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आज ही के दिन प्रयागराज के अल्फ्रेड पार्क में चंद्रशेखर आज़ाद ने खुद को मार ली थी गोली, उनके पुण्यतिथि पर जानिये उनके ज़िन्दगी से जुड़े अहम किस्से

शाहीन बनारसी

जब आजादी की बात छिड़ेगी तब-तब उन क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता सेनानियों का नाम लिया जाएगा जिन्होंने इस भारत देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी। उन्ही फ्रीडम फाइटर में से एक नाम है चंद्रशेखर आज़ाद। आज ही के दिन प्रयागराज के अल्फ्रेड पार्क जिसे चंद्रशेखर पार्क के नाम से भी जाना जाता है में आज़ाद ने अपने हाथो से ही खुद को गोली मार लिया था। दरअसल अंग्रेजों से लड़ाई करने के लिए चंद्रशेखर आजाद इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में सुखदेव और अपने एक अन्य साथियों के साथ बैठकर आगामी योजना बना रहे थे। इस बात की जानकारी अंग्रेजों को पहले से ही मिल गई थी। जिसके कारण अचानक अंग्रेज पुलिस ने उन पर हमला कर दिया।

वह पेड़ जिसके नीचे खड़े होकर चंद्रशेखर आज़ाद ने अंगेजों से मुठभेड़ किया

आजाद ने अपने साथियों को वहां से भगा दिया और अकेले अंग्रेजों से लोहा लगने लगे। इस लड़ाई में पुलिस की गोलियों से आजाद बुरी तरह घायल हो गए थे। वे सैकड़ों पुलिस वालों के सामने 20 मिनट तक लड़ते रहे थ। उन्होंने संकल्प लिया था कि वे न कभी पकड़े जाएंगे और न ब्रिटिश सरकार उन्हें फांसी दे सकेगी। इसीलिए अपने संकल्प को पूरा करने के लिए अपनी पिस्तौल की आखिरी गोली खुद को मार ली और मातृभूमि के लिए प्राणों की आहुति दे दी। आजाद ने जिस पिस्‍तौल से अपने आप को गोली मारी थी, उसे अंग्रेज अपने साथ इंग्‍लैंड ले गए थे, जो वहां के म्‍यूजियम में रखा गया था, हालांकि बाद में भारत सरकार के प्रयासों के बाद उसे भारत वापस लाया गया, अभी वह इलाहाबाद के म्‍यूजियम में रखा गया है।

चंद्रशेखर आज़ाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्यप्रदेश के अलीराजपुर जिले के भाबरा गांव में हुआ था। उनका पूरा नाम चंद्रशेखर तिवारी था। कहा जाता है कि उन्होंने अपने बचपन में आदिवासियों से धनुष बाण चलाना सीखा था और उनका निशाना काफी पक्का था। बाद में इसी हुनर से क्रांतिकारियों के बीच प्रसिद्ध भी रहे। 1919 में हुए जलियांवाला बाग नरसंहार ने देश के युवाओं को तोड़ दिया। आजाद उस समय पढाई कर रहे थे। महात्मा गांधी ने सन 1920 में जब असहयोग आन्दोलन शुरू किया तो वह आग बनकर फैल गया और तमाम अन्य छात्रों की भांति आजाद भी सड़को पर उतर आएं। अपने कालेज के छात्रों के साथ इस आन्दोलन में भाग लेने पर पहली बार गिरफ़्तार किए गए और उन्हें 15 बेतों की सज़ा मिली।

इस घटना का जिक्र पं० जवाहरलाल नेहरू ने कानून तोड़ने वाले एक लड़के की कहानी के रूप में किया है – कानून तोड़ने के लिये एक लड़के को, जिसकी उम्र 14 से 15 साल थी और जो अपने को आज़ाद कहता था, 15 बेंत की सजा दी गयी। उसे नंगा किया गया और सजा देना शुरू हुआ जैसे-जैसे बेंत उस पर पड़ते वह ‘भारत माता की जय’ चिल्लाता रहा था। हर बेंत के साथ वह लड़का तब तक यही नारा लगाता रहा, जब तक वह बेहोश न हो गया। बाद में वह लड़का भारत के क्रान्तिकारी दल का बड़ा नेता बना।

चंद्रशेखर को “आजाद” नाम एक खास वजह से मिला। चंद्रशेखर जब 15 साल के थे तब उन्‍हें किसी केस में एक जज के सामने पेश किया गया। वहां पर जब जज ने उनका नाम पूछा तो उन्होंने ने कहा, “मेरा नाम आजाद है, मेरे पिता का नाम स्वतंत्रता और मेरा घर जेल है।“ जज ये सुनने के बाद भड़क गए और चंद्रशेखर को 15 कोड़ों की सजा सुनाई, यही से उनका नाम आजाद पड़ गया। चंद्रशेखर पूरी जिंदगी अपने आप को आजाद रखना चाहते थे। कहा जाता हैं कि आजाद को पहचानने के लिए ब्रिटिशों ने लगभग 700 लोग नौकरी पर रखें थे।

लेखिका शाहीन बनारसी एक युवा पत्रकार है

“आज़ाद” आज भी युवाओं के आदर्श है। देश की आज़ादी के लिए जब-जब अपना बलिदान देने वाले क्रान्तिकारियो के बारे में चर्चा होती है तो चन्द्रशेखर आज़ाद का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। कहा जाता है कि वह आज़ादी के लिए बहुत ही दीवाने थे। देश के लिए मर मिटने को हमेशा तैयार रहने वाले “आज़ाद” को जब देश के लिए प्राण न्योछावर करने का अवसर मिला तो उन्होंने इस मौके को हसी ख़ुशी गले लगाया। जब जब आज़ादी का ज़िक्र होगा तब तब हम हिन्दुस्तानी चन्द्रशेखर आज़ाद का नाम फक्र से लेंगे।

Banarasi

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