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समाजवादी पार्टी को लगा बड़ा झटका क्या अखिलेश संभाल पायेगे ?

तारिक़ आज़मी

उत्तर प्रदेश में यादव सियासत पर एक छत्र राज समाजवादी पार्टी का दशको तक रहा है। उत्तर प्रदेश की सियासत में समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने यादव समाज को अपने साथ जोड़ कर रखा था। मगर जब से पार्टी की कमान अखिलेश यादव के हाथो में गई है, समाजवादी पार्टी का कोर वोटर यादव समाज थोडा पार्टी से कटता दिखाई दे रहा है। प्रदेश में जातिगत समीकरण को देखे तो 9 फीसद की आबादी वाला यादव समाज मुलायम सिंह यादव के साथ हमेशा खडा रहा है। जिसके ऊपर भाजपा सहित सभी दलों की नज़र रही।

अगर इस विधानसभा चुनाव और लोकसभा की रामपुर और आजमगढ़ सीट को देखे तो ये वोट बैंक भाजपा ने भी तोडा काफी है। 2017 के बाद से हर चुनाव में बीजेपी ने यादव बेल्ट कहे जाने वाले मैनपुरी, इटावा, कन्नौज आदि जिलों में संगठन को मजबूती दी है। पार्टी में यादव नेताओं की नई पौध तैयार की गई है। सुभाष यदुवंश को विधान परिषद भेजा गया, वहीं अखिलेश के गढ़ आजमगढ़ से दिनेश लाल यादव “निरहुआ” को चुनाव लड़ा कर संसद भेजा। इन सबसे यादव समाज का रुझान थोडा भाजपा के तरफ होता दिखाई दे रहा है।

इन सबके बीच सबसे बड़ा झटका समाजवादी पार्टी को पिछले दिनों लगा है। जब सपा के पूर्व सांसद हरमोहन सिंह यादव की पुण्यतिथि पर आयोजित गोष्ठी में पीएम नरेंद्र मोदी ने हिस्सा लिया। यहाँ सबसे ज्यादा गौर करने वाली बात जो थी वह ये कि हरमोहन सिंह यादव को मुलायम सिंह का निकटस्थ माना जाता है और वह समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्यों में एक थे। केवल चौधरी हरमोहन सिंह यादव ही नही बल्कि उनका पूरा परिवार मुलायम सिंह यादव का करीबी हुआ करता था। वह तीन बार एमएलसी और दो बार राज्यसभा सांसद भी रहे। यादव महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे। हरमोहन सिंह के बेटे सुखराम 2004 से 2010 तक यूपी विधान परिषद में सभापति रहे। लेकिन समय के साथ ये परिवार सपा से दूर होता गया। इसी साल 2022 विधानसभा चुनाव से पहले उनके बेटे मोहित यादव भाजपा में शामिल हो गए। चुनाव के बाद सुखराम की पीएम मोदी और सीएम योगी से मुलाकात चर्चा का विषय बनी।

अब अखिलेश को एक बड़ा झटका अपनी चरप्रतिद्वंदी बसपा से मिल गया है। बसपा ने एक बड़ा झटका अखिलेश को दिया है। ये झटका अखिलेश को अखिल भारतवर्षीय यादव महासभा से मिला है। इस बार अगर ध्यान दे तो पहली बार ऐसा हुआ है कि अखिल भारत वर्षीय यादव महासभा से समाजवादी पार्टी का वर्चस्व टूट गया है। अगस्त में पूर्व सांसद उदय प्रताप सिंह ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। 11 सितंबर को गुजरात के द्वारका में महासभा की कार्यकारिणी बैठक हुई। इसमें बंगाल के स्वप्निल कुमार घोष को महासभा का नया राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लिया गया। वैसे स्वप्निल कुमार घोष पहले से ही राष्ट्रीय कार्यकारिणी में पदाधिकारी थे। उन्हें एक माह पूर्व ही उदय के इस्तीफे के बाद कार्यवाहक अध्यक्ष बनाया गया था। खास बात ये रही कि इस कार्यकारिणी में जौनपुर से बसपा सांसद श्याम सिंह यादव को कार्यकारी अध्यक्ष चुना गया। अब सपा की धुर विरोधी बसपा के नेता की महासभा में बढ़ती पकड़ चर्चा का विषय बनी हुई है।

अखिल भारतवर्षीय यादव महासभा वो संगठन है, जो 88 साल का हो गया है और महज़ 2 साल बाद अपने 100 साल पुरे कर लेगा। अखिल भारतवर्षीय यादव महासभा की स्थापना वर्ष 1924 में की गई थी। इस महासभा पर हमेशा से यूपी के नेताओं का ही वर्चस्व रहा। कुल 46 अध्यक्षों में से अधिकतर यूपी से ही रहे। मुलायम सिंह यादव शुरुआत से ही इस महासभा से जुड़े रहे। 90 का दशक आते-आते मुलायम का महासभा में वर्चस्व कायम हो गया। चौधरी राम गोपाल, हरमोहन सिंह और उदय प्रताप सिंह तीनों ही सपा से जुड़े रहे और महासभा में अध्यक्ष रहे।

उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव को यादवों का सबसे बड़ा नेता बनाने में इसी महासभा का योगदान माना जाता रहा है। 60 के दशक से मुलायम सिंह यादव के लिए अखिल भारत वर्षीय यादव महासभा मजबूत रीढ़ की तरह साथ देती आई। 90 के दशक में जब मुलायम ने समाजवादी पार्टी का गठन किया तो इस यादव महासभा का आधार उनके काफी काम आया। समाजवादी पार्टी देखते ही देखते सत्ता के पायदान पर पहुंच गई। महासभा की ही देन रही कि मुलायम सिंह यादव और समाजवादी पार्टी से यादव वोट बैंक सीधे तौर पर जुड़ गया। तमाम सियासी आंदोलनों, प्रदर्शनों में मुलायम को इस महासभा का साथ मिला।

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