ए0 जावेद
वाराणसी: वाराणसी के लल्लापुरा के पार्षद हारून अंसारी पर एक बड़ा आरोप अदालत की अवहेलना का लगा है। इस सम्बन्ध में पीडिता ने मुख्यमंत्री से पार्षद की शिकायत करते हुवे कानूनी कार्यवाही की मांग किया है। मामला लल्लापुरा स्थित भवन संख्या सी0 15/31 व 15/31-ए के विवादित जुज़ हिस्से का बताया जा रहा है। प्रकरण में पीडिता ने मुख्यमंत्री को शिकायत भेज कर कानूनी कार्यवाही की मांग किया है।
अब सवाल ये खड़ा होता है कि जिस संपत्ति को लेकर लगभग 40 वर्षो से मुकदमा चल रहा है और कई बार पूर्व में भी विवाद हो चूका है उस संपत्ति की मौजूदा नवय्यत और संपत्ति पर अदालत द्वारा दिले स्टे आर्डर की जानकारी हारून अंसारी को तो अवश्य होगी ही। फिर आखिर कौन से कैसे कारण रहे है कि हारून अंसारी के द्वारा अदालत के आदेश को भी दरकिनार करते हुवे उस संपत्ति पर इस तरीके से मलवा उठवा कर उसको साफ़ करवा रहे है। हमने इस सम्बन्ध में जब स्थानीय ठेकेदार मनोज से दूरभाष से बात किया तो उन्होंने बताया कि पार्षद हारून अंसारी के कहने पर उन्होंने वहा से मिटटी और मलवा उठवाने हेतु ट्रैक्टर लगवाया था और मजदूर भेजे थे। तो सवाल इस बार दो खडा हो जाता है,
तस्वीर परिचय: पार्षद साहब……! लाल घेरे का क्षेत्र देखे जो नगर निगम का मार्ग नही बल्कि उस विवादित संपत्ति का हिस्सा है जिसके ऊपर अदालत ने “यथास्थिति कायम रखने” का हुक्म फरमाया है। आपकी भी जानकारी में ये हुक्म है। फिर इस क्षेत्र का मलवा आप द्वारा उठवाए जाने का आरोप है। कैसे….? क्या आरोप निराधार है पूरा? आपके जवाब से तो ऐसा प्रतीत नही होता है। पार्षद साहब आप फोटो को जूम करके देख ले फोटो लेने का समय और तारीख भी लिखी आई है। उस समय हम खुद स्थिति को देखे है।
क्या कहते है पार्षद? पढ़ कर आप चौकिये मत ये लोकतंत्र है अभिव्यक्ति की आज़ादी है साहब
उन्होंने हमसे ही पहले सवाल किया कि शिकायतकर्ता कौन है? हमने नाम नही बताया और महज़ बताया कि मिलकियत का अदालत में दावा करने वालो में एक वादी मुकदमा, तो उन्होंने कहा कि “हम शार्ट कट में जवाब देते है कि उस ज़मींन से मलवा ज़मींन मालिक के कहने पर हटाया गया।” अब आप सोचेगे कि ये कौन से बड़ी बात हुई तो हम बताते है। इस संपत्ति पर मालिकाना हक़ का दावा करने वालो को अगर देखे तो कुर्बान अहमद मरहूम की जौजा और उनकी औलादों सहित कुल 7 लोग वादी पक्ष के इस संपत्ति पर मालिकाना हक़ का दावा कर रहे है जिनमे से दो का देहांत हो चूका है, अब कुल 5 लोग अपना दावा इस संपत्ति पर एक परिवार के कर रहे है। दुसरे तरफ मरहूम छेदी के परिवार से तीन लोग इस केस में प्रतिवादी यानी कि आज की तारिख में कुल 8 लोग इस संपत्ति पर मालिकाना हक़ का दावा अदालत में कर रहे है। फिर पार्षद साहब कौन होते है किसी एक व्यक्ति को संपत्ति का मालिक समझ कर उसकी बात मानने वाले? क्या वो खुद को अदालत से ऊपर समझ रहे है?
बेशक यहाँ हमने जो तीसरा सवाल हारून मियाँ से पूछा वह खड़ा है कि उनके नज़रिए से देश संविधान से चलेगा या व्यक्तिगत प्रावधान से तो शायद हारून साहब व्यक्तिगत प्रावधान पर जैसी विचारधारा के होंगे तभी किसी एक विवादित संपत्ति पर पड़े हुवे मलवे को नियमो के तहत नही बल्कि नियमो के विपरीत उठवा रहे है। हारून साहब को ये बात समझनी होगी कि देश संविधान से चलेगा और आज वह जिस पद पर थे वह उसी संविधान ने उनको प्रदान किया है और वह पार्षद बने थे। यहाँ ये शब्द ध्यान देना होगा कि पार्षद बने थे उनका कार्यकाल खत्म हो चूका है। जिस संविधान की बात हम कर रहे है वही दुनिया का सबसे बड़ा लिखित और समृद्ध संविधान उनको यह अधिकार देता है कि वह अपने क्षेत्र के लोगो की समस्याओं को नगर निगम के पटल पर लाये। मगर शायद पार्षद साहब खुद को ही नगर निगम समझ बैठे है।
बहरहाल, पीडिता ने इस सम्बन्ध में लिखित शिकायत किया है। मुख्यमंत्री से गुहार मदद की लगाया है। पीडिता का आरोप है कि पार्षद बनने के बाद से हारून अंसारी बदनीयती से उनकी संपत्ति एक उस विवादित हिस्से पर नज़र रखे हुवे है। यदि जितनी बातो को हमने पार्षद साहब से किया तो वह बाते इस बात को बल भी प्रदान करती है कि पार्षद साहब ही क्यों इतना व्यक्तिगत रूचि इस संपत्ति पर पड़े मलवे को लेकर ले रहे है। क्या मलवा हटा कर पहले अचानक अस्थाई, फिर स्थाई कब्ज़े करने का किसी को मार्ग प्रशस्त कर रहे है? यहाँ ध्यान देने वाली बात ये भी है कि इसी संपत्ति को लेकर इससे पहले भी विवाद उठा था और गम्भीर रूप लिया था जिसमे भाजपा का खुद को नेता बताने वाले “गुंडा” जैसे शब्द से क्षेत्र में जाने पहचाने जाने वाले इन्सान का नाम सामने आया था। उस समय भी बात के दरमियान पार्षद साहब की भूमिका संदिग्द्ध लगी थी। अभी तो मामला सामने है और तस्वीर इस बात को तो बयान कर ही रही है कि मिटटी तो मौके से संपत्ति से हटाई गई है।
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