तारिक़ आज़मी (सहयोगी: ए0 जावेद और शाहीन बनारसी)
वर्ष 2012 की यह तारीख थी 16 जून और दिन था शनिवार। शिद्दत की गर्मी से बेहाल शहर बनारस अपने रोज़मर्रा के काम-काज से फारिग होने को बेताब था। घडी कलेंडर की तारिख बदलने को दौड़ लगा रही थी। बेनिया की सड़के गुलज़ार थी। शहर बनारस जल्दी से जल्दी अपने घर इस शिद्दत की गर्मी से राहत पाने के लिए रवाना होने को बेताब था। रात के 8:30 होने को थे कि अचानक बेनिया खामोश रहने वाली कब्रिस्तान रहीम शाह बाबा चीखो से गूंज रही थी।
उस समय भी भले पुलिस कुछ भी कहती मगर जज्बाती खबरों ने इस बात को साफ़ साफ कहा था कि इस हत्या की सरज़मीन काफी पहले तैयार हो चुकी थी। घटना के बाद अगर आप अमर उजाला और दैनिक जागरण की खबरों को देखे तो उन्होंने भी इस मुद्दे को उठाया था कि ये विवाद की सरज़मीन पहले ही तैयार हो चुकी थी। जिसमे प्रशासन द्वारा विवाद की अनदेखी भारी पड़ी। फिर जो घटना हुई उसका आज आया फैसला उस रात को और हालात तो तरोताज़ा कर गया था।
कब्रस्तान की ज़मींन पर तकियादार को रहने के लिए थोड़ी जगह दिया गया था। जिसके ऊपर गद्दीनशीन मोहम्मद शफीक उर्फ़ राजू के द्वारा किया गया था। मगर ताकियादारो को मिला एक कुख्यात बाहुबली का समर्थन उनको बल प्रदान कर रहा था। मामला अदालत की चौखट तक पहुच गया था। शिकायत बार बार थाने पर जाती मगर कोई पुख्ता कार्यवाही ने होने के कारण ताकियादारो को बल मिलता जा रहा था। घटना के दिन सुबह से ही जो हालात-ए-हाजा बयान में आये सामने वह इस बात को साबित अदालत में कर दिया कि घटना पहले से ही प्लान थी। घटना के एक दिन पहले ही तीन बुजुर्गो की मजारो पर कब्ज़ा करने का प्रयास ताकियेदारो द्वारा हुआ था। लगभग डेढ़ बिस्वा के करीब ज़मींन ताकियेदार द्वारा पक्के निर्माण से कब्ज़ा किया जा रहा था जिस पर गद्दीनशीन शफीक “राजू” ने आपत्ति जताई थी और काम उस समय रुक गया था।
घटना के दिन स्थानीय निवासी मजीद भारती और सामू की माँ का देहांत हो गया था। दोनों की ही कब्र रहीम शाह बाबा के कब्रिस्तान पर बनी थी। अमूमन कब्र के बचे हुवे बांस को वही कब्र के पास रखा जाता है। मगर काजू की माने तो उस दिन वह बचे हुवे बांस कब्र पर न रखकर ताकियेदारो के द्वारा अपने घर के दरवाज़े पर रखा गया था। घटना से पहले की बात जो काजू ने बताया कि उक्त डेढ़ बिस्वा की ज़मींन पर बने तीन बुजुर्गो की कब्रों को ताकियेदारो द्वारा तोड़ कर कब्ज़ा किया जा रहा था। तीनो बुज़ुर्ग का नाम काले शाह, मलंग शाह और लाल शाह था।
घटना के समय तीनो बुज़ुर्ग की मजारो को टुटा देख कर गद्दीनशीन मो0 शफीक उर्फ़ राजू ने आपत्ति जताई। चश्मदीद और इस घटना में घायल हुवे काजू ने बताया कि जब भाई ने जाकर आपत्ति जताया तो ताकियादारो के द्वारा सीधे गाली देते हुवे हमला कर दिया गया। जो आया तो कब्र के बॉस जो पहले से रखे हुवे थे से मार खाया। सैफ की एक आँख बाहर आ चुकी थी। सभी घायल थे, मौके पर दो लोगो की मौत हो चुकी थी। दौरान-ए-इलाज दो अन्य की भी मृत्यु हो गई, मृतकों में गद्दीनशीन, उनके दो भाई और एक सेवादार था। सभी चारो कब्रे यही रहीम शाह बाबा के कब्रिस्तान पर बनी हुई है।
जनता का गुस्सा दिया दुसरे दिन
रात भर पूरा इलाका गद्दीनशीनो के इलाज में बेचैन था। सुबह होती है, और जनता की भीड़ अचानक कब्रस्तान पर पहुचती है। वर्ष 2012 के जून की 17 तारिख और रविवार का दिन। सुबह होते ही इस जघन्य हत्याकांड के खिलाफ गुस्से से आग बगुला हुई भीड़ कब्रिस्तान में घुस जाती है। ताकियेदारो के अवैध कब्ज़े को तोड़ दिया जाता है। पुलिस बल मौजूद था मगर इस गुस्से से उबल रही इस भीड़ के सामने बेबस था। भीड़ ने पुरे कब्रिस्तान में जो भी ताकियेदारो का कब्ज़ा था उसको तोड़ डाला। सब कुछ तहस नहस कर दिया। जिसके बाद भारी संख्या में पीएसी और पुलिस बल मौके पर पहुची और किसी तरह से इस भीड़ को शांत करवाया गया। गद्दीनशीन के अंतिम संस्कार में भी भीड़ का आलम ये था कि हवा को गुजरने की जगह नही हो पा रही थी।
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