आदिल अहमद/मो0 कुमैल
सुप्रीम कोर्ट ने अडानी-हिंडनबर्ग मामले सभी याचिकाओं पर कल शुक्रवार को सुनवाई किया। इस दरमियान केंद्र सरकार की तरफ से मामले की जांच के लिए एक्सपर्ट्स के नामो का सीलबंद लिफाफ अदालत में पेश कर अदालत से इल्तेजा किया गया कि नामो का खुलासा न हो। इस लिफाफे को अदालत ने सिरे से मना कर दिया और लेने से मना करते हुवे कहा कि जाँच में पारदर्शिता हम चाहते है। ऐसे सील बंद लिफाफों में पारदर्शिता नही होगी। जाँच कमेटी हम खुद बनायेगे।
लाइव लॉ की खबर के मुताबिक इस पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने अदालत में कहा कि ‘हम आपकी ओर से सीलबंद लिफाफे में दिए जा रहे नामों को स्वीकार नहीं करेंगे। यदि हम आपके सुझावों को सीलबंद लिफाफे में लेते हैं, तो इसका सीधा मतलब है कि दूसरे पक्ष को पता नहीं चलेगा और लोग सोचेंगे कि ये कमेटी सरकार ने बनाई है। हम निवेशकों की सुरक्षा के लिए पूरी पारदर्शिता चाहते हैं। हम खुद एक कमेटी बनाएंगे, इससे कोर्ट-कचहरी पर विश्वास की भावना बनी रहेगी।’ इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट के सिटिंग जज को इस जांच कमेटी का हिस्सा नहीं बनाया जाएगा। यानी सुप्रीम कोर्ट एक पूर्व जस्टिस की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन होगा।
इससे पहले इस मामले पर 10 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी। तब कोर्ट ने अडानी-हिंडनबर्ग मामले को लेकर सरकार को एक सुझाव दिया था। कोर्ट ने पूछा था कि क्या सरकार इस मामले में एक जांच कमेटी बनाने का सुझाव स्वीकार करने को तैयार है? इसका नेतृत्व एक पूर्व जस्टिस करेंगे। कोर्ट ने आगे कहा कि अगर सरकार इसके लिए तैयार है, तो समिति के गठन पर अपने सुझाव पेश कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि ये कमेटी ये भी देखेगी कि अडानी-हिंडनबर्ग मामले के बाद क्या स्टॉक मार्केट के रेगुलेटरी मैकेनिज्म में फेरबदल की जरूरत है या नहीं? सुप्रीम कोर्ट के सुझाव पर 13 फरवरी को केंद्र सरकार ने कहा था कि वो केस की जांच एक्सपर्ट कमेटी से करवाने को तैयार है। उस समय सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कमेटी के सदस्यों के नाम सीलबंद लिफाफे में देने की बात कही थी। यही लिफाफा वो शुक्रवार को कोर्ट में लेकर पहुंचे। लेकिन, अदालत ने ये लिफाफा लेने से मना कर दिया।
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