयोज्यता के संबंध में स्वीकार किया जाना चाहिए। राम जन्मभूमि के अलावा कोई मामला जिसे 15 अगस्त 1947 से धार्मिक स्थल का दर्जा प्राप्त है, अगर इसे किसी अन्य धार्मिक स्थल के चरित्र में बदल दिया जाता है तो अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के सुनाए गए फैसले को नकारा जाना है।
इस मामले में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड कार्यकारिणी सदस्य और मुस्लिम समाज में अपनी पैठ रखने वाले मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद मामले में अपने आदेश में धर्मस्थल कानून 1991 का जिक्र किया था। इसके बाद जनता को यकीन हो गया था कि अब देश में मंदिर-मस्जिद से जुड़े तमाम मामले अब सुलझ गए हैं। इसके बावजूद धर्मस्थल एक्ट 1991 को लगातार नजरअंदाज किया जा रहा है। वही इस मामले में ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना यासूब अब्बास ने कहा कि ज्ञानवापी मामले में बनारस के हिंदू-मुस्लिम धर्मगुरुओं को बैठकर अदालत के बाहर कोई न कोई हल निकालना चाहिए। मस्जिद में शिवलिंग है या नहीं, यह अलग विषय है। मस्जिदों में फव्वारा व हौज होते हैं। फव्वारे को शिवलिंग का रंग देना गलत है। हमारी अपील है कि हम धर्म के नाम पर आपस में न लड़ें बल्कि गरीबी व अशिक्षा के खिलाफ लड़ें, तभी देश की तरक्की होगी।
इदारा शरईया हनफिया फिरंगी महल के अध्यक्ष मौलाना मुफ्ती अबुल इरफान मियां फिरंगी महली ने कहा कि धर्मस्थल कानून 1991 को नजरअंदाज कर लगातार इबादतगाहों पर दावा ठोका जा रहा है। इस तरह से देश में अमन व शांतिभंग होने की आशंका बनी रहेंगी। हिंदुस्तान हमेशा से गंगा- जमुनी तहजीब का केंद्र रहा है। सभी लोग प्यार-मोहब्बत से रहते आ रहे हैं। देश में अमन व शांति के लिए जो कानून बनाया गया था, उसका पालन करना चाहिए।
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