तारिक़ खान
नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने गुरुवार को संसद को बताया कि भारत और श्रीलंका के बीच के क्षेत्र की सैटेलाइट तस्वीर, जहां पौराणिक राम सेतु के अस्तित्व की बात कही जाती है, में द्वीप और चूना पत्थर (लाइमस्टोन) वाले उथले किनारे नजर आते हैं लेकिन उन्हें ‘निर्णायक तौर पर’ पुल के अवशेष नहीं कहा जा सकता है।
द टेलीग्राफ के अनुसार, अंतरिक्ष राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह राज्यसभा में भाजपा सांसद कार्तिकेय शर्मा के एक मौखिक सवाल का जवाब दे रहे थे, जिन्होंने पूछा था कि क्या सरकार भारत के अतीत का वैज्ञानिक मूल्यांकन करने के लिए कोई प्रयास कर रही है। सिंह ने सदन को बताया, ‘हां, कुछ हद तक, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के माध्यम से हम कुछ टुकड़ों और द्वीपों, कुछ प्रकार के लाइमस्टोन वाले उथले किनारों की खोज कर सके हैं, जिन्हें निश्चित रूप से अवशेष या पुल के हिस्से नहीं कहा जा सकता है। ‘
सिंह ने आगे कहा, ‘तो, जो मैं संक्षेप में कहने की कोशिश कर रहा हूं वह यह है कि वास्तव में वहां मौजूद सटीक संरचना को इंगित करना मुश्किल है, लेकिन प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संकेत है कि वे संरचनाएं मौजूद हैं।’ बताते चले कि इसको एडम्स ब्रिज के तौर पर भी जाना जाता है। यह तमिलनाडु के दक्षिणपूर्वी तट पर पंबन द्वीप और श्रीलंका के उत्तर-पश्चिमी तट पर मन्नार द्वीप के बीच चूना पत्थर की एक शृंखला है। मालूम हो कि इससे पहले यूपीए सरकार ने पर्यावरणविद आरके पचौरी की अगुवाई वाली एक समिति बनाते हुए सेतुसमुद्रम परियोजना के लिए वैकल्पिक एलाइनमेंट की जांच करने का जिम्मा सौंपा था।
इस परियोजना में 83 किलोमीटर लंबे गहरे जल मार्ग के निर्माण की परिकल्पना की गई थी, जो मन्नार को पाक जलडमरूमध्य से जोड़ता था, जो कथित राम सेतु का हिस्सा बनने वाले चूना पत्थर की शृंखला को हटाकर किया जाना था। भाजपा इस बात का हवाला देते हुए कि भगवान राम ने सीता को बचाने के लिए लंका पहुंचने के लिए यह मार्ग बनाया था और इसकी रक्षा की जानी चाहिए, परियोजना का विरोध कर रही है।
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