Varanasi

महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ पत्रकारिता विभाग: न के बराबर सुविधाये और अनेको समस्याओं के बीच कैसे कर पायेगे छात्र अपने बड़े सपनो को साकार ?, सरकार से अनुमोदित है केवल एक लेक्चरार और एक रीडर की पोस्ट

तारिक़ आज़मी

वाराणसी: देश को पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री सहित अनेको अनमोल रत्न देने वाले शिक्षण संस्थान “महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ” पहले चर्चाओं का केंद्र अपने विश्वविद्यालय से पढ़े छात्र-छात्राओं के द्वारा प्राप्त उपलब्धियों के कारण रहता था। इस विश्वविद्यालय में होने वाली चर्चा और परिचर्चा केंद्र होती थी अखबारों की सुर्खियों का। मगर आज एक समय ऐसा आ गया है कि यह विश्वविद्यालय चर्चा में तब आता है जब यहाँ चुनाव होने होते है। चुनाव, छात्र राजनीत और छात्रो के बीच होने वाले विवाद के साथ इस विश्वविद्यालय की चर्चा होती है और उसके बाद सब कुछ सामान्य हो जाता है।

एक बार फिर से विद्यापीठ में चुनावों की घोषणा हो चुकी है। कैम्पस ही नही बल्कि पुरे शहर की सडको पर चुनाव प्रचार हेतु पोस्टर होर्डिंग और बैनरों की भीड़ इकठ्ठा है। देर रात तक छात्र नेता चुनाव प्रचार में मसरूफ दिखाई दे रहे है। हमने भी हालात-ए-हाजरा का जायजा लेने के लिए महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के जानिब अपने रुख को कर लिया। हम अपनी आदतों से बेशक मजबूर है क्योकि अमूमन खबरे तो आप अपने पसंदीदा अखबारों के अन्दर ढेर सी पढ़ लेते है। फिर हमको आप क्यों ? आप हमको तो तभी पढेगे जब खबर के अन्दर की कोई खबर आपको मिले।

हम देखना चाहते थे कि आखिर जिन वायदों और इरादों के साथ चुनाव होते है, वह वायदे ही रहते है या फिर वायदे वफ़ा भी होते है। वैसे अक्सर बेवफाई का इलज़ाम आइनों पर ही लगता है और हमारी कोशिश होती है कि हम वह आइना जिसमे समाज के अक्स की खूबसूरती नही बल्कि उस खूबसूरती के अन्दर के वह दाग दिखा सके, जो दाग अच्छे नही होते है। वैसे टीवी के ऐड पर आप लाख देखे कि दाग अच्छे है, या फिर आपको अगर हुस्न-ओ-खूबी ही देखनी है तो आपका पसंदीदा चैनल और अख़बार उसके लिए तो है ही। आप उसका सहारा ले सकते है। हम सीधे मुद्दे पर रहते है और आपको इस विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग और छात्रो की समस्याओं से रूबरू करवाते है।

पत्रकारिता विभाग जहा सरकार से केवल एक लेक्चरर और एक रीडर का पद है सरकार से अनुमोदित

महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ प्रदेश में सबसे पुराना पत्रकारिता का कोर्स करवाने वाला विश्वविद्यालय है ये इस विभाग की एक बड़ी उपलब्धि है। साथ ही प्रदेश में सबसे सस्ती फीस भी इसी विश्यविद्यालय में है यह इसकी दूसरी उपलब्धि है। हमने विभागाध्यक्ष डॉ अरुण शर्मा से संपर्क किया और अपना मकसद बताया तो उन्होंने जो बताया वह बेशक चौकाने वाली बात थी। इस विभाग में तीन कोर्स पत्रकारिता के चलते है। 2 स्नातक के और एक पोस्ट ग्रेजुएशन का। स्नातक में एक बीए आनर्स है जिसमे एक मात्र विषय पत्रकारिता होता है। दूसरा बीए रेग्युलर है जिसमे एक विषय पत्रकारिता दो अन्य विषय के साथ होता है।

डॉ अरुण शर्मा ने बताया कि यह तीन कोर्स इस विभाग में चलाने हेतु सरकार से एक लेक्चरार और एक रीडर की पोस्ट अनुमोदित है। वर्त्तमान में कुल 4 गेस्ट प्रोफ़ेसर के साथ यह तीनो कोर्स चल रहे है। पूरा प्रयास होता है कि शिक्षा की गुणवत्ता प्रदान करे। साथ ही लैब हेतु 11 कम्प्यूटर्स एलाट है जिसके साथ लैब बना हुआ है। साथ ही हम छात्रो के ज्ञानवर्धन हेतु पत्रकारों को भी बुला कर उनके सेमीनार समय समय पर आयोजित करते रहते है। हमारे यहाँ से पास किये हुवे कई छात्र कई मीडिया संस्थानों में कार्यरत है।

क्या कहते है छात्र-छात्राये

हमने एचओडी साहब से मुलाकात के बाद कैम्पस के पार्क में लेगे फव्वारे के इर्द गिर्द बैठे छात्र छात्राओं से बात किया। छात्र नेता अंकित कुमार ने चौकाने वाली बात हमको बताया। अंकित कुमार ने कहा कि इस संकाय की समस्याओं पर वायदा करके वोट पाने वाले नेता चुनाव जीतते आ रहे है। मगर वायदा कभी पूरा नही हुआ। इस संकाय में मुझको पढ़ते हुवे खुद 4 साल गुज़र चुके है। आज तक लैब में कोई प्रेक्टिकल क्लास ही नही हुई है। शिक्षा के नाम पर क्लास रेग्युलर चलाने की बात तो कही जाती है मगर प्रोफ़ेसर की कमी के कारण क्या स्थिति होगी आप खुद सोच ले। अंकित कुमार ने दावा किया कि 4 साल के कोर्स में आज तक कैमरे की शक्ल तक नही दिखाई गई है। सिर्फ किताबो में छपी तस्वीरो से हम लोगो का काम चल रहा है। समस्याओं को अगर बताना शुरू करू तो शायद आपके पास जगह कम पड़ जाएगी। जो छात्र पास हो चुके है उनसे जाकर पूछे कि क्या उन्होंने कभी लैब किया या उनको कभी कैमरों की शक्ल दिखाई गई। किसी को नही दिखाई गई।

एक अन्य छात्रा ने नाम न ज़ाहिर करने के शर्त पर बताया कि कक्षाये महज़ तीन दिन चलती है। लैब में हमेशा ताला बंद रहता है। चुनाव के समय छात्र नेता बड़े बड़े वायदे करते है। चुनाव के बाद दिए गए आश्वासन को भूल जाते है। कागज़ की डिग्री मिलना और ज्ञान साथ में होना लगता नही है कि संभव है। कहे तो किस्से कहे और करे तो क्या करे हम लोग। शिक्षा तो चाहिए ही चाहिए। मीडिया में भविष्य की तलाश में कोर्स कर रही हूँ, मगर क्या सिर्फ किताबी ज्ञान से भविष्य उज्जवल होगा?

छात्र नेता प्रतीक गुप्ता “पीकू” ने हमसे बात करते हुवे बताया कि मैं खुद एमएएमसी तीसरे सेमेस्टर का छात्र हु। आज तक मैंने लैब न देखा है और न ही कैमरा दिखाया गया कि होता क्या है। शिक्षा के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति होती है। बात करने पर निष्कर्ष निकलता है कि कोर्स तो हम पूरा करवा रहे है न भले जैसे करवाये तो आप लोग कोर्स से मतलब रखे। अब आप बताये सरसरी तौर पर पढ़ाई करने का क्या मतलब बनता है। क्या बिना ज्ञान के महज़ डिग्री के साथ भविष्य उज्जवल हो सकता है? हमारे अभिभावक हमने कितनी उम्मीदे पाल कर बैठे है। हम आखिर उन उम्मीदों पर कितना खरा उतर पायेगे यह हमको खुद नही पता है।

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