शाहीन बनारसी
वाराणसी: दीपावली के मौके पर लगने वाली पटाखा मार्किट के लिए आखरी मिनट तक असमंजस की स्थिति अभी भी बनी हुई है। दालमंडी के पटाखा कारोबारियों के लिए कोई स्थान पोस्ट लिखे जाने तक निश्चित नही हो पाया है। कारोबारियों के बीच असमंजस की स्थिति बनी हुई है। कारोबारी नेता का दावा है कि बेनिया में पटाखा मार्किट लगेगी। जबकि नियम और तरीकत से अगर देखे तो यह संभव तो अब प्रतीत नही होता है। इन सभी कारणों से आज छोटी दीपावली के शाम होने तक कारोबारियों के बीच असमंजस की स्थिति है।
ठेका मिलने के बाद ही संस्था के कार्यशैली पर प्रश्नचिन्ह उठ रहे थे। कभी किसी युवक की पिटाई तो कभी मासूम बच्चो से उठक बैठक करवाने की घटना चर्चा का केंद्र रही है। पार्क में टॉय ट्रेन भी चल रही है और 50 रुपयों में पांच चक्कर रिमोट कार से बच्चे घूम भी रहे है। अब ये खिलौने संस्था ने अपने अनुमति से लगवाए है अथवा नगर निगम और स्मार्ट सिटी ने इसकी अनुमति दिया है, तो तो जानकारी हासिल नही हो पा रही है। मगर एक बात ज़रूर है कि सुरक्षा के नाम पर शुन्य ही दिखाई देता है। पार्क के बाहर हाथो में लाठिया लेकर बैठे इस संस्था के कर्मचारी खुद की दहशत या फिर सिस्टम इसी डंडे के जोर पर कायम रखते है।
ऐसे परमिशन पत्र क्या संस्था जारी कर सकती है ?
चर्चा में अब इस कार्यदाई संस्था के द्वारा जारी एक पत्र है। दरअसल मामला ये है कि इलाके के एक नेता जी ने पार्क में पटाखे की दुकाने लगवाने की सोची और संस्था से इसकी अनुमति जारी करने के लिए कहा। अब ये नही पता कि संस्था ने कितने लेकर इस सेटिंग गेटिंग खेल में अपनी भूमिका रखी, मगर संस्था ने एक पत्र जारी कर दिया कि अमुक लोगो को पार्क में पटाखा तीन दिन तक बेचने की अनुमति दे रही है।
पत्र में साफ़ साफ़ लिखा है कि हमारी कंपनी साईं टिम्बर जिसने बनिया बाग़ पार्क का टेंडर लिया है और पार्क में हर साल की भांति इस साल भी पटाखा मार्किट लगाने की अनुमति देती है। अब सवाल ये उठता है कि नगर आयुक्त साहब आपने साईं टिम्बर को तो बतौर कार्यदाई संस्था के टेंडर दिया था। इसका काम पार्क के रख रखाव या फिर देखरेख का है। इसका काम पार्किंग में गाडियों को खड़ा करवाना और पार्किंग चार्ज लेना है। पार्क में जाने वालो का टिकट काटना है और उनसे पैसा लेना है। ये संस्था होती कौन है पटाखा मार्किट लगवाने की अनुमति देने वाली।
संस्था ने टेंडर लिया यानी ठेका लिया है, इस संस्था के साझेदार भले वह कमल सोनकर हो या फिर निगम जी, खुद को इस पार्क का मालिक समझ बैठे है। जो काम मालिकाना हक़ रखने वाले करते है वह काम ये दोनों साझेदार कर रहे है। अगर सिविल रूल्स को देखे तो ये मामला पूरी तरह से “ब्रीच आफ कान्ट्रेक्ट” का बनता है। नियमो को देखे तो ऐसे स्थिति में पूरा टेंडर ही निरस्त हो सकता है। या फिर हो सकता है कि शायद नगर आयुक्त साहब ने विशेष रूप से मालिकाना हक दे रखा है।
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