तारिक़ आज़मी
मोहम्मद इब्राहिम “ज़ौक़” उर्दू अदब के एक मशहूर शायर थे। इनका असली नाम शेख़ इब्राहिम था। ग़ालिब के समकालीन शायरों में “ज़ौक़” बहुत ऊपर का दर्जा रखते हैं। उनका जन्म 1790 में दिल्ली के एक गरीब सिपाही शेख़ मुहम्मद रमज़ान के घर हुआ। शेख इब्राहीम “ज़ौक़” उनके इकलोटे बेटे थे। वे बचपन में मुहल्ले के एक अध्यापक हाफिज़ गुलाम रसूल के पास पढने जाया करते थे। हाफिज़ भी शायर थे और मदरसे में भी शेरो-शायरी की चर्चा होती रहती थी, इसीलिए इब्राहीम की तबियत भी इधर झुकी।
जब कि सरतानो-अहद मेहर का ठहरा मसकन,
आबो-ए-लोला हुए नखो-नुमाए-गुलशन
इस पर उन्हें खाकानी-ए-हिंद का ख़िताब मिला। खाकानी फारसी भाषा का बहुत मशहूर कसीदा कहने वाला शायर था। 19 साल कि उम्र में यह ख़िताब पाना गर्व कि बात थी। उनके हर शेर में हर अल्फाज़ किसी नगीने कि तरह पिरोया हुआ प्रतीत होता है। उनकी शायरी में तपिश हो या तल्खी, मासूमियत हो या प्यार लेकिन अंदाज ऐसा होता था कि सुनने वाला मुग्ध हो जाए। 1854 में “ज़ौक़” ने इस दुनिया-ए-फानी को अलविदा कह दिया। आइये पढ़ते है उनके कुछ ख़ास अश’आर·
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