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मेरे बड़े भाई ए0 जावेद के जन्मदिन पर छोटी बहन शाहीन बनारसी के जानिब से एक तोहफा: सफ़र-ए-ज़िन्दगी जिसने जावेद को ए0 जावेद बनाया

शाहीन बनारसी

वाराणसी। लोग कहते है हर दिन एक जैसा नही होता है। मगर दिन तो सभी लगभग एक जैसे ही होते है मगर खासियत उस दिन कि शख्सियत से जुडी हुई होती है। एक दिन बताता है कि कब उसकी ज़िन्दगी बदली, एक दिन बताता है कब उसकी पहचान बदली, वैसे ही एक दिन बताता है कि कब उसकी यौम-ए-पैदाइश है। ऐसा ही एक खास दिन आज है। कलेंडर के खुद को बदला और पहले पन्ने की तारीखे 13 मर्तबा बदल चुकी है। उन 13 मर्तबा बदलने में कुछ ख़ास 12 मर्तबा भले न हो मगर आज है। आज जब 14वी मर्तबा कलेंडर ने अपनी तारिख बदली तो आया वह दिन जिस दिन हमारे बड़े भाई ए0 जावेद इस दुनिया में आये। बेशक एक छोटी बहन होने के नाते मेरे लिए तो खास दिन ही है। इस ख़ास दिन पर ख़ास तोहफा एक भाई को बहन के लफ्ज़ ही हो सकते है। तो आइये आपको हम रूबरू करवाते है अपने बड़े भाई के जावेद से ए0 जावेद बनने के सिलसिले और उनकी जद्दोजेहद से।

ए0 जावेद नाम शायद किसी परिचय का मोहताज अब इस शहर में तो नही है। चेहरे पर तेज़, गरीब मज़लूमो की आवाज़ बनना, किसी जन समस्या के मुद्दे को बेबाकी से उठाना। शहर के उस इलाके में बेबाकी से जनता की आवाज़ को उठाना जिस इलाके में अपराध संरक्षण पा जाता था, उसी इलाके में रहकर मुद्दों की बात करना एक जिगर का काम होता है। उनके ज़िन्दगी में यहाँ तक के सफ़र पर रोशनी डाली जाए तो ज़िन्दगी के सावन से ज्यादा मेरे इस बड़े भाई ने पतझड़ देखे है।

ए0 जावेद लोहता क्षेत्र के मूल निवासी है। अब वह लगभग 7 सालो से नई सड़क इलाके में रहते है। वर्ष 2015 तक ए0 जावेद को दुनिया जावेद नाम से जानती थी, एक अल्हड मस्त युवक के तौर पर। जो दिन भर भवनों का निर्माण कार्य अपने देख-रेख में करवाता और शाम को थोडा घूम फिर कर परिवार के साथ खाना खाकर सो जाना, यह लगभग रोज़ की दिनचर्या थी। हाथो में उस समय डिस्कवर 125 की हैडल रहती थी। शरीर पर नित नए फैशन के कपडे। एक मॉडल जैसे रूप रंग में रहने वाले हमारे बड़े भाई जावेद की ज़िन्दगी में कोई हलचल नही थी। फिर वो दिन आता है जब उनके ज़िन्दगी में बदलाव का वक्त आता है। कृष्णा बनकर घुमने वाले मेरे बड़े भाई जावेद की ज़िन्दगी में वह हुआ जिसने उनकी ज़िन्दगी को कृष्णा से क्रांतिकारी बनने का सफ़र शुरू हुआ। उनके लोहता क्षेत्र में कुछ दबंगों ने मिलकर एक युवक की जमकर पिटाई कर दिया था। स्थानीय पुलिस ने दबंगो का शांति भंग में केवल चालान कर दिया था। ऐसा इस कारण हुआ था कि उन दबंगों की पैरवी एक नेता द्वारा हो रही थी। इस घटना ने हमारे जावेद भाई के दिल में काफी गहरा सदमा पहुचाया। यहाँ से उनकी सोच का तरीका बदलने लगा। उन्होंने ज़िन्दगी को नए सिरे से देखने की कोशिश किया और कुछ समाज के लिए करने की ठानी।

यहाँ से शुरू होती है उनकी तलाश। उनको तलाश थी एक ऐसे गुरु कि जो उन्हें सिखा सके। कहते है कभी-कभी खेलते-खेलते भी खज़ाना मिल जाता है। ऐसा ही हुआ हमारे जावेद भाई के साथ। गुरु की तलाश में भटकते जावेद भाई की तलाश पूरी भी हुई तो शाहिद भाई के बिरयानी की दूकान पर, जहाँ उनकी पहली मुलाकात उनके गुरु तारिक़ आज़मी से हुई। जावेद भाई की माने तो चंद मिनट ही बात करने में अहसास हो गया कि इस इंसान के अन्दर मेरे गुरु बनने की सब खूबियाँ है। यहाँ से शुरू हुई मेरी उनके साथ जुड़ने की जद्दोजेहद। जावेद भाई बताते है कि इसके बाद से जब भी वो तारिक़ आज़मी से जुड़ने की बात करते तो वह बातो-बातो में बात को टाल जाते। जावेद भाई बताते है कि लगभग 6 महीनो तक मैं रोज़ उनके पास मुलाकात को जाता तो वह मुझको चाय पिलाए और बातो को घुमा दे, मगर मैं भी जोक के तरह चिपका रहा रोज़ जाता चाय पीकर चला आता। आखिर उनको मेरी लगन पसंद आई और आज मैं उनका सबसे पसंदीदा शागिर्द हु,

सफ़र का ज़िक्र करते हुवे जावेद भाई ने बताया कि उनके गुरु बने तारिक आज़मी ने पहले ही दिन एक फार्म पर उनके साइन करवाए और ये फार्म इंटर की परीक्षा का था। पढाई की आदत छुट जाने के बाद फिर से पढना अब मज़बूरी थी। आखिर परीक्षा हुई और वह इंटर पास कर गए। यहाँ उनकी ज़िन्दगी में एक और टर्न आया जो उनको उनके रास्ते की तरफ लेकर गया। जावेद भाई बताते है कि वह तारिख याद है मुझको आज भी, तारिख थी 2016 की अक्टूबर 16 जब तारिक़ भाई को गर्दन में भारी दर्द थी और वह गाडी नही चला पा रहे थे। जय गुरुदेव के सभा में उसी दिन भगदड़ से 25 लोगो की मौत हो चुकी थी। पूरा शहर जाम था। मेरे पास मेरे गुरु का पहला फोन आया और उन्होंने मुझे बुलाया था। मैं लगभग गाडी लेकर भागता हुआ गया था। वो मुझे लेकर राजघाट पुल पर पहुंचे। जहाँ पैर रखने की जगह नही थी। यहाँ मैंने ज़िन्दगी में पहली बार पत्रकार के तौर पर फोटो खीचा था। मेरी लगन से हमारे गुरु खुश हुए और उन्होंने मेरा मार्ग दर्शन करना उसी दिन से शुरू किया।

एक अल्हड मस्ती में रहने वाला कृष्णा के रूप में मौज मस्ती करने वाला युवक जावेद ए0 जावेद बन चूका है। इसके लिए वह अपने गुरु तारिक़ आज़मी को पूरा श्रेय देते है। वह कहते है कि मेरे गुरु ने मुझे तराशा है, मेरे गुरु ने मुझको आम से ख़ास बनाया है। उन्होंने मुझको उंगली पकड़ कर चलना सिखाया है। समाज में एक अलग पहचान बनाया है। सीधे कहूँ तो मेरे गुरु मेरा स्वाभिमान है। वही तारिक आज़मी ने कहा कि “बेशक जावेद जैसा अनमोल रत्न काफी मुश्किल से मिलता है। टेढ़ा है, पर मेरा है।”

आज जावेद भाई ए0 जावेद हो चुके है। शाहीन बनारसी को भी फक्र है कि ए0 जावेद उसके भाई है। वैसे तो हर भाई अपनी बहन का हीरो होता है। मगर बेशक अल्लाह दुनिया की हर एक बहन को ऐसा भाई दे। अल्लाह मेरे जावेद भाई को लम्बी उम्र दे, उन्हें तरक्की और कामयाबी अता करे। अल्लाह उनको दुनिया की सभी खुशियाँ नसीब करे। जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनाये।

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