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“तुमको आता है प्यार पर गुस्सा, मुझको गुस्से पे प्यार आता है” पढ़े अमीर मिनाई के खुबसूरत अश’आर

तारिक आज़मी

उर्दू जुबान के मशहुर शायर अमीर मिनाई नवाबो के शहर लखनऊ में पैदा हुए थे। उनके अश’आरो में नवाबी अंदाज़ की नज़ाकत भी खूब मिलती है। नवाबो के शहर में पैदा होने के कारण उनका लखनऊ से ख़ास ताल्लुक रहा है। हालांकि बाद में ये इलाहाबाद जाकर काफी लम्बे समय तक रहे है। मिनाई के लिखे कलामो से आज भी मुहब्बत की खुशबु आती है जो हमें अपनी ओर खींचती है।

अमीर मिनाई के कलामो में एक अजीब कशिश है। उन्होंने इश्क को अपनी कलम से एक खुबसूरत अंदाज़ में उतारा है। अमीर मिनाई ने फ़ारसी, अरबी और उर्दू भाषाओं में शेरो शायरी लिखी है। अमीर मिनाई को ग़ालिब और दाग देहलवी सहित कई समकालीन कवियों और मुहम्मद इक़बाल द्वारा सम्मानित भी किया गया था।

अमीर मिनाई को इस दुनिया-ए-फानी से रुखसत लिए कई बरस बीत चुके है। मगर उनके द्वारा कागजों पर उकेरी गई कानो में घोलने वाली शकर जैसे कलाम से वो आज भी जिंदा है हमारे दिलो में। उनके शायरी लिखने के बेहतरीन अंदाज़ उन्हें सबसे अलग बताती है। आइये पढ़ते है उनके कुछ खुबसूरत अश’आर-

  1. मोहब्बत रंग लायेगी जनाब आहिस्ता आहिस्ता,
    के जैसे रंग लाती है शराब आहिस्ता आहिस्ता।
  2. सरकती जाए है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता,
    निकलता आ रहा है आफताब आहिस्ता आहिस्ता।
  3. जवां होने लगे जब वो तो हमसे कर लिया पर्दा,
    हया यक-लख़्त आई और शबाब आहिस्ता आहिस्ता।
  4. शब-ए-फ़ुर्क़त का जागा हूँ फ़रिश्तों अब तो सोने दो,
    कभी फ़ुर्सत में कर लेना हिसाब आहिस्ता आहिस्ता।
  5. सवाल-ए-वस्ल पर उन को अदू का ख़ौफ़ है इतना,
    दबे होंठों से देते हैं जवाब आहिस्ता आहिस्ता।
  6. वो बेदर्दी से सर काटें ‘अमीर’ और मैं कहूँ उन से,
    हुज़ूर आहिस्ता आहिस्ता जनाब आहिस्ता आहिस्ता,
  7. आरज़ू वस्ल की अच्छी यह खयाल अच्छा है,
    हाय पूरा नहीं होता है, सवाल अच्छा है।
  8. नज़ाअ में मैं हूं वह कहते हैं कि ख़ैरियत है,
    फ़िर बुरा होता है कैसा जो यह हाल अच्छा है।
  9. मांगू मैं तुझी को कि कभी मिल जाए,
    सौ सवालों से यही एक सवाल अच्छा है।
  10. उसकी हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूं,
    ढूंढने उसको चला हूं जिसे पा भी न सकूं।
  11. मेहरबां होके बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त,
    मैं गया वक़्त नहीं हूं कि फिर आ भी न सकूं।
  12. आरज़ू वस्ल की अच्छी यह खयाल अच्छा है,
    हाय पूरा नहीं होता है, सवाल अच्छा है।
  13. नज़ाअ में मैं हूं वह कहते हैं कि ख़ैरियत है,
    फ़िर बुरा होता है कैसा जो यह हाल अच्छा है।
  14. अच्छे ईसा हो मरीज़ों का ख़याल अच्छा है,
    हम मरे जाते हैं तुम कहते हो हाल अच्छा है।
  15. तुझसे मांगूं मैं तुझी को कि सभी कुछ मिल जाए,
    सौ सवालों से यही एक सवाल अच्छा है।
  16. देख ले बुलबुल ओ परवाना की बेताबी को,
    हिज्र अच्छा न हसीनों का विसाल अच्छा है।
  17. आ गया उसका तसव्वुर तो पुकारा ये शौक़,
    दिल में जम जाए इलाही ये ख़याल अच्छा है।
  18. कश्तियाँ सब की किनारे पे पहुँच जाती हैं,
    नाख़ुदा जिन का नहीं उन का ख़ुदा होता है।
  19. तुम को आता है प्यार पर ग़ुस्सा,
    मुझ को ग़ुस्से पे प्यार आता है।
  20. वस्ल का दिन और इतना मुख़्तसर,
    दिन गिने जाते थे इस दिन के लिए।
  21. तीर पर तीर लगाओ तुम्हें डर किस का है,
    सीना किस का है मिरी जान जिगर किस का है।
  22. ख़ौफ़-ए-मीज़ान-ए-क़यामत नहीं मुझ को ऐ दोस्त,
    तू अगर है मिरे पल्ले में तो डर किस का है।
  23. कोई आता है अदम से तो कोई जाता है,
    सख़्त दोनों में ख़ुदा जाने सफ़र किस का है।
  24. छुप रहा है क़फ़स-ए-तन में जो हर ताइर-ए-दिल,
    आँख खोले हुए शाहीन-ए-नज़र किस का है।
  25. नाम-ए-शाइर न सही शेर का मज़मून हो ख़ूब,
    फल से मतलब हमें क्या काम शजर किस का है।
  26. सैद करने से जो है ताइर-ए-दिल के मुंकिर,
    ऐ कमाँ-दार तिरे तीर में पर किस का है।
  27. मेरी हैरत का शब-ए-वस्ल ये बाइ’स है ‘अमीर’,
    सर ब-ज़ानू हूँ कि ज़ानू पे ये सर किस का है।
Tariq Azmi
Chief Editor
PNN24 News
लेख में लिखे गए समस्त शब्द लेखक के अपने विचार है. PNN24 न्यूज़ इन शब्दों से सहमत हो ये ज़रूरी नही है.
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