शाहीन बनारसी
उर्दू और हिंदी फिल्म की सुप्रसिद्ध गायिका और अभिनेत्री “मल्लिका-ए-तरन्नुम” यानी कि नूरजहाँ की आज 22वीं पुण्यतिथि है। 1 सितंबर 1926 को पंजाब की सरज़मी पर जन्मी नूरजहाँ छोटे से शहर कसुर के एक मध्यमवर्गीय परिवार से सम्बंधित थी। नूरजहाँ के बचपन का नाम अल्लाह वासी था। नूरजहां के माता-पिता थिएटर में काम करते थे। उनकी रूचि संगीत में भी थी। घर का माहौल संगीतमय होने के कारण नूरजहां का रुझान भी संगीत की ओर हो गया और वह गायिका बनने के सपने देखने लगी।
वर्ष 1930 में नूरजहां को इंडियन पिक्चर के बैनर तले बनी एक मूक फिल्म “हिन्द के तारे” में काम करने का मौका मिला। इसके कुछ समय के बाद उनका परिवार पंजाब से कोलकाता चला आया। कोलकाता में उनकी मुलाकात फिल्म निर्माता पंचोली से हुई। पंचोली को नूरजहां में फिल्म इंडस्ट्री का एक उभरता हुआ सितारा दिखाई दिया और उन्होंने उसे अपनी नई फिल्म “गुल ए बकावली” लिए चुन लिया। इस फिल्म के लिए नूरजहां ने अपना पहला गाना “साला जवानियां माने और पिंजरे दे विच” रिकार्ड कराया।
वर्ष 1942 में पंचोली की ही निर्मित फिल्म “खानदान” की सफलता के बाद वह बतौर अभिनेत्री फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित हो गई। फिल्म “खानदान” में उन पर फिल्माया गाना “कौन सी बदली में मेरा चांद है आ जा” श्रोताओं के बीच काफी लोकप्रिय भी हुआ। इसके बाद वह मुंबई आ गई। इस बीच नूरजहां ने शौकत हुसैन जिनसे फिल्म खानदान के बाद उनका निकाह हो गया था, की निर्देशित और नौकर, जुगनू 1943 जैसी फिल्मों मे अभिनय किया। नूरजहां को निर्माता निर्देशक महबूब खान की 1946 मे प्रदर्शित फिल्म “अनमोल घडी” में काम करने का मौका मिला।
महान संगीतकार नौशाद के निर्देशन में उनके गाए गीत “आवाज दे कहां है, आजा मेरी बर्बाद मोहब्बत के सहारे, जवां है मोहब्बत” श्रोताओं के बीच आज भी लोकप्रिय हैं। 1947 में विभाजन के बाद वे पाकिस्तान चली गईं किंतु अपना फिल्मी जीवन जारी रखा। हिन्दी फिल्मों के अलावा नूरजहां ने पंजाबी, उर्दू और सिंधी फिल्मों में भी अपनी आवाज़ से श्रोताओं को मदहोश किया। नूरजहां पहली पाकिस्तानी महिला फिल्म निर्माता रहीं। यही नहीं वह गायिका, अभिनेत्री और म्यूजिक कंपोजर भी रहीं। नूरजहां ने हिन्दी, उर्दू, सिंधी, पंजाबी जैसी भाषाओं में कुल 10 हजार से ज्यादा गाने गाए। 1945 में नूरजहां ने फिल्मी बड़ी मां में लता मंगेशकर व आशा भोंसले के साथ एक्टिंग की।
नूरजहाँ का फ़िल्मी करियर काफी अच्छा रहा। उन्होंने 12 मूक फिल्मों में भी काम किया। नूरजहाँ के आवाजों का जादू आज भी फिल्म जगत में बिखरा हुआ है। नूरजहाँ आज भी श्रोताओं के दिलो पर राज़ करती है। उन्हें इस दुनिया-ए-फानी से अलविदा कहे हुए तो कई बरस बीत चुके है लेकिन आज भी वो फिल्म जगत की एक ऐसी शान है जो अपनी खबसूरत और दिलकश आवाज़ के लिए जानी जाती है। नूरजहां को “मल्लिका-ए-तरन्नुम” (क्वीन ऑफ मेलोडी) सम्मान से नवाजा गया। नूरजहाँ 1966 में पाकिस्तान सरकार द्वारा “तमगा-ए-इम्तियाज़” सम्मान से भी नवाजी गईं।
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